यूपी में उपग्रह के जरिए पानी की खोज
सूत्रों के मुताबिक रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर (आरएसएसी) के माध्यम से क्रियान्वित की जा रही तथा पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित इस परियोजना को 'नेशनल वैटलैंड इन्वेंटरी एवं असेसमेंट' नाम दिया गया है।
इस महत्वाकांक्षी परियोजना को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान के अहमदाबाद स्थित स्पेस एप्लीकेशन द्वारा कुछ अन्य राज्यों में भी संचालित किया जा रहा है। इस परियोजना का उद्देश्य उत्तर प्रदेश में पृथ्वी की सतह पर पाये जाने वाले सारे प्राकृतिक और मानवनिर्मित जलाशयों का उपग्रह आधारित डिजिटल डाटाबेस तैयार करना है।
इसके तहत तालाबों, झरनों, झीलों, नालों, नदियों, बैराज, टैक व रिजर्वायर के अतिरिक्त जलभराव वाले क्षेत्रों को भी चिन्हित किया जाएगा। इसके साथ ही इनके वर्गीकरण का कार्यक्रम प्रारंभ होगा।
बाद में भौगोलिक सूचना प्रणाली से पता लगाया जाएगा कि मानसून के पहले व बाद में इन जलीय स्त्रोतों में कितना पानी एकत्र रहता है। साथ ही इनकी जानकारी भी हासिल की जाएगी कि इन स्त्रोतों में कितनी जगह कितना पानी फिलहाल उपलब्ध है।
भूमि की सतह पर पाया जाने वाला पानी ही भूजल को रिचार्ज करता है लिहाजा इससे राज्य में भूजल स्तर में गिरावट का भी पता लगाने में भी मदद ली जाएंगी। उधर, सतही जलस्त्रोतों का पता लगाने के लिए आईआरएस-पी6 उपग्रह का इस्तेमाल किया जा रहा है।
इसमें प्रयुक्त लिस थ्री सेंसर 05 हेक्टेयर तक के जलस्त्रोतों का पता लगा सकते है। इस परियोजना के पर्यवेक्षक डा.टी. एस कछवाहा के मुताबिक यह डाटाबेस जल प्रबंधन में महती भूमिका निभाएगा। साथ ही यह राज्य के वेटलैंड के पारिस्थितिकी तंत्र की स्पष्ट तस्वीर पेश करने में भी बखूबी मदद करेगा।