नेपालः राजनीतिक संकट और नई सरकार
किंगमेकर
कोइराला
गौरतलब
है
कि
माओवादियों
ने
दो
हफ्ते
से
अधिक
समय
तक
चले
संसद
में
अपने
गतिरोध
को
22
मई
को
खत्म
कर
दिया।
इसी
के
साथ
नेपाल
में
राजनीतिक
संकट
से
राहत
पाने
और
नई
सरकार
के
गठन
का
रास्ता
साफ
हो
गया
था।
नेपाल
की
601
सदस्यों
वाली
संविधान
सभा
में
माधव
नेपाल
को
355
सदस्यों
ने
समर्थन
का
ऐलान
किया।
नेपाल
में
सत्ता
माओवादियों
के
हाथ
से
निकल
भले
कम्युनिस्टों
के
हाथ
में
चली
गई
हो,
लेकिन
इस
पूरे
प्रकरण
ने
एक
बार
फिर
नेपाली
कांग्रेस
के
प्रमुख
गिरिजा
प्रसाद
कोइराला
को
बतौर
किंग
मेकर
स्थापित
कर
दिया
है।
विश्लेषकों का मानना है कि कोइराला ने काफी बुद्धिमानी से सीपीएन-यूएमएल का इस्तेमाल कर माओवादी नेता पुष्प कुमार दहल 'प्रचंड' को सत्ता से बाहर कर दिया। 2006 में माओवादियों को मुख्य धारा में लाने वाले गिरिजा प्रसाद कोइराला ही थे, लेकिन कोइराला और प्रचंड के बीच अविश्वास की दरार राष्ट्रपति चुनाव के दौरान पड़ गई थी। दरअसल पहले प्रचंड ने कहा था कि वे कोइराला द्वारा नामित राष्ट्रपति का समर्थन करेंगे, लेकिन बाद में वे अपनी बात से मुकर गए। अंतत: कोइराला के समर्थन से राम बरन यादव ही राष्ट्रपति बने, लेकिन इस घटना ने दोनों नेताओं के बीच दूरी बढ़ा दी।
कभी
भी
गिर
सकती
थी
सरकार
कुछ
माह
पहले
कोइराला
ने
एक
बयान
में
कहा
था
कि
मुझे
प्रचंड
सरकार
को
गिराने
की
जरूरत
नहीं
है।
माओवादियों
की
सरकार
पके
आम
की
तरह
है,
खुद
ही
कभी
भी
गिर
सकती
है।
आखिरकार
उनकी
बात
सच
भी
हो
गई।
सेनाध्यक्ष
रुकुमंगद
कतवाल
की
बर्खास्तगी
पर
राष्ट्रपति
के
साथ
हुए
विवाद
के
बाद
प्रचंड
ने
इस्तीफा
दे
दिया।
माओवादियों
के
सत्ता
से
बाहर
होने
के
बाद
कोइराला
दूसरी
सबसे
बड़ी
पार्टी
के
नेता
होने
के
नाते
स्वयं
भी
प्रधानमंत्री
पद
के
लिए
दावा
ठोक
सकते
थे।
लेकिन
विश्लेषकों
के
मुताबिक
माधव
कुमार
नेपाल
का
नाम
प्रस्तावित
कर
उन्होंने
माओवादियों
को
सबक
सिखाया
है।
माओवादियों
के
बजाय
नरमपंथी
कम्युनिस्टों
के
हाथ
में
सत्ता
जरूर
गई
है,
लेकिन
ये
सत्ता
नेपाली
कांग्रेस
के
113
सांसदों
की
बदौलत
ही
बनी
रह
सकती
है।
पिछले कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे कोइराला ने खुद संसद में उपस्थित रह कर माधव कुमार नेपाल का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए प्रस्तावित किया था। ऐसा कर उन्होंने माओवादियों को उसके सहयोगियों से अलग कर दिया। दूसरी ओर माओवादियों ने कहा है कि वे इस चुनाव का विरोध करेंगे। सेना प्रमुख रकमांगद कटवाल को हटाने के विवाद के कारण गठबंधन के दलों ने माओवादीनीत सरकार से समर्थन वापस ले लिया था, जिसके कारण नौ माह पुरानी उनकी सरकार गिर गई थी। पिछले साल हुए संविधान सभा के चुनाव में हार की वजह से सीपीएन-यूएमएल के प्रमुख पद से इस्तीफा देने को मजबूर हुए मृदुभाषी कम्युनिस्ट नेता माधव कुमार नेपाल ने देश के शीर्ष पद पर पहुँचकर अपने राजनीतिक कौशल को साबित कर दिया।
पड़ोसी
देशों
से
संबंध
नेपाल
ने
ताकतवर
माओवादी
नेता
पुष्प
कमल
दहल
प्रचंड
का
स्थान
लिया,
जिन्होंने
सेना
प्रमुख
जनरल
रुकमांगद
कटवाल
की
बर्खास्तगी
के
मामले
में
राष्ट्रपति
रामबरन
यादव
से
तल्खी
की
वजह
से
इस
महीने
के
शुरू
में
इस्तीफा
दे
दिया
था।
प्रचंड
के
त्याग-पत्र
से
देश
संवैधानिक
तथा
राजनीतिक
संकट
से
घिर
गया
था
प्रचंड
के
इस्तीफे
के
बाद
नेपाल
में
नये
प्रधानमंत्री
के
चुनाव
के
रास्ते
से
माओवादियों
के
हटने
के
बीच
कार्यवाहक
प्रधानमंत्री
और
माओवादी
नेता
पुष्प
कमल
दहल
प्रचंड
ने
आरोप
लगाया
कि
भारत
और
चीन
के
साथ
अपने
देश
के
सम्बन्धों
को
पुनर्परिभाषित
करने
की
कोशिश
उनकी
सरकार
के
पतन
की
वजह
बन
गई।
