फिर इशरत जहां!
एनडीए शासनकाल में 15 जून 2004 को अहमदाबाद पुलिस ने इशरतजहां और अन्य तीन लोगों को आतंकवादी बताकर मुठभेड़ में मार गिराया था। उस मुठभेड़ की मजिस्टे्रट जांच में मुठभेड़ को फर्जी और सरकार से तमगे हासिल करने के लिए की गयीं हत्याएं बताया गया था। अब फिर इशरतजहां के बारे कहा जा रहा है कि अमेरिकी आतंकवादी डेविड हेडली ने भारतीय अधिकारियों को शिकागो में बताया था कि इशरतजहां का ताल्लुक लश्कर से था और वह मानव बम थी। तो क्या यह माना जाए कि मजिस्ट्रेट तमांग जांच रिपोर्ट गलत थी? मुठभेड़ के समय भी थे और आज भी ऐसे बहुत सारे सवाल हैं, जिनका जवाब दिया जाना चाहिए।
अक्सर होता है कि मुठभेड़ के फौरन बाद ही बिना किसी जांच के पुलिस अधिकारी कुछ ही घंटों में इस निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं कि मारा गया व्यक्ति आतंकवादी था। आखिर हमारी पुलिस इतनी काबिल कब से हो गयी कि उसे फौरन ही पता चल जाता है कि मुठभेड़ में मारे गए लोग आतंकवादी ही हैं?
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मुठभेड़ के समय कहा गया था कि इंटेलीजेंस ने पक्के सबूतों के आधार पर यह रिपोर्ट दी थी कि लश्कर-ए-तोएबा के आतंकवादी मुंबई से अहमदाबाद के लिए सीएम नरेन्द्र मोदी की हत्या के लिए चले हैं। यहां यह भी सवाल किया जा सकता है कि कथित आतंकवादियों को मुंबई में ही रोक कर गिरफ्तार करने की कोशिश क्यों नहीं की गयी थी ? उनका अहमदाबाद तक आने का इंतजार क्यों किया गया था? अहमदाबाद में घुसने के बाद ही मुठभेड़ क्यों हुई?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि किसी एक भी कथित आतंकवादी को जिन्दा पकड़ने की कोशिश क्यों नहीं की गयी? आखिर ऐसा क्यों होता है कि केवल नरेन्द्र मोदी को ही मारने आने वाले सभी कथित आतंकवादी मुठभेड़ में मार दिए जाते है, लेकिन बम ब्लॉस्ट करके मासूम लोगों की जान लेने वाले आतंकवादियों की भनक भी गुजरात पुलिस को नहीं लगती?
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शायद यह गुजरात के सीएम नरेन्द्र मोदी का ही खौफ था कि मीडिया, जिसे शुरु से ही इस मुठभेड़ का फर्जी होने का एहसास तो था, लेकिन पूरा मीडिया गुजरात पुलिस की कही बातों को ही 'अन्तिम सच' मानकर इशरतजहां को आतंकवादी बताता रहा था। उस समय मीडिया ने इस बात की जहमत नहीं उठायी थी कि सही तथ्यों को जांच परख कर खबरें दी जाएं। लेकिन एक लड़की का आतंकवादी होना और उसका मुठभेड़ में मारा जाना, एक सनसनीखेज खबर थी।
ऐसी ही खबरों से ही तो चैनलों की टीआरपी बढ़ती है। उस समय शायद मीडिया टीआरपी की होड़ में यह भी भूल गया था कि सच क्या है। जब पिछले साल मजिस्टे्रट तमांग मी जांच रिपोर्ट ने मुठभेड़ को फर्जी करार दिया तो मीडिया का सिर शर्म से झुक गया था। इसी शर्म के चलते पुण्य प्रसून वाजपेयी ने लिखा था 'इशरत हमें माफ कर दो।' हालांकि इशरतजहां और उसके साथी वापस नहीं आ सकते। लेकिन तमांग की रिपोर्ट से शरतजहां के परिवार को इस बात का सकून तो मिला ही था कि उनकी लड़की आतंकवादी नहीं थी। लेकिन इस नए तथाकथित खुलासे के बाद इशरतजहां का परिवार फिर से सदमे में है। इशरत के परिवार की यह मांग जायज है कि गृहमंत्री पी चिदंबरम साफ करें कि सच क्या है?