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दुनिया के देशों में बौद्ध दर्शन ने किया है सद्भाव का प्रचार

By Staff
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Lord Buddha उज्जैन 6 अक्टूबर: विश्व के अनेक देशो में साम्प्रदायिक सद्भाव की स्थापना बौद्ध दर्शन के माध्यम से हुई है. व्यापक तथा बंधनमुक्त यह दर्शन है. निर्वाण का सोपान है इंडियन सोसायटी फार बुद्धिस्ट स्टडीज जम्मू तथा कालिदास संस्कृत अकादमी द्वारा आयोजित बौद्ध विद्या के सप्तम अधिवेशन तथा संस्कृत नाट्य महोत्सव के उद्घाटन अवसर पर यह विचार संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी के पूर्व कुलपति प्रोफेसर संपूर्णानंद ने व्यक्त कियें.

उन्होंने कहा कि सनातन का अर्थ संकीर्ण प में लिया गया. इसीलिए बौद्ध और जैन दो अन्य धाराओं का प्रादुर्भाव हुआ. सहिष्णुता के लिये बुद्ध ने भारत के बाहर जो सम्मान प्राप्त किया. वह उन्हें भारत में नहीं मिला. उन्होंने कहा कि उज्जयिनी (उज्जैन) सदियो से काव्य नाट् की स्थली रही है. कालिदास और राजशेखर ने अपने साहित्य में इनका उल्लेख किया है. नाट् प्रयोगो से अद्भुत सुख का अनुभव होगा. देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर उमराव सिंह चौधरी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि श्रमण और ब्राह्मण संस्कृति के तीन सौ तंत्र व्यवहार में थे.

बुद्ध ने समाज के हो रहे पतन के प्रति चेतना की प्रेरणा दी और एक स्वस्थ समाज की स्थापना में अपना योगदान दिया. वह ऐसा समाज था जिसमें सर्वहारा वर्ग का प्रतिनिधित्व होता था1 आज बुद्ध के उपदेशों पर अमल की आवश्यकता है. सोसायटी के अध्यक्ष प्रोफेसर सत्यप्रकाश शर्मा अलीगढ ने संस्था का परिचय देते हुए कहा कि कणा की प्रतिमूर्ति भगवान बुद्ध की चिन्तनस्थली भारत ही थी. उन्होंने कहा कि बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार का प्रथम चरण उज्जैन से ही उठा था और सम्राट अशोक उसके नायक थे. भगवान बुद्ध की समाजोन्मुखी विद्याओं. जिन्हें कालवश विस्मृत कर दिया था उनके संरक्षण एवं प्रसार का मूल लक्ष्य सोसायटी की है.

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