विदेश मंत्री तीन दिवसीय रुस यात्रा पर
नई दिल्ली, 11 अक्टूबरः विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी आर्थिक,प्रतिरक्षा,परमाणु और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भारत और रुस के बीच रणनीतिक भागीदारी को नया आयाम देने के लिए तीन दिन की यात्रा पर आज मास्को रवाना हुए.
राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की गत जनवरी में भारत यात्रा के बाद किसी प्रमुख भारतीय नेता की यह पहली रुस यात्रा है.श्री मुखर्जी इस यात्रा के दौरान श्री पुतिन और विदेश मंत्री सगेई लावरोव से भेंट करेंगे तथा भारत-रुस सरकारों के आयोग की बैठक की सह अध्यक्षता करेंगे.श्री मुखर्जी की यात्रा ऐसे समय हो रही है जब प्रतिरक्षा क्षेत्र में भारत रुस सहयोग नई मंजिलें तय करने जा रहा है.
इसी महीने रक्षा मंत्री ए के एंटनी रुस जा रहे हैं.जिसमें अनेक रक्षा सौदों को अंतिम रुप दिए जाने की योजना है.इन समझौतों पर अंतिम मुहर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की नवम्बर में प्रस्तावित यात्रा के दौरान लग सकती है.अफगानिस्तान में तालिबान के फिर से सिर उठाने तथा ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर अमरीका समेत पश्चिमी देशों पर प्रतिबंधों की धमकी के संदर्भ में भी श्री मुखर्जी रुसी नेताओं से विचार विमर्श करेंगे.
भारत और रुस दोनों ईरान के खिलाफ किसी प्रकार की सैन्य कार्रवाई या ऐसी धमकियों को अनुचित करार दे चुके हैं.भारत-रुस संबंध काल खंड की सभी सीमाओं और अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति के तमाम दांव पेंचों से अप्रभावित रहते हुए परंपरागत रुप से मजबूत बने हुए हैं.दोनों देशों की ओर से उच्चस्तरीय यात्राओं ने इन्हें और मजबूती दी है.
श्री पुतिन की पिछली भारत यात्रा इसका प्रमाण है.जिसमें भारत में रुस की मदद से नए परमाणु बिजली घरों के निर्माण के अलावा कई अहम करार किए गए.दोनों देशों द्वारा एक दूसरे को अपने बाजार में ज्यादा मौके देने के बारे में गठित साझा कार्यदल ने गत जुलाई में अपनी रिपोर्ट को अंतिम रुप दे दिया था.
आतंकवाद के खिलाफ भारत और रुस एक स्वर में बोलते रहे हैं.रुस ने दिल्ली और मुंबई समेत भारत में विभिन्न स्थानों पर हुई आतंकवादी घटनाओं की भर्त्सना की है.तथा श्री पुतिन ने मुंबई में 11 जुलाई 2006 को लोकल ट्रेनों में बम विस्फोटों के लिए जिम्मेदार लोगों को सख्त सजा तजवीज की थी.
श्री मुखर्जी की यात्रा रुस की राजनीति में होने जा रहे एक बडे़ बदलाव के पूर्व हो रही है.श्री पुतिन अगले वर्ष के शुरुआत में अपने दो बार के राष्ट्रपति कार्यकाल के बाद पद छोड़ रहे हैं तथा क्रेमलिन में उनके उत्तराधिकारी को लेकर अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में दिलचस्पी भरे कयास लगाए जा रहे हैं.
भारत की दिलचस्पी इसमें होगी कि क्रेमलिन का नया नेतृत्व भारत-रुस संबंधों के प्रति क्या वैसी ही गर्मजोशी दिखाएगा जैसी श्री पुतिन ने दिखाई थी.