एक बार लालू यादव भी पहुंचे थे निर्मल दरबार में..
लालू
प्रसाद
यादव
निर्मल
दरबार
में
लालू
:-
बाबा
जी
को
प्रणाम.
बाबा
:-
कहा
से
आए
हो.
लालू
;-
घर
से.
बाबा
:-
मेरा
मतलब
है
कहा
रहते
हो?
लालू
:-
अब
का
प्रशनवा
पूछ
रहे
हो,
घर
मे
ही
रहता
हूँ
ओर
का
तबेले
मे
रहूँगा...
बाबा
:-
नाम
क्या
है?
लालू
:-
लालू
प्रसाद
यादव
बाबा
:-
लालू
की
जगह
चालू
लिखा
करो...
लालू
:-
चालू
तो
हम
है
ओर
देखिये
ये
लिखने
पढ़ने
की
बाते
ना
करे
तो
ही
ठीक
रहेगा.
बाबा
:-
ये
चारा
क्यू
आ
रहा
है
बीच
मे,चारा
खाया
है
कभी.
लालू
:-
उ
तो
कई
बरस
पुरानी
बात
है
अब
तो
मामला
दब
चुका
है.
बाबा
:-
यही
कृपा
रूक
रही
है,
जाओ
थोड़ा
चारा
खाओ.
कृपा
आनी
शुरू
हो
जाएगी.
लालू
:-
बुदबर्क
समझे
हो
का,
हम
चारा
कैसे
खा
सकते
है?
बाबा
:-
तूमने
ही
तो
कहा
है
की
खाया
था
लालू
:-
उ
तो
कागजो
मे
खाया
था
बाबा
:-
तो
अब
की
बार
प्लेट
में
खाना,
माया
पर
ध्यान
दो
लालू
:-
आरे
आप
गलत
दिशा
मे
जा
रहे
है,
बाबा
:-
मूर्ख
मैं
उस
माया
की
नहीं
इस
माया
की
बात
कर
रहा
हु,
धन
की
लालू
:-
धन
तो
सुर्क्षित
है,
विदेशवा
मे
है
ना.
बाबा
:-
तो
अपने
देश
मे
लाओ
ओर
थोड़ा
मेरे
अकाउंट
मे
डलवाओ.
लालू
:-
तोहार
का
ना
डलवा
दूँ
जेलवा
मे.
बाबा
:-
आप
तो
गरम
हो
रहे
है,
कुछ
ठंडी
चीज
खाइये
,
रबड़ी
लालू
:-
अरे
हो
ढोंगी
बाबा
हमरी
दुलहनवा
का
नाम
ना
ले
तो
ही
ठीक
रहेगा,
हमका
का
बुदबर्क
समझे
हो
हम
देश
का
नेता
है
देश
चलाता
है
ओर
तू
हमका
चला
रहे
हो.
बाबा
:-
प्रभु
गुरुदेव
कोई
रास्ता
बताइये
की
हमारे
धंधे
को
कानूनी
लाइसेन्स
मिल
जाये.
लालू
:-
ठीक
है
जाइए
अपनी
कमाई
का
आधा
हिस्सा
हमरे
खाते
मे
डलवाईए
लालटेन
जलाईए
सरकारी
कृपा
आनी
शुरू
हो
जाएगी.!!--