keyboard_backspace

New Year 2021:क्या नए साल में BJP के बारे में यह धारणा बदलेगी, मोदी-शाह की सबसे बड़ी चुनौती

Google Oneindia News

New Year 2021:नए साल में भाजपा के लिए चार विधानसभा चुनाव काफी चुनौतीपूर्ण हैं। पार्टी इसमें अच्छा प्रदर्शन करके एक पैन-इंडिया पार्टी की छवि बनाने का अपना लक्ष्य पूरा कर सकती है। असम (Assam) में अभी उसकी सरकार है। लेकिन, असम का गढ़ सुरक्षित रखने के साथ ही पश्चिम बंगाल (West Bengal) में भी जीत का सपना हर हाल में पूरा करना इस बार उसके एजेंडे में है। चुनाव दक्षिण के महत्वपूर्ण राज्यों तमिलनाडु (Tamil Nadu) और केरल (Kerala) में भी होने हैं। यहां भी इसके लिए संघर्ष तगड़ा है। यूं समझ लीजिए कि 2024 के आम चुनाव से पहले पार्टी को अपने प्रति बनी एक धारणा को बदलने का बड़ा मौका इस साल मिलने जा रहा है। यानि यही मौका है, जब भाजपा यह साबित कर सकती है कि वह एक पैन-इंडिया या अखिल भारतीय पार्टी है।

नए साल में भाजपा की नई उम्मीद

नए साल में भाजपा की नई उम्मीद

भारतीय जनता पार्टी (BJP) उत्तर भारत की पार्टी है। बीजेपी हिंदी भाषा क्षेत्रों की पार्टी है। पार्टी ने इस धारणा को बदलने की काफी कोशिशें की हैं। पार्टी उत्तर-पूर्व के राज्यों को जीतने में कामयाब हो चुकी है। पूर्व में पश्चिम बंगाल (West Bengal)को जीतकर इस धारणा को बदलने में वह काफी हद तक कामयाब हो सकती है। प्रदेश के पार्टी प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय (Kailash Vijayvargiya) ने ईटी से कहा है, 'आमतौर पर बीजेपी को हिंदी-भाषी राज्यों की पार्टी समझा जाता है। अगर हम पश्चिम बंगाल में सरकार बनाते हैं तो कर्नाटक (Karnataka) के बाद यह दूसरा गैर-हिंदी भाषी राज्य होगा, जहां बीजेपी की सरकार होगी।.......इससे इस तथ्य को भी बल मिलेगा कि बीजेपी एक अखिल-भारतीय पार्टी है- कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक।'

कर्नाटक से आगे बढ़ने की चुनौती

कर्नाटक से आगे बढ़ने की चुनौती

अगर दक्षिण भारत की बात करें तो कर्नाटक (Karnataka)छोड़कर कहीं भी उसे बड़ी सफलता नहीं मिली है। ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम (GHMC) के चुनाव ने इस धारणा को बदलने में उसकी हौसला अफजाई की है, लेकिन तेलंगाना (Telangana) विधानसभा चुनाव में अभी काफी वक्त है। तमिलनाडु (Tamil Nadu)में भी कुछ महीनो में चुनाव होने हैं, जहां इसका सत्ताधारी अन्नाद्रमुक (AIADMK)के साथ गठबंधन है। बीजेपी (BJP) यहां भी लगातार अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश करती रही है। अन्नाद्रमुक (AIADMK)के विरोध के बावजूद वह महीने भर की वेत्री वेल यात्रा (Vetrivel Yatra) पूरी करके मानी है। 2019 के लोकसभा चुनाव में उसे राज्य में 3.6 फीसदी वोट मिले, लेकिन सीट नहीं मिली। पार्टी को मौजूदा चुनाव से काफी उम्मीदें हैं, लेकिन सहयोगी दल अभी से कहने लगी है कि सत्ता में साझेदारी नहीं करेगी। केरल (Kerala)में तो बीजेपी ने काफी ताकत झोंकी है,लेकिन अभी तक उसे उम्मीदों के मुताबिक परिणाम नहीं मिले हैं। अलबत्ता हाल में हुए स्थानीय निकाय के चुनाव में प्रदर्शन में सुधार जरूर हुआ है।

