मध्य प्रदेश के राज्य सभा चुनाव में प्रबंधन की जीत
भोपाल, 29 मार्च (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश में हुए राज्य सभा के चुनाव में हार तथा जीत किसी की भी हुई हो, मगर यहां वाकई में जीता तो प्रबंधन है। तभी तो आठ वोटों का भाजपा ने कुछ इस तरह प्रबंधन किया कि गाल बजाने वाले कांग्रेस की हवा ही निकल गई। इस तरह प्रबंधन के मामले में भाजपा ने कांग्रेस को पटखनी देकर तीनों सीटों पर कब्जा कर लिया।
प्रदेश से राज्य सभा के लिए तीन सदस्यों का चुनाव होना था। एक उम्मीदवार की जीत के लिए कम से कम 58 विधायकों का समर्थन जरूरी था। विधायकों के अंक गणित के मुताबिक दो सीटें भाजपा की झोली में जाना तय थी। ऐसा इसलिए क्योंकि उसके प्रदेश विधान सभा में 166 विधायक हैं। उसे तीसरी सीट पर कब्जा करने के लिए 8 विधायकों की और दरकार थी। वहीं कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार विवेक तन्खा के पास कांग्रेस के 41 और सपा के 8 विधायक थे। कुल मिलाकर उन्हें भी 9 विधायकों का समर्थन चाहिए था।
इस तरह जहां भाजपा को 8 वहीं तन्खा को 9 विधायकों का समर्थन मिलने पर ही जीत मिल सकती थी। इन स्थितियों के बीच उन विधायकों की कदर बढ़ गई थी, जिनकी न तो पार्टी का और न ही उनका कोई खास रूतबा था। विधान सभा में गौंडवाना गणतंत्र पार्टी के तीन, बसपा के दो, राष्ट्रीय समानता दल के दो, एऩ सी़ पी़, सी़ पी़ एम़ तथा निर्दलीय एक - एक विधायक हैं। विधायकों की जरूरत के मद्देनजर दोनों ओर से इन पर डोरे डाले जाने लगे।
विधायकों की खरीद फरोख्त की चर्चाएं जोर पकड रहीं थी, तभी सपा के विधायक किशोर समरीते ने कांग्रेस की ओर से दस लाख रुपये भेजे जाने का आरोप लगाकर खलबली मचा दी थी। इसके बाद भी दोनों ओर से विधायकों को मनाने का दौर चलता रहा। हर पार्टी को अपने विधायकों के टूटने तक का डर था। इसलिए व्हिप जारी की गई। व्हिप जारी करने के मामले में भाजपा भी पीछे नहीं रही क्योंकि राष्ट्रपति चुनाव का कड़वा अनुभव उसके सामने था।
भाजपा ने विधायकों के मनाने की जिम्मेदारी अपनी सरकार के चार मंत्रियों नरोत्तम मिश्रा, अनूप मिश्रा, डॉ़ गौरी शंकर शेजवार और हरजीत सिंह बब्बू पर सौंप रखी थी। वहीं कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार के लिए विधायकों से चर्चा सपा के राष्ट्रीय महासचिव अमर सिंह, कॉग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष सुरेश पचौरी, महासचिव दिग्विजय सिंह ने की।
आखिरकार कांग्रेस का प्रबंधन भाजपा के आगे फेल हो गया और वह कुल 51 विधायकों का ही समर्थन हासिल कर पाया। दूसरी ओर भाजपा ने जरूरत के आठ विधायक आसानी से जुटा लिए। भाजपा के प्रबंधन का नजारा तब साफ देखने को मिला जब राज्य मंत्री हरजीत सिंह गौडवाना गणतंत्र पार्टी के दो विधायको के गले में हाथ डालकर विधान सभा में प्रवेश करते दिखे।
इस तरह राज्य सभा की तीनों सीटें जीतकर भाजपा ने इतना तो साफ कर ही दिया है कि उसका मैनेजमेन्ट कांग्रेस से कहीं ज्यादा कारगर रहा है। इस चुनाव में जीते जरूर भाजपा के उम्मीवार हैं लेकिन असली जीत तो प्रबंधन की हुई है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।