प्रचंड ने सांसदों से कहा कि नए परिप्रेक्ष्य में नेपाल के पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों को फिर से निर्धारित करने की कोशिश के बाद ऐसी स्थिति बन गई कि उन्हें प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना ही पड़ा। सेना प्रमुख रुकमांगद कटवाल को बर्खास्त करने के कैबिनेट के फैसले को राष्ट्रपति रामबरन यादव द्वारा अमान्य करार देकर कटवाल को बहाल करने के कदम के विरोध में प्रचंड ने इस महीने के शुरू में प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। प्रचंड ने कहा कि उनकी पार्टी भारत और चीन के साथ अच्छे सम्बन्ध बनाए रखना चाहती है। उन्होंने कहा मैं महसूस करता हूं कि नेपाल के अपने दो पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों को पुनर्परिभाषित करने का जरूरी काम अभी तक पूरा नहीं किया गया है। बड़े भाई और छोटे भाई की रवायत अब भी जारी है। कार्यवाहक प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि पिछले साल सत्ता सम्भालने के कुछ दिन बाद ओलम्पिक खेलों के दौरान चीन जाकर उन्होंने रवायतें बदलने की कोशिश की थी।
भारत
की
चिंताएं
इसके
बाद
से
नेपाल
में
माओवादियों
के
आक्रामक
रवैये
को
देखते
हुए
भारत
की
चिंताएं
बढ़ने
लगी।
नेपाल
में
राजनीति
गतिरोध
के
बाद
भारत-नेपाल
के
बीच
117
किलोमीटर
की
सीमा
पर
है
अलर्ट
कर
दिया
गया
है
एसएसबी
मुख्यालय
के
एक
अधिकारी
के
मुताबिक,
चौकसी
बढ़ाने
और
घुसपैठ
की
किसी
भी
कोशिश
को
नाकाम
करने
के
निर्देश
जारी
किए
गए
हैं।
नेपाल
में
बिगड़े
राजनीतिक
हालात
का
फायदा
उठाकर
अवांछित
तत्व
सीमा
पर
गतिविधि
न
बढ़ाएं,
इस
पर
खासतौर
पर
नजर
रखने
को
कहा
गया
है।
एसएसबी
चीफ
एमवी
कृष्णा
राव
ने
नई
दिल्ली
में
सीनियर
अफसरों
की
एक
इमरजेंसी
मीटिंग
बुलाकर
हालात
का
जायजा
लिया।
उन्होंने
बताया
कि
देश
में
लोकसभा
चुनावों
के
चलते
हम
नेपाल
सीमा
पर
पहले
से
ही
निगरानी
बढ़ा
चुके
हैं।
आज
हमने
ताजा
हालात
का
जायजा
लिया
है।
नेपाल
से
लगे
राज्यों
-
उत्तराखंड,
उत्तर
प्रदेश,
बिहार,
पश्चिम
बंगाल
और
सिक्किम
को
भी
हाई
अलर्ट
कर
दिया
गया
है।
माधव
कुमार
नेपाल
करीब
200
साल
पहले
माधव
के
परिजन
भारत
के
बिहार
से
अपना
सरमाया
समेटकर
नेपाल
में
बस
गए
थे।
वर्ष
1993
से
2008
तक
सीपीएन
यूएमएल
के
महासचिव
रहे
माधव
ने
इस
दौरान
राजनीति
तथा
प्रशासनिक
विवेक
अर्जित
किया।
वर्ष
1969
से
कम्युनिस्ट
आंदोलन
में
शामिल
माधव
भारत
के
प्रख्यात
विद्वान
राहुल
सांकृत्यायन
तथा
रूस
के
क्रांतिकारी
लेखक
मैक्सिम
गोर्की
से
प्रभावित
बताए
जाते
हैं।
माधव
वर्ष
1994
में
सीपीएन-यूएमएल
की
अगुवाई
में
बनी
अल्पमत
सरकार
में
उपप्रधानमंत्री
भी
रह
चुके
हैं।
वे
राष्ट्रीय
असेम्बली
में
विपक्ष
के
नेता
की
भूमिका
भी
निभा
चुके
हैं।
नेपाल में नया प्रधानमंत्री तो बन गया पर माओवादियो के समर्थन के बिना नेपाल के नए संविधान की रचना की प्रक्रिया अब कितनी सामान्य हो पायेगी ये चिंता का नया विषय है। गौरतलब है की नेपाल में राजशाही के खिलाफ हुई क्रांति के बाद नए संविधान को बनाने के लिए आम चुनाव हुए थे जिसमें माओवादियों को सफलता तो मिली पर वे पूर्ण बहुमत नहीं पा सके फलस्वरूप मिलीजुली सर्कार का गठन हुआ पर मावोवादी नेता प्रचंड को लोकतान्त्रिक मोर्चो पर लगातार हार का सामना करना पड़ा था। पहले रास्त्रपति के चुन्वो में वे मनमाफिक नतीजे नहीं ला सके और फिर संसद के अध्यक्छ पद पर उन्हें हर का सामना करना पड़ा। गुरिल्ला कार्यवाही को सफलता तक पहुचने वाले प्रचंड को लोकतंत्र नहीं रास आ रहा है। फैसलों की जल्दीबाजी और कोइराला की कूटनीति नें उन्हें विपक्ष में बैठने पर मजबूर कर दिया है. राजशाही से मुक्ति के बाद नेपाल लोकतंत्र की राह पर तो चल पड़ा है लेकिन नेपाल में इसकी राह आसन नहीं दिख रही है।
[उत्कर्ष सिन्हा सोशल एक्टीविस्ट हैं और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर लिखते हैं।]