विक्रम संवत की शुरूआत उज्जैन से हुई थी
भोपाल 1 अप्रैल (आईएएनएस) भारतीय पंचांग और काल निर्धारण का आधार विक्रम संवत हैं। इसकी शुरूआत मध्य प्रदेश की उज्जैन नगरी से हुई थी। यह कैलेन्डर राजा विक्रमादित्य के शासन काल में जारी हुआ था इसलिए इसे विक्रम संवत के नाम से जाना जाता हैं।
भारतीय इतिहास में जनप्रिय और न्यायप्रिय शासकों की जब भी बात चलेगी तो वह उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के नाम के बगैर पूरी नहीं हो सकेगी। उनकी न्याय प्रियता के किस्से भारतीय परिवेश का हिस्सा बन चुके हैं। विक्रमादित्य का राज्य उत्तर में तक्षशिला जिसे वर्तमान में पेशावर (पाकिस्तान) के नाम से जाना जाता हैं, से लेकर नर्मदा नदी के तट तक था। उन्होंने यह राज्य शक्तिशाली शक आक्रांता खरोश जो मध्य एशिया से आया था, को परास्त कर हासिल किया था। राजा विक्रमादित्य ने यह सफलता मालवा के निवासियों के साथ मिलकर गठित जनसमूह और सेना के बल पर हासिल की थी।
विक्रमादित्य की इस विजय के बाद जब राज्यारोहण हुआ तब उन्होंने प्रजा के तमाम ऋणों को माफ करने का ऐलान किया तथा नए भारतीय कैलेंडर को जारी किया, जिसे विक्रम संवत नाम दिया गया। ईसा पूर्व 57 में जारी किया गया विक्रम संवत आज तक भारतीय पंचाग और काल निर्धारण का आधार बना हुआ हैं। प्रति वर्ष नव विक्रम संवत की शुरूआत पर उज्जैन में रंगारंग कार्यक्रमों की धूम रहती हैं और यहां के लोग अपने राजा को याद कर नए साल का स्वागत करते हैं।
विक्रम संवत की शुरूआत पर मध्य प्रदेश का संस्कृति विभाग और उज्जैन विकास प्राधिकरण मिलकर सांस्कृतिक पुनर्जागरण का समारोह विक्रमोत्सव आयोजित करते हैं। सारे कार्यक्रम राजा विक्रमादित्य पर केन्द्रित होते हैं और राजा की न्यायप्रियता और महानता से हर किसी को अवगत कराने की कोशिश की जाती हैं। इस वर्ष का यह समारोह 2 अप्रैल से शुरू हो रहा हैं। दो से छह अप्रैल तक महानाट्य सम्राट विक्रमादित्य का मंचन होगा। इसी दौरान चार अप्रैल को संवत्सरों पर चर्चा, पांच अप्रैल को पंचांग एवं ज्योतिष सम्मेलन तथा मुख्य सास्कृतिक समारोह छह अप्रैल को होगा। इस दिन पाश्र्व गायक कुमार शानु को विक्रम संगीत अलंकरण दिया जाएगा। सात अप्रैल को प्रात: छह बजे क्षिप्रा तट पर सूर्य को अघ्र्य दिया जाएगा और काल की अवधारणा पर राष्ट्रीय सम्मेलन होगा।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।