अब आर्सेनिक से निपटना होगा आसान

By Staff
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Scientist
लखनऊ, 4 अप्रैलः आर्सेनिक नामक विषैला रसायन पदार्थ सिंचाई के माध्यम से खाद्य पदार्थो में पहुंच रहा है जिसके सेवन से हजारों लोग कैंसर जैसी बीमारी के शिकार हो रहे हैं। अब राष्ट्रीय वनस्पति शोध संस्थान के वैज्ञानिकों ने एक शोध के दौरान इस समस्या से निजात दिलाने के रास्ते निकाल लिए हैं।

संस्थान के वैज्ञानिकों ने वैसे जीन का पता लगा लिया है जो सिंचाई के बाद आर्सेनिक के स्तर को कम करने के साथ-साथ उसे अनाज व सब्जियों में पहुंचने से रोकेने में सफल होगा।

इस शोधकार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले वैज्ञानिक डॉ देवाशीष चक्रवर्ती ने कहा, "यह शोध प्लांट डिदेंस मैकेनिज्म को आधार बनाकर किया गया है। शोध में जीन के उन लक्षणों का पता लगाया गया है जो पौधों में आर्सेनिक को जड़ों से आगे बढ़ने ही नहीं देगा।"

उन्होंने कहा "फिलहाल यह शोध धान के पौधों पर किया गया है। लिहाजा शोध के दौरान ऐसे जीन की जानकारी मिली जो धान के पौधे में पहुंचने वाले आर्सेनिक को दोबारा वातावरण में उत्सर्जित कर रहा था।" वैज्ञानिकों का कहना है कि इस विधि से तैयार बीजों को बोने से आर्सेनिक की मात्रा अनाज तक नहीं पहुंच सकेगी।

डा. चक्रवर्ती बताते हैं कि भारत में गंगा और ब्रह्मपुत्र के बेसिन में भू-जल स्तर में आर्सेनिक की मात्रा बहुतायत में पायी जाती है। ऐसे पानी से पौधों की सिंचाई करने पर अनाज तक यह धातु पहुंच जाता है। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र पश्चिम बंगाल है जबकि उत्तर प्रदेश में आर्सेनिक से सबसे ज्यादा प्रभावित जिला बलिया है।
विशेषज्ञों के अनुसार इस रसायन पदार्थ का मानव शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके शरीर में जाने से त्वचा, यकृत, फेफड़े संबंधी बीमारियां हो जाती हैं।

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