मासूम बच्चों ने कहा, गड्ढ़ों से लगता है डर!
वाराणसी, 31 मार्च (आईएएनएस)। पहले देश में अपहरण और आतंकवाद से बच्चे डरते थे और सरकार और समाज को उनसे बचाने की गुहार लगाते थे। अब उनके जान के पीछे एक नया खतरा हाथ धोकर पड़ा है। वह है लापरवाही में छोड़ दिए गए गड्ढ़े। इन गड्ढ़ों में आए दिन किसी न किसी मासूम के फंसने की खबर आती रहती है।
आज वाराणसी में एक स्वयं सेवी संस्था ने बच्चों की सुरक्षा के लिए बच्चों की एक यात्रा निकाली और चेतावनी दी कि यदि सड़क पर खुले हुए गड्ढों को शीघ्र बंद नहीं किया गया तो सभी स्कूलों के बच्चे सड़कों पर उतरने के लिए बाध्य होंगे। बच्चों के इस मार्च में उनके अभिभावक भी शामिल थे।
वाराणसी के सिगरा इलाके में हाथों में तख्ती लिए सड़कों पर निकल कर बच्चों ने रविवार को उन लोगों को चेताने की कोशिश की जो समझदार हो कर भी नासमझी करते रहते हैं यानी गड्ढे खुला छोड़ देते हैं। इन गड्ढों को खोदते तो अपने स्वार्थ के लिए हैं लेकिन यही गड्ढे अकसर बच्चों के लिए मौत का कुआं बन जाता है। लिहाजा आज बच्चों ने अपनी जान बचाने के लिए जिला प्रशासन से गुहार लगाई।
इस यात्रा को निकाल रहे बच्चों की मंजिल किसी प्रशासनिक अधिकारी के यहां जा कर ज्ञापन देना नहीं था बल्कि इनकी मंजिल तो शहर के वो गड्ढे थे जो आज भी जानलेवा बन कर सड़कों पर खुले हुए पड़े हैं। गड्ढों तक पहुंच कर बच्चे इन्हें पाट तो नहीं सकते थे लिहाजा वो हर गड्ढे पर एक चेतावनी मार्क बना देते थे। जिसका मकसद था की सब कुछ देख कर भी आंख बंद किए हुए प्रशासन की आंख खुल सके।
बच्चों की यह मुहिम विशाल भारत नामक संस्थान के बैनर तले चल रही है। इसके अध्यक्ष डा. राजीव श्रीवास्तव ने कहा, "आज कल बच्चे और उनके अभिभावक अपहरण से ज्यादा इन गड्ढों से डरने लगे हैं। यदि जिला प्रशासन शीघ्र इन गड्ढों पर जालियां नहीं लगवाता है तो बनारस के सभी बच्चे सड़कों पर उतरने को बाध्य होंगे।"
जाहिर है कि जिस गड्ढे से बच्चे बेहद डरे हुए हों तो उनके मां-बाप को भी ये गड्ढे कम नहीं डरा रहे होंगे। उन्हें हर वक्त ये डर बना रहता है की घर से बाहर गया उनका बच्चा कहीं धोखे से किसी गड्ढे में ना गिर जाए। यही वजह है कि बच्चों के अभिभावक इस नई तरह की समस्या से बेहद परेशान नजर आ रहे थे। एक अभिभावक दीपक कुमार का कहना था कि बनारस में सड़क के किनारे कई गड्ढे ऐसे हैं जिसमें कोई बच्चा गिर जाए तो उसे किसी भी देश की सेना नहीं बचा सकती है।
मौत का कुआं बन रहे इस तरह के गड्ढों की चपेट में अब तक देश के कई बच्चें आ चुके हैं। हर बच्चा प्रिंस या वंदना की तरह भाग्यशाली नहीं है जो गहरे गड्ढे में फंसने के बाद भी बच जाए। बावजूद इसके जिला प्रशासन कोई एहतियात नहीं बरत रहा है।
अगर अकले वाराणसी के सिगरा इलाके की बात की जाए तो चौदह गड्ढे ऐसे हैं जो बच्चों के लिए कभी मौत का कुआं बन सकते हैं। इससे महज सौ मीटर की दूरी पर नगर निगम का दफ्तर है लेकिन किसी भी अधिकारी को यह गड्ढे दिखाई नहीं देते। ऐसा लगता है कि जिला प्रशासन वाराणसी में भी किसी बड़ी घटना का इंतजार कर रहा हो।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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