क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

शक्‍कर से मीठे नहीं तीखे होंगे महंगाई के तेवर

By सतीश कुमार सिंह
Google Oneindia News

एक बार फिर खाद्य व कृषि मंत्री शरद पवार चर्चा में हैं। अब श्री पवार शक्कर के क्षेत्र को विनियंत्रित करने की जुगाड़ में हैं। श्री पवार ने 3 सितम्बर को प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह के समक्ष शक्कर के क्षेत्र को विनियंत्रित करने की योजना प्रस्तुत की है। इस खाके को अन्य मंत्रालयों के पास उनके सुझाव हेतु भेजने का भी विचार श्री पवार का है। ज्ञातव्य है कि इस कवायद में उनका साथ शक्कर उघोग से जुड़े हुए पूंजीपति भी दे रहे हैं। शक्कर लॉबी देश में इस कदर हावी है कि शक्कर उघोग के पेड विश्‍लेषक कह रहे हैं कि शक्कर क्षेत्र को विनियंत्रित करने वाले सुधार से गन्ने के उत्पादन में स्थिरता लाई जा सकती है।

जबकि भारत जैसे देश में गन्ने का उत्पादन बहुत हद तक मानसून पर निर्भर करता है। दूसरे परिपेक्ष्य में इसे देखें तो किसानों के बीच उत्साह का अभाव भी गन्ना के उत्पादन को प्रभावित करता है। आमतौर पर बिचैलियों और कृत्रिम बाजार के सूत्रधारों के हाथों में पिसकर किसान गन्ना बोने से तौबा कर लेते हैं। गन्ने का अच्छा उत्पादन हो या कम दोनों स्थितियों में किसानों को व्यापारियों और शक्कर मिल मालिकों की मर्जी से ही गन्ने की कीमत मिलती है। इसलिए यह कहना कि शक्कर के क्षेत्र को विनियंत्रित करने से गन्ने के उत्पादन में स्थिरिता आ सकती है, पूर्णरुप से गलत संकल्पना है।

15 सालों से चल रहे हैं प्रयास

सूत्रों के मुताबिक 15 सालों से शक्कर के क्षेत्र को विनियंत्रित करने के लिए प्रयास किये जा रहे हैं। बावजूद इसके शक्कर की कीमत में होने वाले उतार-चढ़ाव और अन्यान्य खाद्य पदार्थों की कीमतों में होने वाली बढ़ोत्तरी के कारण सरकार ने अभी तक शक्कर के क्षेत्र को विनियंत्रित नहीं किया है।

जानकारों की मानें तो 2010-11 में गन्ने की अच्छी फसल हो सकती है। इसी अनुमान के आधार पर श्री पवार ने शक्कर के क्षेत्र को विनियंत्रित करने वाली अपनी योजना को प्रधानमंत्री के सामने रखा है। उल्लेखनीय है कि विनियंत्रण के बाद शक्कर की कीमत को बाजार तय करेगा।
आने वाले साल में शक्कर का उत्पादन तकरीबन 2.3 करोड़ टन होने का अनुमान लगाया जा रहा है। विष्वविख्यात विष्लेषक किंग्समैन एसए का भी मानना है कि अगले साल भारत में शक्कर का उत्पादन 2.3 से 2.8 करोड़ टन के बीच में रह सकता है।

पुनष्चः श्री पवार का कहना है कि इस क्षेत्र को विनियंत्रित करने से किसानों को लाभ होगा। वे अपना मर्जी से सबसे अधिक कीमत देने वाले मिल के मालिक को गन्ना बेच सकेंगे। इतना ही नहीं विनियंत्रण के बावजूद सरकार गन्ना के लिए एफआरपी तय करना जारी रखेगी। एफआरपी उस न्यूनतम कीमत को कहते हैं जो किसानों को शक्कर के मिल मालिकों के द्वारा गन्ने की कीमत के रुप में अदा की जाती है। विडम्बना ही है कि इसके बाद भी इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि शक्कर के मिल मालिक बाजार पर नियंत्रण करने का काम छोड़ेगें।

