इकोनामिक सर्वेः चाहिए एक और हरित क्रांति

By Staff
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ऩई दिल्ली, 28 फरवरीः इकोनामिक सर्वे की ताजा रिपोर्ट में कृषि क्षेत्र की धीमी रफ्तार पर चिंता जताई गई है. अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अगर खेती में हो रहे विकास की दर इतनी धीमी रही तो इसका खामियाजा भारत की अर्थव्यवस्था को उठाना पड़ सकता है. उनका कहना है कि इसमें किसी भी तरह के उतार या चढ़ाव का असर हमारे पूरे सकल घरेलू उत्पाद पर पड़ता है. मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक कृषि क्षेत्र में विकास की रफ्तार अभी 2.6 प्रतिशत पर ही अटकी हुई है.

विशेषज्ञों का मानना है कि इस धीमी रफ्तार की वजह देश में भर में सिंचाई के साधनों में कमी, तकनीकी जानकारी का अभाव और खेती के तरीकों और उसकी मार्केटिंग में पिछड़ापन है, जो खास तौर पर देश के पिछड़े क्षेत्रों में बहुतायत से देखने को मिलता है. रिपोर्ट के मुताबिक विश्व बाजार में छाई अनिश्चितता और दुनिया भर में खाद्य पदार्थों, इंधन और खाद्य तेलों की बढ़ती कीमतों को देखते हुए हमारे देश की कीमतों में स्थिरता और आर्थिक निश्चिंतता बहुत कुछ कृषि क्षेत्र के विकास पर निर्भर करती है.

रिपोर्ट में बीते कुछ सालों के दौरान कृषि और संबंधित सेक्टर में विविधता के अभाव को रेखांकित किया गया है. रिपोर्ट में दूसरी हरित क्रांति की जरूरत पर जोर दिया गया है. खास तौर पर सूखा प्रभावित इलाकों में किसानों की आमदनी बढ़ाने पर जोर है. वानिकी और मत्स्य पालन में भी विकास की स्थिति चिंताजनक है.

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