महर्षि महेश की आध्यात्मिक यात्रा
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से भौतिक शास्त्र में स्नातक उपाधि प्राप्त महर्षि ने वर्ष 1944 में बद्रीनाथ स्थित ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती से गुरुदीक्षा प्राप्त की तथा उनका शिष्यत्व ग्रहण किया. 1941 से 1953 तक वे स्वामी जी के समीप ही रहे. स्वामी जी द्वारा ही महर्षि को बाल ब्रह्मचर्य महेश नाम प्रदान किया गया.
1955 में महर्षि ने उत्तरकाशी से प्रस्थान किया तथा लोगों को पारंपरिक ध्यान योग के बारे में ज्ञान प्रदान करना प्रारम्भ कर दिया. आगे चलकर महर्षि ने ध्यान की एक नई तकनीक का विकास किया जिसे ध्यान की उच्चीकृत अवस्था अथवा 'ट्रेन्सेडेंटल मेडिटेशन' के नाम से जाना गया. वर्ष 1958 में महर्षि महेश योगी ने विश्व भ्रमण प्रारम्भ किया तथा 1959 में अमेरिका पहुंचकर 'ट्रेन्सेडेंटल मेडिटेशन मूवमेंट' की स्थापना की.
महर्षि की इस विधा का पश्चिमी देशों में भरपूर स्वागत किया गया तथा 1960 के दशक में इसकी लोकप्रियता ने नए कीर्तिमान स्थापित किए. विशेषत: 1968 में रॉक ग्रुप 'बीटल्स' द्वारा महर्षि का शिष्यत्व ग्रहण किए जाने के बाद पश्चिमी संसार में वे अत्यधिक लोकप्रिय हो गए.
इसके
अतिरिक्त
महर्षि
ने
योग
व
ध्यान
साधना
पर
अनेक
पुस्तकें
भी
लिखीं.
वर्ष
1990
के
बाद
महर्षि
नीदरलैंड
के
वेलड्रॉप
शहर
में
स्थानांतरित
हो
गए
तथा
वहीं
पर
निवासरत
हो
गए.
5
फरवरी
2008
मंगलवार
को
वहीं
पर
उनका
निधन
हो
गया.