तारे जमीन पर जैसी कोशिश रंगमंच पर संभव नहीं ..एम के रैना
नयी दिल्ली 06 जनवरी .वार्ता. राजधानी में चल रहे भारत रंग महोत्सव मेंें ब व कारंत पुरस्कार से सम्मानित और हलिया प्रदशित फ्िल्म ..तारे जमीन पर ..में संक्षिप्त भूमिका निभाने वाले एम के रैना ने कहा है कि राष्ट्रीय नाटय विद्यालय .एनएसडी .में बच्चों के लिये संस्कार रंग टोली लम्बे समय से काम कर रही है लेकिन वह इस फ्िल्म जैसा प्रभाव पैदा नहीं कर सकी
श्री रैना ने यूनीवार्ता से विशेष साक्षात्कार में कहा कि उन्होंने कहा कि इसकी वजह यह है कि सिनेमा और रंगमंच दो अलग अलग माध्यम हैं 1इसलिये दोंनो की तुलना नहीं की जानी चाहिये 1विषय एक होने के बावजूद दोनों का दर्शक वर्ग और दर्शको तक उनकी पहुंच अलग अलग होने क े कारण रंगमंच का प्रभाव सिनेमा जैसा नहीं हेा सकता
श्री रैना ने हिन्दी नाटय लेखन पर चिंता प्रकट करते हुये कहा कि मोहन राकेश और भीष्म साहनी के बाद इक्का दुक्का अपवादों को छोड कर हिन्दी में खेले जा सकने योग्य नाटकोें की रचना नहीं हुयी है 1इस घोर संकट का परिणाम यह हुआ है कि रंगकर्मी अब खुद लेखक की भूमिका में आ रहे हैं 1उन्हेानें कहा कि वह खुद लेखक नहीं है लेकिन अच्छी रचनाअेां का अभाव उन्हें लेखन की आेर धकेल रहा है 1वह इस समय स्वयं एक पुराने नाटक नील दर्पण पर काम कर रहे हैं 1यह नाटक बि्रटिश दमन के विरोध में लिखा गया था
सन 1970 में एनएसडी के स्नातक और 1995 मेंं संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित श्री रैना ने कहा कि आज के दौर में जो भी नाटक लिखे जा रहें है वे समसामायिक मुददों से दूरी बनाये हुये हैं 1किसानों क ी आत्महत्या जैसी कोर कर रख देने वाले मुददे पर नाटक नही है 1 दरअसल हो यह रहा है कि लेखक शहरी लोगेां की समस्यायों पर ही ध्यान दे रहें है और ग्रामीणों की क्या समस्या है उन्हें किन प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड रहा है लेखक इससे नजरें चुरा रहें हैं1उन्हेाने कहा कि लेकिन इस अंधेरे में उजाले वाली बात यह है कि स्वयं ग्रामीण अपनी समस्यायों को लेकर रंगमंच पर आ रहे हैं1 शोभित बिष्ट मधूलिका रामलाल1420जारी वार्ता