हम बता रहे हैं नेताजी.. अगर हमें स्टार प्रचारक ना बनाया गया तो हम संघ प्रचारक बन जाएंगे
अरे सिप्पाल.. तू बरसों मेरे साथ रहा है, तुझे भगवान का वास्ता है रे.. ये छरंसक और मागदशक जैसे नाम मत दे... गाली जैसा लगता है।
नई दिल्ली। समाजवादी पार्टी का मतलब अब अखिलेश यादव हो गया है। उनके सामने सभी ने हथियार डाल दिए हैं लेकिन शिवपाल के मन में लगातार एक उलझन बनी हुई है कि ये क्या हो गया। ना तो अखिलेश उनकी सुनते हैं और ना ही पार्टी के कार्यकर्ता।
शिवपाल बाहर जाते हैं तो सोचते हैं कि लोग पता नहीं क्या कहेंगे और लौट आते हैं। ऐसे में शिवपाल घूम-फिर के मुलायम सिंह के पास पहुंच जाते हैं और अपने दिल का गुबार निकाल लेते हैं। स्टार प्रचारकों में शामिल ना किए जान से नाराज एक बार फिर शिवपाल बड़े भैया मुलायम के कमरे में पहुंचे हैं।
नेताजी- बैठ काहे नहीं जाते... सुबह से देख रहे हैं इधर से उधर, उधर से इधर.. क्या कर रहे हो सिप्पाल?
शिवपाल- बैठे हैं कि खड़े हैं क्या फर्क पड़ता है? अपने कमरे से आपके कमरे में और आपके कमरे से अपने कमरे... यही रह गया है हमारा चुनाव क्षेत्र। नेताजी... अभी कितना और अपमान देखना होगा आपके इस छोटे भाई को?
नेताजी- देखो सिप्पाल.. सुनो.. आओ हमाए पास बैठ जाओ। ना हो पाएगा हमसे कुछ, हम थक गए और ये मान लिए कि हमसे ना हो पाएगा.. हम हैं कुश्ती के खिलाड़ी.. हम अखाड़े में बदन पर मिट्टी मलते रहे और उ साइकिल लेकर दूर निकल गया।
शिवपाल- आप का क्या है नेताजी.. आप तो सरंक्षक भी बन गए और स्टार प्रचारक भी.. हमें क्या मिला.... बस अब मुंह से कुछ निकल जाएगा हमारे अपशब्द...
नेताजी- अरे सिप्पाल.. तू बरसों मेरे साथ रहा है, तुझे भगवान का वास्ता ये छरंसक और मागदशक जैसे नाम मत दे... गाली जैसा लगता है। अब बेटे ने तो ये नाम दे ही दिए हैं, कम से कम तू तो ये सब ना कह।
शिवपाल- नेताजी, आपका ये रुहांसा मुंह ही हमको रोक लेता है... वर्ना अपना हम तो अपना ठौर-ठिकाना कहीं तलाश लिए होते..
नेताजी- कहां तलाश लेते सिप्पाल?
शिवपाल- अरे बैठ जाते किसी के हाथी-वाथी पर और क्या...? चाहे हमें किसी का नल चलाना होता लेकिन हम चले जाते.. बस आपका बुढ़ापा रोक लेता है।
नेताजी- बेटे ने नहीं मानी.. तू भी चला जा रे सिप्पाल.. जा
शिवपाल- इमोशनल ब्लैकमेलिंग से तो हम ना रुकते पर ये ख्याल कर रुक जाते हैं कि हम भी चले गए तो कोई आपको पानी भी ना देगा, नौकरों को तो समझ में ही ना आएगा कि मांग क्या रहे हो? प्रेस वाले नहीं समझ पाते कि निष्कासन किया हो या टिकट दिए हो। ये तो मैं हूं कि बचपन से आपके साथ रहा हूं, तो समझ जाता हूं।
नेताजी- यही होता है.. आज हमें वो हर आदमी बात बना रहा है, जो कभी चुप खड़े रहते थे। हम तेरा दुख समझ रहे हैं.. जसवंतनगर से तो टिकट दिलाए ना तुम्हे..
शिवपाल- अब एक टिकट भी भतीजे का अहसान हो गया नेताजी? हमारे बेटे को टिकट नहीं दिया और हमारा नाम स्टार प्रचारकों में भी नहीं... हम बता रहे हैं नेताजी अगर हमें स्टार प्रचारक ना बनाया गया तो हम संघ प्रचारक बन जाएंगे... फोन भी आया था हमें नागपु...
नेताजी- हम कह रहे हैं, चुपचाप इलेशन लड़ लो.. शोर सुन लिया तो देख लेना.. तुमारा भी टिकट काटेगा टीपू और हम सरंक्षक से पूर्व सरंक्षक हो जाएंगे।
(यह एक व्यंग्य लेख है)
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