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घर में मिठास, राजनीति में कड़वाहट

By रविकांत प्रसाद
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Ravikant Prasad
पिछले दिनों कृषि मंत्री शरद पवार ने चीनी की बढ़ती दर पर बयान दिया था कि वे ज्योतिषी नहीं हैं, जो यह बता सकें कि चीनी के दाम कब घटेंगे। शरद के इस बयान से जाहिर होता है कि भारत के गरीबों को नमक की चाय पिलाकर खुद के घर में मिठास बनाए रखना चाहते हैं। शरद के परिवार में दर्जनभर से अधिक चीनी मिले हैं, ऐसे में जितने दाम बढ़ेंगे, उनके घर में मिठास उतनी ही बढ़ेगी। शरद के बयान पर राजनीति में उबाल आया तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को हस्तक्षेप करना पड़ा। मनमोहन का बयान आया कि महंगाई कम करने के लिए केन्द्र सरकार हर संभव कदम उठाएगी। यह खबर अखबारों में प्रथम पेज पर प्रमुखता से छापी गई। शरद मौके की नजाकत को देखते हुए एक सप्ताह चुप्पी साध बैठ गए। पुन: बीस जनवरी को उन्होंने फिर बयान दिया कि दूध के दाम में बढ़ोतरी होगी। उनके इस बयान से हर वर्ग के लोग उबल पड़े। जगह-जगह लोगों ने प्रदर्शन भी किया।

विपक्षी दलों ने मोर्चा खोला

विपक्ष ने तो बयानबाजी की पोटली खोल दी। हर तरफ निंदा ही निंदा। कई अर्थशास्त्रियों ने दबी जबां में कह डाला-'लगता है शरद के परिवारवाले अब दूध का धंधा शुरू करनेवाले हैं'। आंकड़े गवाह हैं कि किसी भी नेता के परिजन जिस चीज का व्यवसाय करते हैं। संबंधित विधायक या सांसद उसी विभाग का मंत्री बनना चाहते हैं। वजह साफ है कि इससे उनके परिवार को लाभ मिलेगा ताकि सात पुश्त बिना कमाए रोटी-मक्खन मिलता रहे। स्व. इंदिरा गांधी जब प्रधानमंत्री थी और राजीव गांधी ने सोनिया गांधी से शादी कर ली थी। तब, इंदिरा ने नागरिकता के कानून में संशोधन कर दिया ताकि सोनिया को भारत का नागरिक बनने में कोई परेशानी न हो। पिछले सप्ताह ही रेल मंत्री ममता बनर्जी ने राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के 'आजीवन फ्री रेलवे पास' को रद कर दिया।

लालू प्रसाद यादव ने रेल मंत्री से हटते-हटते खुद के लिए कई सुविधाएं सुरक्षित करवा लिया था। यह अलग बात है कि ममता एक-एक कर सभी सुविधाओं को रद कर रही हैं। पहले से महंगाई से त्राहि-त्राहि कर रहे गरीब से चाय भी दूर होती जा रही है। अब दूध के महंगा होने से बच्चे भी दूध-रोटी से महरूम हो जाएंगे। ऐसे में यह सवाल मंडरा रहा है कि शरद के परिवार वाले क्या अब दूध बेचेंगे? यह तय है कि दूध के दाम तुरंत नहीं भी बढ़ते हैं तो आने वाले समय में बढ़ेंगे? शरद ने चीनी की बढ़ती कीमतों का ठीकरा पिछले दिनों उत्तर प्रदेश सरकार के सिर भी फोड़ा था। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार वही नेता हैं, जिन्होंने 1999 में सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री न बनाने के मुद्दे पर कांग्रेस से अलग होकर यह पार्टी बनाई थी। शरद केंद्र सरकार में कृषि मंत्री के अलावा उपभोक्ता मामलों और खाद्य और लोक वितरण विभाग के भी मंत्री हैं।

विवादों से घिरे पवार

महाराष्ट्र में इन्हें एक बड़े किसान के रूप भी जाना जाता है। चार बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एवं छह बार लोकसभा के लिए चुने जा चुके और प्रधानमंत्री के प्रबल दावेदार शरद पवार की गिनती देश के बड़े नेता के रूप में होती है। सरकार के बनने-बिगडऩे में भी इनकी अहम भूमिका होती है। ऐसे में उत्तर भारत में दूध की कमी के संबंध में बयान देकर वे एक बार फिर विवादों में फंस गए। पवार ने कहा कि उत्तरी राज्यों में उत्पादन में कमी से दूध की कमी हो गई है। यह कमी करीब अठारह लाख टन है। इधर, सूत्रों का दावा है कि सरकारी नीतियों के चलते दूध की कमी हुई है। इससे पहले ही निजी दूधियों ने दूध की कीमत 32 रुपए लीटर कर दी है, जबकि मदर डेयरी व अमूल के दूध की कीमत 28 रुपए लीटर है। अक्टूबर में दिल्ली समेत कई राज्यों में दूध के दाम दो रुपए लीटर बढ़े थे।

इधर, आजादी के बाद भी बिहार की गिनती चीनी के मुख्य उत्पादक राज्य में होती थी। मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने सत्ता में आने के बाद बिहार में बंद पड़ी दस चीनी मिलों को खोलने के लिए केन्द्र से अनुमति मांगी, जिसे देने में केन्द्र को साढ़े तीन वर्ष लग गए। अक्टूबर 2009 में केन्द्र ने अनुमति दी, इसके पश्चात यहां चीनी मिल खोलने की सुगबुगाहट शुरू हुई। नीतीश सरकार ने इथेनाल बनाने की अनुमति भी मांगी थी। बिहार के पूर्णिया की बंद चीनी मिल बनमंकी एशिया की सबसे बड़ी मिल है। आज यदि ये मिलें चालू होतीं तो चीनी संकट इस तरह सर पे सवार नहीं होता। इन समस्याओं से अधिक शरद पवार को क्रिकेट के व्यवसायीकरण में रुचि रही है। शरद के इस तरह के बयान से यह भी अंदेशा हो रहा है कि कहीं कांग्रेस अपनी पुरानी नीति पर तो नहीं लौट रही है। यहां बता दें कि कांग्रेस पहले उत्पादन बढ़ाने की जगह उत्पादन को नियंत्रित कर व्यावसायिक लाभ में बदलने का काम करती रही है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि शरद का राजनीति ढलान शुरू हो गया है। कुछ भी हो शरद के इस बयान का पुरजोर विरोध विपक्ष और आम लोगों ने नहीं किया तो इनकी बयानबाजी और मनमानी बढ़ेगी, जिसका असर गरीबों पर सबसे ज्यादा पड़ेगा।

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