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करणजीत ने जेल में तीन साल पहले आयोजित व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यशाला में मोमबत्तियां बनाना सीखा था और आज वह .रोशनी. नाम की ये मोमबत्ती बनाने वाली टीम का इंचार्ज है
उसने कहा.. जब मैं यहां आया था. तो बेहद मायूस और अकेला था. लेकिन गुजरते वक्त के साथ ही मैं जेल को अपना घर मानने लगा हूं1 अब तो मैं मोमबत्ती बनाने में व्यस्त हूं और घर की याद मुे कभी कभार ही आती है1.. .रोशनी. मोमबत्तियां सबसे पहले 2004 में बाजार में उतारी गयी थीं1 उसके बाद से हर साल ही इनकी अच्छी बिक्री होती है1 जिला जेल की अधीक्षक रजनी सहगल ने बताया कि वर्ष 2005 में जेल को इनसे ढाई लाख पये की आमदनी हुई. जो पिछले वर्ष बढकर तीन लाख पये तक पहुंच गयी
सुश्री सहगल ने बताया कि मोमबत्ती बनाना कैदियों के लिए सजा नहीं है. बल्कि सुधार का एक तरीका है1 उन्हें काम के एवज में प्रतिदिन 24 पये मिलते हैं1 इन्हें तीन हिस्सों में बांटा जाता है1 पहला हिस्सा अपराध के शिकार. दूसरा हिस्सा कैदी और आखिरी हिस्सा राज्य कोष को जाता है
रिषभ.रीता लखमी140
वार्ता
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