उर्दू साहित्य जगत के अज़ीम शायर और गीतकार निदा फ़ाजली के जन्मदिंन पर
मुंबई "कभी किसी को मुकम्मल जहां नही मिलता,कहीं ज़मीं तो कहीं आसमां नही मिलता"उर्दू साहित्य जगत के अज़ीम शायर और गीतकार निदा फ़ाजली के जन्मदिंन के मौके पर उर्दू साहित्य और बॉलीवुड में उनके योगदान को याद करने और उनकी ग़ज़लों में जिंदगी की कशमकश की शिद्दत को महसूस करने पर पता चलता है कि फ़ाजली साहब ने जिंदगी के उतार चढ़ाव तथा जीवन के सभी पहलुओं को बहुत ही क़रीब से जिया है.यही वजह है कि उनकी शायरी में ज़िंदगी की लचक मिलती है.
12 अक्तूबर 1938 को दिल्ली में जन्मे निदा साहब को शायरी विरासत में मिली.उनके घर में उर्दू और फ़ारसी के दीवान भरे पड़े थे. निदा फ़ाजली के वालिद भी शेर-ओ-शायरी में दिलचस्पी लिया करते थे और उनका अपना काव्य संग्रह भी था.निदा साहब अक्सर उनके काव्य संग्रह को पढ़ा करते थे.निदा फ़ाजली ने वर्ष 1954 में स्नातकोत्तर की शिक्षा ग्वालियर कालेज से पूरी की.आज़ादी के बाद उनका पूरा परिवार पाकिस्तान चला गया लेकिन उन्होंने हिंदुस्तान मे ही रहने का फ़ैसला किया.निदा एक दिन एक मंदिर के सामने से गुजर रहे थे तभी उन्हें सूरदास की एक कविता सुनाई पड़ी,कविता में धा और कृष्ण की जुदाई के प्रसंग को दर्शाया गया था. निदा फ़ाजली इस कविता को सुनकर काफी भावुक हो गए और उन्होंने फ़ैसला किया कि वह भी एक कवि के रूप में अपनी पहचान बनाएंगें.
निदा फ़ाजली, मीर और ग़ालिब की रचनाओं से काफी प्रभावित हुए उन दिनों उर्दू साहित्य के लेखन की एक सीमा निर्धारित थी. धीरे-धीरे उन्होंने उर्दू साहित्य की बंधी-बंधाई सीमाओं को तोड़ दिया और अपने लेखन का अलग अंदाज़ बनाया.वर्ष 1964 में अपने सपनों को एक नया रूप देने के लिए वह मुंबई आ गए.मुंबई आने के बाद निदा को बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. इस बीच उन्होंने धर्मयुग और ब्लिट्ज जैसी पत्रिकाओं में लिखना शुरू कर दिया.अपने लेखन की नई शैली की वजह से वह कुछ ही समय में
लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षति करने में कामयाब हो गए इस दौरान उर्दू साहित्य के कुछ प्रगतिशील लेखकों और कवियों की नज़र उनपर पड़ी जो उनकी प्रतिभा से काफी प्रभावित हुए.निदा फ़ैसला के अंदर उन्हें एक उभरता हुआ कवि दिखाई दिया और उन्होंने उनको प्रोत्साहित करने के लिए मुशायरों में आने का न्योता दिया.
मुशायरों में हिस्सा लेने पर उन्हे देश भर में शोहरत मिलने लगी.सत्तर के दशक में मुंबई मे अपने बढ़ते खर्चो को देखकर उन्होंने फिल्मों के लिए भी गीत लिखना शुरू किया लेकिन फिल्मों की असफलता के बाद उन्हे अपना फिल्मी कैरियर डूबता नजर आया फिर भी उन्होंने हिम्मत नही हारी और अपना संघर्ष जारी रखा.धीरे-धीरे मुंबई में उनकी पहचान बनती गई. लगभग दस वर्षो तक मायानगरी में संघर्ष करने के बाद वर्ष 1980 मे प्रदर्शित फिल्म'आप तो ऐसे ना थे'में अपने गीत'तू इस तरह से मेरी जिंदगी मे शामिल है'की सफलता के बाद निदा फ़ाजली बतौर गीतकार फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने मे सफल हो गए.इस फिल्म की सफलता के बाद निदा को कई फिल्मों के प्रस्ताव मिलने शुरू हो गए.इन फिल्मों मे बीबी ओ बीबी, आहिस्ता-आहिस्ता,नजराना प्यार का,शामिल हैं.इस बीच उन्होंने कई छोटे बजट की फिल्में भी की.
संगीतकार खय्याम के निर्देशन में उन्होंने फिल्म आहिस्ता-आहिस्ता के लिए'कभी किसी को मुकम्मल जहां नही मिलता'गीत लिखा.आशा भोंसले और भूपिंदर सिंह की आवाज में अपने इस गीत की सफलता के बाद निदा फ़ाजली ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.इस गीत ने पूरे भारत में धूम मचा दी.इसके बाद निदा फ़ाजली ने सफलता की नई बुलंदियों को छुआ और एक से बढ़कर एक गीत लिखे.
वर्ष 1983 निदा फ़ाजली के सिने कैरियर का अहम पड़ाव साबित हुआ.फिल्म रजिया सुल्तान के निर्माण के दौरान गीतकार जां निसार अख्तर की आकस्मिक मृत्यु के बाद निर्माता कमाल अमरोही ने निदा फ़ाजली से फिल्म के बाकी गीत को लिखने की पेशकश की.ग़जल सम्राट जगजीत सिंह ने निदा फाजली के लिए कई गीत गाए जिनमें वर्ष 1999 मे प्रदर्शित फिल्म सरफरोश,का गीत 'होश वालों को खबर क्या बेखुदी क्या चीज है'इन दोनों फनकारों की जोड़ी की बेहतरीन मिसाल है.निदा फ़ाजली के काव्य संग्रहों में 'मोर नाच','हमकदम'और'सफर में धूप होगी'प्रमुख है.
वर्ष 1998 मे साहित्य जगत मे निदा फ़ाजली के बहुमूल्य योगदान को देखते हुए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.इसके अलावा उन्हें खुसरो अवार्ड,महाराष्ट्र उर्दू अकादमी पुरस्कार,हिंदी उर्दू संगम पुरस्कार,मीर तकवी मीर पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है.
अबतक उनके द्वारा लिखी गई 24 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है.अपने जीवन के लगभग 69 वसंत देख चुके निदा फाजली आज भी पूरे जोशो खरोश के साथ साहित्य और फिल्म जगत को रोशन कर रहे है.