उप्र में बरकरार है हर्बल गुलाल का जलवा
लखनऊ, 18 मार्च (आईएएनएस)। लोग पैसे की कीमत पर अपने व दूसरों के स्वास्थ्य को ज्यादा तवज्जो देने लगे हैं। यही वजह है कि इस बार भी प्रदेश में अन्य परंपरागत रासायनिक रंगों की तुलना में हर्बल गुलाल ने सबसे ज्यादा अपना रंग जमा रखा है।
लखनऊ, 18 मार्च (आईएएनएस)। लोग पैसे की कीमत पर अपने व दूसरों के स्वास्थ्य को ज्यादा तवज्जो देने लगे हैं। यही वजह है कि इस बार भी प्रदेश में अन्य परंपरागत रासायनिक रंगों की तुलना में हर्बल गुलाल ने सबसे ज्यादा अपना रंग जमा रखा है।
लखनऊ से लेकर कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी और बरेली जैसे शहरों में इसकी बिक्री जोरों पर है।
गौरतलब है त्वचा पर रासायनिक रंगों के दुष्प्रभाव को देखते हुए आठ वर्ष पूर्व लखनऊ स्थित राष्ट्रीय वानस्पतिक अनुसंधान केन्द्र ने ऐसे हर्बल गुलाल की जरूरत महसूस की थी।
लिहाजा डा. वीरेन्द्र लाल कपूर ने होली के लिए विशेष रूप से हर्बल गुलाल तैयार किया था। इस गुलाल की खासियत है कि इसे न केवल त्वचा से आसानी से छुड़ाया जा सकता है बल्कि यह दुष्प्रभावों से भी कोसो दूर रखता है।
एनबीआरआई के वैज्ञानिक बताते है यह गुलाल इमली के बीज, बेल, अनार के छिलके, यूकेलिप्टस की छाल, अमलतास की फली का गूदा, प्याज का ऊपरी छिल्का, चुकंदर और हल्दी आदि वानस्पतिक पदाथरें से रंग तैयार करके उनको एक निश्चित अनुपात में गंधकों और पाउडर के साथ मिलाकर लाल, पीला, गुलाबी, हरा, भूरा, नीला इत्यादि रंगों में हर्बल गुलाल तैयार किया जाता है।
डा. कपूर बताते है कि इस बार डीएमएल छत्तीसगढ़ ने हर्बल गुलाल को चार खुशबुओ जैसमीन, गुलाब, खस और चंदन में उतारा है जबकि आर बी ने फैंसी पैकिंग पर जोर दिया है।
उन्होंने जानकारी दी कि कंपनी के मुताबिक प्रदेश में हर्बल गुलाल की तेजी से मांग हो रही है। अन्य गुलाल की तुलना में इसकी कीमत ज्यादा होने के बावजूद लोग इसे बड़ी मात्रा में खरीद रहें हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
**