बनारसी उद्योग को निगल रहा है चीनी ड्रैगन
वाराणसी, 6 मार्च (आईएएनएस)। इसे हम वर्तमान सामाजिक परिदृश्य का हिस्सा समझ्झें या पूंजीवाद पर हावी होता बाजारवाद लेकिन शायद चीन के ड्रैगन को अपनी ताकत बताने के लिए भारतीय बाजार पर हमला सबसे जरूरी लगा और ग्लोबलाइजेशन का दौर वाराणसी हैंडलूम इंडस्ट्री को निगलने के लिए सबसे माकूल समय लगा।
यही वजह है कि हैंडलूम इंडस्ट्री को चौपट करने में यहां के व्यापारियों और निर्यातकों के अलावा चीन की प्रमुख भूमिका मानी गई। क्योंकि जब से ग्लोबलाइजेशन का दौर शुरू हुआ तो बनारस से सिल्क उत्पादों की मांग बढ़ी।
जाहिर है एकाएक मांग बढ़ने के कारण आपूर्ति न हो पाने से रेशम की तस्करी नेपाल और बांग्लादेश के रास्ते शुरू हुई। इनमें डूप्लिेकेसी बढ़ी और चीन ने तो खुलेआम डुप्लीकेट रेशम भारतीय बाजार में भेजना शुरू कर दिया। अब चीन ने इसका फायदा उठाया और प्राकृतिक रेशम की जगह फैक्ट्री मेड रेशम से भारतीय बाजार को पाट दिया।
नतीजा यह हुआ कि बंगलौर से रेशम आना बंद हो गया और पूरे हिन्दुस्तान के कपड़ा बाजार पर चीनी सिल्क का कब्जा हो गया। बंगलौर के किसान सिल्क की जगह सब्जी की खेती करने पर मजबूर हो गए।
चीनी रेशम के आगे भारतीय रेशम इंडस्ट्री तबाह होने लगी। तब बनारस सिल्क उद्योग में हाहाकार मच गया। बुनकर समस्या पर काम करने वाली एक स्वयंसेवी संस्था ह्यूमन वेलफेयर एसोसियेसिशन के अध्यक्ष डा. रजनीकांत ने बताया की अंग्रेजों की ईस्ट ईस्ट इंडिया कम्पनी ने पूरे भारत के कुटीर उद्योग को बरबाद कर दिया था। उसी तरह चीन भी भारतीय बुनकरों के करघों को तोड़ रहा है और हमारी सरकार चुपचाप उसे टूटते हुए देख रही है।
काफी तबाही और बर्बादी के बाद भारत सरकार नींद से जागी और रेशम के आयात पर एंटी डम्पिंग एक्ट बनाकर बाहर से आने वाले रेशम को थोड़ा महंगा कर दिया। इससे भारतीय रेशम उद्योग को थोड़ी राहत मिली। चीनी रेशम का निर्यात बंद होने से चीन ने दूसरा रास्ता निकाला। अब उसने रेशम की जगह फेब्रिक बेचना शुरू किया।
वाराणसी के रमजान अली बड़े दुख के साथ बताते हैं कि यह जानते हुए भी की डुप्लीकेट रेशमी कपड़े के प्रयोग से हमारी सदियों पुरानी पहचान को चोट पहुंच रही है लेकिन पेट की आग के आगे सारी मर्यादाएं और सिद्धांत नष्ट हो जाते हैं। हाजी बदरुद्दीन तो कहते हैं कि जब सरकार ही इस पर ध्यान नहीं दे रही है तो छोटे व्यापरियों की क्या औकात। अमरेश कुशवाहा दुखी मन से बताते हैं कि चीन से मुकाबला करने के लिए जब तक ठोस कदम नहीं उठाया जाएगा तब तक ऐसे हीं चलेगा।
ग्लोबलाइजेशन, उदारीकरण और डब्लूटीओ के लागू होने से पूरा विश्व भले ही एक गांव में तब्दील हो गया हो, लेकिन दो करोड़ भारतीय बुनकरों की रोटियां उनसे छिन गई हैं। जबकि आंकड़े बताते हैं कि कृषि के बाद बुनकारी का क्षेत्र दूसरा ऐसा सबसे बड़ा सेक्टर है जिससे इतने लोग जुड़े हुए हैं और यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस असंगठित उद्योग से जो निर्यात होता है वह कृषि से कई गुना ज्यादा होता है लेकिन भारत सरकार इस पर ध्यान देना जरूरी नहीं समझ्झती।
फाइलों में भले ही बनारस को क्लस्टर से मेगा क्लस्टर क्षेत्र घोषित करने की कवायद चल रही है लेकिन जब तक गुणवत्ता और चीन की नीतियों से लड़ने के बारे में ठोस कदम नहीं उठाया जाएगा तब तक यह उद्योग तिल तिल कर मरता रहेगा और इससे पूरे देश में जुड़े लगभग दो करोड़ लोगों के सामने रोजी रोटी का संकट बरकरार रहेगा।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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