क्‍या है वर्तमान स्थिति

इस योजना को यदि अमलीजामा पहनाया जाता है तो गन्ने की कटाई के सीजन यानि अक्टूबर से सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत खुले बाजार से खरीदकर शक्कर को राशन दुकानों में बेचा जाएगा। वर्तमान समय में शक्कर मिलों को अपने उत्पादन का 20 फीसदी हिस्सा सस्ते दामों पर सरकार को बेचना पड़ता है और सरकार इसी 20 फीसदी हिस्से को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतगर्त बीपीएल को सस्ती कीमतों पर मुहैया करवाती है।

चल रही व्यवस्था के तहत सरकार हर महीने मिलों के लिए खुली बिक्री और लेवी शक्कर के लिए कोटे की घोषणा करती है। इसी व्यवस्था के कारण ही सरकार शक्कर की कीमतों पर नियंत्रण रखती आई है। शक्कर के उत्पादन में होने वाले तेज उतार-चढ़ाव के कारण पिछले साल शक्कर का आयात करना पड़ा था।

अर्थशास्त्र के सिंद्धात के अनुसार मांग और आपूर्ति में होने वाले उतार-चढ़ाव ही बाजार की दिषा तय करते हैं। यदि मांग ज्यादा और आपूर्ति कम हो तो वस्तु की कीमत अधिक होगी और जब आपूर्ति अधिक तथा मांग कम हो तो वस्तु की कीमत कम होगी। अर्थशास्त्र के इस सिंद्धात को व्यापारी अपने फायदे के लिए कालाबाजारी के द्वारा तोड़ते तो नहीं हैं, लेकिन उसका अंग-भंग जरुर कर देते हैं। वे बाजार की दषा और दिषा दोनों को अपनी सुविधानुसार बदलते रहते हैं।

दिलचस्प बात यह है कि श्री पवार सिर्फ सिक्के के एक पहलू को देख रहे हैं। वे किसानों के बारे में तो सोच रहे हैं, किन्तु डायन मँहगाई के बारे में नहीं सोच पा रहे हैं। वे ये भी नहीं सोच पा रहे हैं कि भारत में लाॅबी चाहे तो हर चीज को अपने तरीके से नियंत्रित करके अपना खेल, खेल सकती है। हर्षद मेहता ने किस तरह से शेयर बाजार को अपनी डुगडुगी पर नचाकर करोड़ों रुपयों का वारा-न्यारा किया था, इससे हम अच्छी तरह से वाकिफ हैं।

शक्कर की कीमत हाल के महीनों में लगभग दो गुनी हो गई है। उल्लेखनीय है कि इस वर्ष के शुरुआत में खुदरा बाजार में शक्कर की कीमत 50 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुँच चुकी थी। आज जब शक्कर का क्षेत्र विनियंत्रित नहीं है तब शक्कर की कीमत आसमान को छू रही है। यदि इसको विनियंत्रित कर दिया जाएगा तो शक्कर के बाजार का क्या हाल होगा? लिहाजा इस बेलगाम मँहगाई को कम करने के बजाए शक्कर के क्षेत्र को विनियंत्रित करना किसी भी मापदंड पर खरा नहीं उतरेगा। हाँ, शरद पवार किस मिट्टी के बने हुए हैं, इसकी जरुर जाँच होनी चाहिए। आखिर उनका जनता से इतना अलगाव क्यों है, इस बात का पता तो चलना ही चाहिए?

लेखक परिचय:-
श्री सतीष सिंह वर्तमान में भारतीय स्टेट बैंक में एक अधिकारी के रुप में दिल्ली में कार्यरत हैं और विगत दो वर्षों से स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। भारतीय जनसंचार संस्थान से हिन्दी पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद 1995 से जून 2000 तक मुख्यधारा की पत्रकारिता में इनकी सक्रिय भागीदारी रही है। श्री सिंह से मोबाईल संख्या 09650182778 के जरिये संपर्क किया जा सकता है।

Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X