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UPPSC: अब अंदर से नहीं होगी मनमानी, बाहरी एक्सपर्ट भी जांचेंगे नंबर

स्केलिंग के तहत आयोग की दो एक्सपर्ट टीम अभ्यर्थी द्वारा दिए उत्तरों पर मिले नंबरों की जांच तो करेंगी ही, एक बाहरी एक्सपर्ट टीम भी बनेगी और वो भी अभ्यर्थी के उत्तर के क्रम में मिले नंबर की जांच करेगी।

By Gaurav Dwivedi
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इलाहाबाद। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग में एक और बड़े बदलाव को मंजूरी दे दी गई है। अब स्केलिंग (नंबरों की असमानता दूर करना) के लिए बाहरी एक्सपर्ट यानी आयोग से इतर एक एक्सपर्ट टीम नंबरों की जांच करेगी। इस एक्सपर्ट टीम की रिपोर्ट अगर विभाग की रिपोर्ट के समान होती है तभी परिणाम तैयार होंगे। रिपोर्ट अलग-अलग होने की दशा में जांच टीम गठित होगी और वो आगे की पड़ताल करेगी।

 Allahabad: UPPSC Copy will recheck by Experts

दरअसल आयोग पर हमेशा से सवाल उठाए जाते रहे हैं कि स्केलिंग के नाम पर नंबर बढ़ाने-घटाने में मनमानी होती है। खासमखासों का नंबर स्केलिंग में बढ़ा दिया जाता है। जिससे सामान्य छात्र कम नंबर के चलते मेरिट से बाहर हो जाता हैं। लेकिन अब शासन से इस प्रस्ताव को मंजूरी मिल चुकी है। आयोग की अगली भर्ती से ये योजना क्रियान्वित हो जाएगी। इसके तहत स्केलिंग के तहत आयोग की दो एक्सपर्ट टीम अभ्यर्थी द्वारा दिए उत्तरों पर मिले नंबरों की जांच तो करेंगी ही। एक बाहरी एक्सपर्ट टीम भी बनेगी और वो भी अभ्यर्थी के उत्तर के क्रम में मिले नंबर की जांच करेगी। अगर आयोग और बाहरी एक्सपर्ट की रिपोर्ट मिले नंबर पर समान होती है, तभी रिजल्ट घोषित होगा।

स्केलिंग को समझें

उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की बड़ी भर्तियों में अभ्यर्थी को एक ऐच्छिक विषय लेना पड़ता है। ये संघ लोकसेवा आयोग की भर्ती में भी होता है। जब इस ऐच्छिक विषय की परीक्षा होती है। तब अभ्यर्थी द्वारा दिए गए प्रश्नों के उत्तर जांचें जाते हैं और नंबर दिए जाते हैं। लेकिन इसी दौरान एक समस्या आसान और कठिन प्रश्न को लेकर सामने आती है। यानि की कठिन और आसान प्रश्नों के उत्तर पर दिए जाने वाले कम और ज्यादा नंबर को कैसे एक समान किया जाए।

जबकि दूसरा कारण ये होता है कि एक ही विषय की कॉपियों को एक से ज्यादा परीक्षकों द्वारा जांचने पर उनके द्वारा दिए गए नंबर भी अलग-अलग होते हैं। ऐसे में यहां भी अंकों की समानता की आवश्यकता होती है। इसी समस्या को हल करने के लिए ही स्केलिंग की जाती है। यानी नंबरों की असमानता दूर करने के उद्देश्य से स्केलिंग की जाती है। साफ शब्दों में समझें तो अभ्यर्थी को एक समान रूप से अंकों का वितरण उनके उत्तर के अनुरूप मिले। ऐसी व्यवस्था को स्केलिंग कहा जाता है।

स्केलिंग में मनमानी

आयोग पर आरोप लगने लगे कि स्केलिंग से अंकों की असमानता दूर तो हो रही हो। लेकिन इसमे मनमानी होने लगी। यानी चहेतों को तो स्केलिंग में असमानता का फायदा देकर नंबर बढ़ा दिए जाते, लेकिन सामान्य अभ्यर्थी का नंबर घटा दिया जाता या नंबर नहीं घटाया गया तो उतना नहीं बढ़ाता जाता जिससे चहेतों की मेरिट को वो ब्रेक कर सके। चूंकि सबकुछ विभाग के हाथ में विभाग के एक्सपर्ट थे। तो उनके द्वारा घोषित परिणाम को मजबूरन मानना पड़ता था। इसमें पारदर्शिता नहीं नजर आती थी। इस मामले में तो 2011 में जमकर बवाल भी हो चुका है। तब पीसीएस की परीक्षा में लोक प्रशासन विषय में मात्र एक अभ्यर्थी का ही नंबर बढ़ा था, बाकी सबके घट गए थे।

क्या है इतिहास?

सुप्रीम कोर्ट से भी हरी झंडी पा चुके स्केलिंग का इतिहास एक दशक पुराना है। उसके पहले ये व्यवस्था नहीं लागू थी। जिससे कुछ खास विषयों के परीक्षार्थियों का आयोग की भर्तियों में बोलबाला होता था। लेकिन 1996 में छात्रों ने एक समान नंबर व्यवस्था के लिए आंदोलन शुरू किया था। असमानता हटाने की जोर शोर से मांग हुई। तब उनकी मांग को पूरी करते हुए स्केलिंग व्यवस्था को लागू किया गया। लेकिन अब ये व्यवस्था सवालों के घेरे में है। पूर्ववर्ती सपा सरकार में तो इसे लेकर खूब हंगामे के साथ आरोपों का दौर चला था।

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English summary
Allahabad: UPPSC Copy will recheck by Experts
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