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इंद्रधनुष के रंगों से रंगा है देश : सिद्धार्थ काक

By Staff
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नई दिल्ली, 30 मार्च (आईएएनएस)। जब टेलीविजन का मतलब सिर्फ दूरदर्शन होता था तब देश-दुनिया की खूबसूरती को दर्शक सिद्धार्थ काक और रेणुका शहाणे के साथ सुरभि के माध्यम से निहारते थे। अब एक बार फिर सिद्धार्थ काक एनडीटीवी इमेजिन के माध्यम से इंडियाधनुष में देश की कला, परंपरा और संस्कृति को दर्शकों के बीच लाने का बेहतरीन प्रयास कर रहे हैं।

नई दिल्ली, 30 मार्च (आईएएनएस)। जब टेलीविजन का मतलब सिर्फ दूरदर्शन होता था तब देश-दुनिया की खूबसूरती को दर्शक सिद्धार्थ काक और रेणुका शहाणे के साथ सुरभि के माध्यम से निहारते थे। अब एक बार फिर सिद्धार्थ काक एनडीटीवी इमेजिन के माध्यम से इंडियाधनुष में देश की कला, परंपरा और संस्कृति को दर्शकों के बीच लाने का बेहतरीन प्रयास कर रहे हैं।

अब तक देश-दुनिया से जुड़ी जानकारियों पर सिद्धार्थ ने हजारों कार्यक्रम तैयार कर लिए हैं जिनमें डॉक्यूमेंट्रीज और टेलीविजन के कार्यक्रम भी शामिल हैं। हालांकि अपनी जिंदगी में उन्होंने हर काम किए हैं, लेखन, निर्देशन, एक्टिंग, संवादक, पत्रकारिता, पुस्तक लेखन आदि।

उनका मानना है कि एक व्यक्ति को हर काम आना चाहिए। वैसे भी जब तक कलाकार निर्देशन से वाकिफ नहीं होगा वह अच्छा एक्टर साबित नहीं हो सकता। ठीक उसी तरह बेहतर संवाद लिखने से लेकर उसे कैमरे के सामने बोलने की अदा तक सब कुछ पता हो तो समझें कि आपको दर्शकों के नब्ज की पकड़ है।

बेशक इन सब कार्यो के लिए सिद्धार्थ को काफी शोध करना पड़ता है और इसके लिए उन्होंने अपनी एक टीम भी तैयार कर रखी है जिसमें हर बार कुछ नए लोगों का साथ भी उन्हें मिलता है। वह बताते हैं कि इस तरह वह छोटे-छोटे शहरों के टैलेंट्स को बाहर लाने और वहां की खूबियों को पूरे देश तक पहुंचाने की कोशिश भी करते हैं।

सुरभि में रेणुका शहाणे के बाद इंडियाधनुष में उनका साथ दे रही हैं, अमी त्रिवेदी। नए कलाकारों के साथ काम करने को वह बुरा नहीं बल्कि बहुत ही अच्छा अनुभव मानते हैं क्योंकि इस तरह से उन दोनों पीढ़ियों के बीच की दूरी को कम करना आसान हो जाता है। इस तरह हर उम्र के लोगों के साथ वह ज्यादा से ज्यादा कार्यक्रम को जोड़ पाएंगे, ऐसा भी मानते हैं। यही नहीं, युवाओं की नजर से इस तरह वे खुद को जुड़ा हुआ भी पाएंगे।

सिद्धार्थ के अनुसार, हमारा देश आज बहुत ही मजबूत स्थिति में है और इसे किसी के सामने झुकने की जरूरत नहीं है। इसमें हमारी प्राचीन परंपरा का बहुत बड़ा हाथ है जिसने हमें सबकुछ दिया है इसलिए जरूरी है कि हम इस परंपरा को छोड़कर नहीं बल्कि इसे साथ लेकर चलना सीखें। इस तरह हम आम नहीं बल्कि और भी खास हो जाएंगे।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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