मौसम के बदलाव के साथ बढ़ जाता है आत्महत्या का ग्राफ !
लखनऊ , 6 अप्रैल (आईएएनएस)। मौसम बेईमान हुआ..गीत तो आपने सुना ही होगा लेकिन क्या आत्महत्या के लिए मौसम भी जिम्मेदार हो सकता है? चिकित्सक पिछले दिनों बढ़े आत्महत्या के ग्राफ में मौसम को जिम्मेदार मान रहे हैं।
लखनऊ , 6 अप्रैल (आईएएनएस)। मौसम बेईमान हुआ..गीत तो आपने सुना ही होगा लेकिन क्या आत्महत्या के लिए मौसम भी जिम्मेदार हो सकता है? चिकित्सक पिछले दिनों बढ़े आत्महत्या के ग्राफ में मौसम को जिम्मेदार मान रहे हैं।
पिछले दिनों न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि देशभर में छात्रों और अन्य लोगों द्वारा की गई आत्महत्या के आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं। दर्जनों लोगों ने भावनात्मक आवेग में आकर खुदकुशी कर ली।
खास बात यह कि इन आंकड़ों में इन दिनों कुछ ज्यादा ही इजाफा हो हुआ है। अचानक बढ़ रहे इन आत्महत्या के मामलों को हम सब सहज ढंग से इसे तनाव या भावनात्मक आक्रोष की वजह मानकर दरकिनार कर देते हैं लेकिन किसी को इस बात की जानकारी शायद ही हो कि अचानक बढ़ रहे खुदकुशी के ग्राफ में मौसम भी काफी हद तक जिम्मेदार होता है।
तमाम मनोचिकित्सक कहते हैं मौसम का बदलाव भी आत्महत्या के लिय प्रेरित करता है। कुछ मनुष्यों के लिए मौसम का बदलाव इतना खराब होता है कि उनके पास सारी खुशियां होने के बावजूद वह अपने आपको दुनिया का सबसे दुखी आदमी महसूस करने लगते हैं। अवसाद उन्हें इस कदर घेर लेता है कि वह आत्महत्या करने में भी नहीं हिचकिचाते हैं। अगर कोई मामूली सी घटना उन्हें व्यथित करने वाली है तो वह सबसे पहले मर जाने की ही बात करने लगते हैं।
मनुष्य के जीवन पर पड़ने वाले मौसम के अजीबोगरीब बदलाव और पिछले कुछ समय में बढ़े आत्महत्या के मामलों को देखते हुए छत्रपति शाहू जी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय के वृद्धावस्था मानसिक रोग विभागाध्यक्ष प्रो एस़ सी. तिवारी ने कहा, " इन मामलों में चिकित्सकीय भाषा में कहें तो सीजनल डिफेक्टिव डिस्आर्डर भी बड़ी भूमिका निभा रहा है। यह लक्षण गर्मियों, बरसात और सर्दियों की शुरुआत में ज्यादा दिखाई पड़ते हैं। इन मौसम के शुरू होते ही कुछ लोगों को डिप्रेशन और मेनिया जैसी बीमारी घेर लेती है। ऐसे लोग हर बात में आत्महत्या की बात सोचते है जिसमें कई लोग यह कदम उठा भी लेते हैं।"
इसी चिकित्सा विश्वविद्यालय में कार्यरत विश्व स्वास्थ्य संगठन की मनोचिकित्सक डा. मधु पाठक भी खुदकुशी की बढ़ती तादाद में मौसम के बदलाव को भी कई कारणों में से एक मानती हैं। वह बताती हैं बादलों को घिरता देखकर जहां कई लोग बेहद खुश हो जाते हैं। वहीं कुछ लोग इससे अवसाद के शिकार हो जाते हैं।
इतना ही नहीं वह यह भी कहती हैं कि लम्बी काली रात और कृष्णपक्ष के दौरान भी लोग डिप्रेशन व मेनिया के शिकार हो जाते हैं जबकि शुक्लपक्ष में वह क्रियाशील रहते हैं। वह यह भी बताती हैं कि ज्वार भाटा का असर भी समुद्री क्षेत्रों में कई लोगों को ऐसी ही बीमारी की चपेट में ले लेता है।
मनोचिकित्सक बताते हैं कि इस बदलाव में कुछ लोग उदास रहने लगते हैं। उनके मन में अकारण भय बना रहता है। उनके खिलाफ हुई जरा सी भी बात उन्हें निराश कर देती है। वह हीन भावना से ग्रस्त हो जाते हैं। कभी-कभी ऐसे लोग अचानक बहुत खुश हो जाते हैं तो एक ही क्षण में उदासी के पुलिंदा बन जाते हैं।
चिकित्सा विवि के मनोचिकित्सक विभाग के डा. हरजीत मानते हैं कि मौसम के बदलाव के समय ऐसे लोगों पर विशेष ध्यान रखने की जरूरत है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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