वन अधिकार अधिनियम अन्याय नहीं होने देगा
नई दिल्ली. 02 जनवरी .वार्ता. आदिवासी मामलों के मंत्रालय ने वन्य जीव संरक्षण और आदिवासियों के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों की आलोचना के बीच वन अधिकार संबंधी नए अधिनियम पर टिप्पणी जारी करते हुए आज आश्वासन दिया कि यह कानून आदिवासियों तथा वनों पर निर्भर अन्य लोगों के साथ होने वाले अन्याय को रोकेगा और वन्य जीव संरक्षण में सहायक साबित होगा
अनुसूचित जनजाति तथा वनों पर परंपरागतरूप से निर्भर लोगों की पहचान के बारे में सरकार ने कल अधिसूचना जारी की थी1 इस संबंध में मिली प्रतिक्रिया पर आज यहां जारी एक आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा गया कि नए कानून के तहत जंगल पर निर्भर लोगों को वन भूमि के इस्तेमाल के अधिकार दिए गए हैं और वे वनक्षेत्र में ही वहां के उत्पादों को एकत्रित कर उनका इस्तेमाल कर सकेंगे
अधिनियम के अनुसार इन अधिकारों का इस्तेमाल वे आदिवासी कर सकते हैं जो 13 दिसंबर 2005 से पहले वनों में रहकार जीवन यापन कर रहे हैं1 इसके साथ ही वे वनवासी भी इन अधिकारों के इस्तेमाल के लिए पात्र हैं जिनकी तीन पीढियां उक्त तिथि से पहले वनों पर आश्रित हैं
नए कानून के अनुसार वन क्षेत्रों के अधिकार का दावा ग्राम पंचायत करेगी और वन अधिकार समिति के सदस्य इस दावे की जांच पडताल करेंगे1 समिति में ग्राम पंचायत के 10 से 15 सदस्य होंगे जिनमें से एक तिहाई अनुसूचित जन जाति के और एक तिहाई महिला सदस्य होंगी1 समिति मौके पर जाकर स्थिति का आकंलन करेगी और अपनी संस्तुति उप मंडलीय स्तर की समिति को भेजेगी जो इस बारे में अंतिम निर्णय के लिए प्रस्ताव जिला स्तरीय समिति को भेजेगी
अभिनव.शिव.रमेश2247वार्ता