मोदी-शाह के लिए बड़ी चुनौती

मोदी-शाह के लिए बड़ी चुनौती

लेकिन, जब बीजेपी के पास नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) जैसा नेता है और अमित शाह (Amit Shah) जैसा चुनावी रणनीतिकार तो पार्टी के अदना से लेकर आला नेताओं और कार्यकर्ताओं का हौसला बुलंद है। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और कर्नाटक और राजस्थान के इंचार्ज अरुण सिंह के मुताबिक, 'तमिलनाडु और केरल में जहां हमारा संगठन मजबूत नहीं है, वहां भी लोग पीएम मोदी के नेतृत्व को स्वीकार करते हैं। 2021 बीजेपी के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण साल होने जा रहा है।' हकीकत ये है कि लगातार दो लोकसभा चुनाव में शानदार जीत के बाद भी और पूरे देश में मौजूदगी होने पर भी यह अखिल-भारतीय पार्टी होने वाली छवि नहीं कायम कर सकी है। बंगाल में जीत और तमिलनाडु और केरल में बेहतर प्रदर्शन भी भाजपा के बारे में इस धारणा को बदल सकती है। इसलिए यह नया साल मोदी और शाह की जोड़ी के लिए बहुत ही चुनौतीपूर्ण साबित होने वाला है। अरुण सिंह का कहना है, 'पूरे देश में पीएम मोदी की लोकप्रियता और स्वीकार्यता ने हमें एक अनोखा अवसर दिया है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि बीजेपी के लिए यही समय है, जब वह उन राज्यों में विस्तार कर सकती है, जहां यह कमजोर है या फिर उसकी मौजूदगी ही नहीं है।'

संघ से भी मदद की आस

संघ से भी मदद की आस

भाजपा की उम्मीदें पूरी होने के लिए यह भी जरूरी है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) से उसे कितनी मदद मिल पाती है। एक आंकड़े के मुताबिक पश्चिम बंगाल में इस वक्त संघ से जुड़े करीब 40 संगठन सक्रिय हैं। राज्य भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष (Dilip Ghosh )खुद संघ से जुड़े रहे हैं और पूर्व संघ प्रमुख केएस सुदर्शन के साथ काम कर चुके हैं। बंगाल की तरह असम में भी पिछले 6-7 वर्षों में संघ की गतिविधियों में काफी इजाफा हुआ है। इसके शाखा की संख्याएं बहुत बढ़ी हैं। संघ के लिए शाखा वह पहला पायदान है, जहां से निकलकर अबतक दो स्वयं सेवक देश के सत्ता शिखर तक पहुंच चुके हैं। केरल में भी हाल के वर्षों में शाखाओं की संख्या काफी बढ़ी हैं और आरएसएस की सक्रियता को आंकने के लिए यह सबसे सटीक पैमाना माना जा सकता है। हालांकि, संघ से भाजपा को कितनी मदद मिलेगी यह राज्यों की परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है। मसलन, दिल्ली में संघ का संगठन बहुत ही मजबूत है, लेकिन दो चुनावों में फिर भी उससे पार्टी को लाभ नहीं मिल पा रहा है। लेकिन, असम, बंगाल और केरल की परिस्थितियां पूरी तरह से अलग हैं। मसलन, केरल को लेकर संघ के एक अधिकारी जे नंदाकुमार का कहना है, 'अब हम काफी बदलाव देख रहे हैं। ज्यादातर पढ़े-लिखे लोग, खासकर महिलाएं हमसे सहमत हो रही हैं। पहले वे हमारा मजाक उड़ाते थे। अब बहुत बड़ा परिवर्तन दिखता है।'

भाजपा के लिए नए राज्यों में जीत क्यों है जरूरी?

भाजपा के लिए नए राज्यों में जीत क्यों है जरूरी?

मोदी सरकार (Modi Government) के पहले कार्यकाल में भाजपा को संसद से कोई भी विधेयक पास करवाने के लिए बहुत ज्यादा संघर्ष करना पड़ता था। क्योंकि, राज्यसभा में उसके पास संख्या बल नहीं था। संसदीय प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने के लिए ज्यादा से ज्यादा राज्यों में जीतना उसके लिए जरूरी हो गया। यही नहीं नए राज्यों में जीत पार्टी के लिए इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि अगर कोई पुराना किला ढहा भी तो उसकी भरपाई नए से की जा सकती है।

इसे भी पढ़ें- नए साल में ममता बनर्जी को जल्द ही ये झटका भी देने वाले हैं 'अविवाहित' सुवेंदु अधिकारी इसे भी पढ़ें- नए साल में ममता बनर्जी को जल्द ही ये झटका भी देने वाले हैं 'अविवाहित' सुवेंदु अधिकारी

Comments
English summary
New Year 2021:BJP's resolution in the new year and the biggest challenge for Modi-Shah,
For Daily Alerts
Related News
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X