नक्सलियों के डर से जहां पढ़ाने नहीं आते टीचर, वहां की लड़की बनी पहली MBBS डॉक्टर
नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ के सुकामा जिले का नाम सुनते ही मन में पहला ख्याल नक्सलवाद आता है। इसी सुकमा जिले के नक्सल प्रभावित इलाके दोरननापाल की रहने वाली एक लड़की माया कश्यप इस छवि को तोड़ने की कोशिश कर रही है। माया का सपना डॉक्टर बनने का है। वह जून में अपने इस सपने के और करीब आ गई जब उसने नीट की परीक्षा पास कर ली। उसने अपनी मेहनत और लगन से साबित कर दिया है कि लक्ष्य पाने की इच्छा हो तो कोई भी लक्ष्य बड़ा नहीं होता है।
माया का यहां तक का सफर इतना आसान नहीं था
बचपन से डॉक्टर बनने की सपना पाले माया ने दोरनापाल के एक सरकारी स्कूल से अपनी पढ़ाई शुरूआत की। अथक मेहनत के बाद आखिरकार माया अपने सपने में को पूरा करने मे सफल हुई। वह दोरनापाल की पहली लड़की है जो डॉक्टर बनी है। माया को 2023 में एमबीबीएस की डिग्री अंबिकापुर मेडिकल कालेज से मिल जाएगी। माया का यहां तक का सफर इतना आसान नहीं था। माया के टीचर पिता रामचंद्र कश्यप का 2009 में निधन हो गया था। उस समय वह 6वीं कक्षा में पढ़ती थी।
सिर्फ 500 रुपए में चलाना होता था महीने भर का खर्चे
इन विपरीत परिस्थितियों में वह अपने इरादे से नहीं डिगी। माया ने कड़ी मेहनत के बल पर दूसरे प्रयास में इस परीक्षा को पास कर लिया। माया ने अपनी कठिन दिनों को याद करते हुए बताया कि, उसके घर का गुजारा मां को मिलने वाली पेशन से चलता था। मेरी मां को मेरे अलावा मेरे तीन भाई-बहनों का भी ख्य़ाल रखना होता था। मुझे महीने में खर्च के लिए सिर्फ 500 रुपए मिलते थे। इसमें मुझे अपनी सारी जरूरते पूरी करनी होती थी।
माया ने हासिल किया दोरनापाल की पहली महिला डॉक्टर बनने का गौरव
माया ने बताया कि पढ़ाई के दौरान मुझे पैसों की काफी कमी रहती थी, लेकिन मेरा मुख्य लक्ष्य डॉक्टर बनना था। इसलिए सिर्फ पढ़ाई में ध्यान केंद्रित किया। जिसे में अंत में पाने में सफल रही। माया के घर की स्थिति इतनी अच्छी नहीं है। इसलिए जब बात फीस की आई तो माया के सामने एक बार फिर से पैसों की समस्या खड़ी हो गई। लेकिन तभी माया के रिश्तेदार उसकी मदद के लिए आगे आए। उन्होंने माया की मेडिकल कॉलेज की फीस का इंतजाम किया। माया का सपना है कि वह पढ़ाई पूरी कर वापस अपने गांव आए और यहां पर लोगों का इलाज करे।
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