प्रसव के दौरान हो रही मृत्यु दर में भारत अव्वल
नई दिल्ली, 3 अप्रैल (आईएएनएस)। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) पत्रिका के अनुसार भारत में बड़े पैमाने पर प्रसव के दौरान महिलाओं की मृत्यु का कारण सरकारी तंत्र में इच्छाशक्ति का अभाव और स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े प्रबंधकों की विफलता है।
विश्व की तुलना में भारत में प्रतिवर्ष सबसे ज्यादा 2 करोड़ 7 लाख बच्चों का जन्म होता है। इस सिलसिले में 100,000 गर्भवती महिलाओं में से 300 से 500 तक की मौत प्रसव के दौरान हो जाती है। जबकि 75,000 से 150,000 माताएं बच्चे को जन्म देने के बाद की शिकार हो जाती हैं।
दिलीप मावलंकर, क्रांति वोरा और एम. प्रकाशम ने डब्ल्यूएचओ पत्रिका के अप्रैल अंक के लेख में लिखा है कि भारत में प्रसव के दौरान लगातार हो रही मृत्यु विश्व भार का 20 प्रतिशत है जो 'सहस्राब्दी विकास लक्ष्य 5' को पूरा करने में अड़चन डाल रही है।
अपने लेख में उन्होंने 'राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन' के गांव-गांव जाकर स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने संबंधी सरकारी वायदों की भी पोल खोल दी।
'एचीविंग मिलेनियम डेवलपमेंट गोल 5 : इज इंडिया सीरियस' शीर्षक लेख स्पष्ट करता है कि जब तक कुशल जन्म उपस्थिति, आपातकालीन जनन देखरेख (ईएमओसी) और नामांकन सेवाएं पूरी तरह सही ढंग से शुरू नहीं की जातीं, भारत प्रसव के दौरान हो रही मृत्यु दर को कभी नहीं रोक पाएगा।
मावलंकर और वोरा, दोनों ही भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद के स्वास्थ्य सेवा प्रबंधन केंद्र से जुड़े हैं जबकि प्रकाशम हैदराबाद स्थित एकेडमी फॉर नर्सिग स्टडीज के लिए काम करती हैं।
आर्थिक वृद्धि की तुलना में भारत में प्रसव के दौरान होने वाली मृत्यु दर अधिक क्यों है? हम मानते हैं कि तकनीकी ज्ञान के बजाय इसका कारण राजनीतिक, प्रशासनिक और देखरेख संबंधी कमियां हैं।
स्वास्थ्य क्षेत्र में सरकार का खर्च सकल घरेलू उत्पाद का 0.9 है जबकि रक्षा, लक्ष्य विहीन सब्सिडी, बेकार के आधाभूत सुविधाओं के नाम पर बजट का एक बड़ा हिस्सा बर्बाद कर दिया जाता है। किसी भी राजनीतिक दल के कार्य सूची में मातृत्व स्वास्थ्य को शामिल नहीं किया गया है।
प्रसव के दौरान हो रहे मृत्यु का एक बड़ा कारण अप्रशिक्षित दाईयों को प्रसव कार्य सौंप देना भी है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।