26/11 से बड़ा था बाबरी मस्जिद पर हमला
6/12 का हमला कुछ मायनों में 26/11 से भी बड़ा हमला इसलिए भी था क्योंकि 1 फरवरी 1986 को अनैतिक रुप से बाबरी मस्जिद का ताला खुलने के बाद से लेकर 6 दिसम्बर 1992 तक पूरे देश में पूरे संघ परिवार ने ऐसा धार्मिक उन्माद पैदा किया था कि उसे याद करके आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। उस वक्त बुजूर्गों का कहना था कि ऐसा धार्मिक उन्माद तो देश के बंटवारे के वक्त भी नहीं हुआ था। लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा ने 'पेट्रोल' का काम किया, जो जहां से गुजरी आग लगाती चली गयी। शहरों से लेकर गांवों तक रामशिला बांटने और उनके पूजन के नाम पर साम्प्रदाकिता का जहर हिन्दुओं में घोला गया। रातों-रात राम के नाम पर सेनाओं का गठन किया गया। जगह-जगह त्रिशूल बांटे गए। वे त्रिशूल रामसेवक का रुप धारण किए गुंडों में वितरित किए गए। पूरी योजना के तहत उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में प्रायोजित साम्प्रदायिक दंगों की श्रृंखला चलायी गयी।
प्रशासनिक
अधिकारियों
की
संलिप्ताता
साम्प्रदायिक
दंगों
का
सबसे
भयावह
रुप
प्रशासनिक
अधिकारियों
की
उनमें
संलिप्तता
रही
थी।
मैं
वह
मंजर
कभी
नहीं
भूल
सकता,
जब
मलियाना
में
आला
पुलिस
अधिकारियों
के
सामने
ही
दंगाईयों
ने
एक
घर
के
6
सदस्यों
को
एक
कमरे
में
बंद
करके
उसमें
आग
लगा
दी
थी।
जब
पुलिस
अधिकारियों
से
दंगाईयों
को
रोकने
के
लिए
कहा
गया
तो
वे
केवल
मुस्करा
कर
रह
गए
थे।
यह
बात
याद
रखी
जानी
चाहिए
कि
उस
वक्त
प्रदेश
में
कांग्रेस
की
सरकार
थी
और
जब
मलियाना
में
पुलिस
और
पीएसी
अपना
कहर
ढा
रही
थी
तो
उस
वक्त
के
मुख्यमंत्री
वीरबहादुर
सिंह
मलियाना
से
मात्र
6
किलोमीटर
दूर
एक
गेस्टहाउस
में
ठहरे
हुए
थे।
भले
ही
लिब्रहान
आयोग
ने
अपनी
रिपोर्ट
में
कांग्रेंस
को
क्लीन
चिट
दी
हो,
लेकिन
यह
सच
है
कि
बाबरी
मस्जिद
का
ताला
खुलने
से
लेकर
उसके
उसके
ध्वंस
तक
की
जिम्मेदारी
सिर्फ
और
सिर्फ
कांग्रेस
की
थी।
दरअसल,
उस
समय
उत्तर
प्रदेश
के
प्रशासनिक
अमले
का
एक
बड़ा
वर्ग
संघ
परिवार
के
एजेंडे
को
पूरा
करने
में
सहयोग
कर
रहा
था।
उस
वर्ग
पर
कांग्रेस
सरकार
का
कंट्रोल
नहीं
रह
गया
था।
इसलिए
राममंदिर
आंदोलन
के
चलते
हुए
साम्प्रदायिक
दंगों
में
खुलकर
पक्षपात
किया
गया
था।
उस
वक्त
दंगों
में
मरने
वालों
की
तादाद
तो
सबसे
ज्यादा
होती
ही
थी,
दंगाईयों
के
नाम
पर
पकड़े
गए
लोगों
में
नब्बे
प्रतिशत
मुसलमान
ही
होते
थे।
उन
पर
संगीन
धाराओं
में
मुकदमे
आयद
किए
गए
थे।
जेल
में
उनकी
जमकर
पिटाई
की
गयी
थी।
जेल
में
पिटाई
के
चलते
कई
लोग
जेल
में
मारे
गए
थे।
6/12 को एक मस्जिद ही नही ढहाई गयी थी, बल्कि देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र की भी हत्या कर दी गयी थी। 6/12 के बाद देश की राजनीति में निर्णायक तब्दीली आयी। बाबरी मस्जिद को ढहाने के बाद संघ परिवार ने अपने कुकृत्य को 'विजय' के रुप में प्रचारित करके साम्प्रदायिकता के जहर को बढ़ाने का काम किया था। संघ परिवार से पूछा जाना चाहिए कि अपने ही देश की एक प्राचीन और ऐतिहासिक इमारत को जमींदोज करके किस पर 'विजय' हासिल की थी ? जब पाकिस्तानी आतंकवादी 26 नवम्बर को मुंबई की छाती पर गोलियां बरसा रहे थे, तब उनके वीर 'रामसेवक' कहां सोए हुए थे? कहां चली गयी थी उनकी 'देशभक्ति'? रामसेवक भी जानते थे कि अयोध्या में तैनात पुलिस अमला उन्हें कुछ नहीं कहने वाला है, लेकिन वे जो पाकिस्तानी आतंकवादी थे उनकी नजर में मुंबई का प्रत्येक इंसान सिर्फ और सिर्फ भारतीय था। इसलिए आतंकी हमले में मरने वालों में मुसलमानों की भी अच्छी खासी तादाद थी। बाबरी ध्वंस के बाद मुंबई में भयानक साम्प्रदायिक दंगा हुआ। दंगाईयों का कुछ नहीं बिगड़ा। हमेशा की तरह दंगों के जख्मों को जांच आयोग के झुनझुने से सही करने की नाकाम कोशिश की गयी। श्रीकृष्णा आयोग बना दिया गया।
राममंदिर
आंदोलन
की
भयावह
परिणिति
गुजरात
नरसंहार
के
रुप
में
हुई।
गोधरा
में
एक
रेलगाड़ी
में
संदिग्ध
पस्थितियों
के
चलते
कथित
कारसेवकों
की
मौत
की
आड़
में
गुजरात
नरसंहार
किया
गया।