पंजाब हिंसा से सबक ले सरकार
सरकार
भी
जिम्मेदार
किसी
भी
दुर्घटना
के
बाद
यदि
तोड़फोड़
होती
है
तो
इसके
लिये
सरकार
भी
कम
जिम्मेदार
नहीं
है।
कुछ
ही
मामले
ऐसे
होते
हैं
जिसमें
तोड़फोड़
व
हंगामा
करने
वाले
एकतरफा
जिम्मेदार
होते
हैं।
दोनों
ही
स्थितियों
में
तोड़फोड़
और
देश
की
संपत्ति
को
नुकसान
पहुंचाना
उचित
नहीं
है।
यदि
किसी
व्यक्ति
की
हत्या
हो
जाती
है
तो
उसके
परिजनों
की
एक
ही
चाहत
होती
है
कि
दोषियों
को
सजा
मिले।
परंतु
देश
की
कानून
व्यवस्था
ऐसी
है
कि
दो
दशक
बाद
भी
कम
ही
लोगों
को
इंसाफ
मिल
पाता
है।
बिहार के सीतामढ़ी में 11 अगस्त 1998 को समाहरणालय में शांतिपूर्वक जुलूस इसके पश्चात सभा करने के लिए इक्ट्ठे हुए बाढ़ पीड़ितों पर तत्कालीन एसपी परेश सक्सेना ने गोली चलाने का हुक्म दिया था। इसमें पूर्व विधायक रामचरित्र राय, एक महिला सहित पांच लोग मारे गये थे। एसपी ने जदयू नेता मनोज कुमार समेत कई लोगों को प्रताड़ित भी किया गया था। तब मनोज ने एसपी पर मुकदमा दर्ज किया। इस मामले में आज तक उन्हें इंसाफ नहीं मिला। मनोज की आंखें न्याय की आस में आज भी नम हैं।
कैसे
टूटे
अफसरों
की
नींद
इधर
के
कुछ
वर्षों
में
देखने
को
मिल
रहा
है
कि
सरकार
का
ध्यान
आकृष्ट
करने
के
लिए
लोग
तोड़फोड़
व
हंगामा
का
सहारा
ले
रहे
हैं।
सरकार
उनकी
मांगें
तब
सुनती
हैं
लाखों-करोड़ों
की
संपत्ति
बर्बाद
हो
जाती
है।
5
मई
को
सीतामढ़ी
के
पुपरी
में
करंट
से
बस
में
बैठे
तीस
से
अधिक
यात्री
झुलसकर
मर
गये
थे।
अफसरों
की
नींद
तब
खुली
थी
जब
ग्रामीणों
ने
हंगामा
व
तोड़फोड़
शुरू
किया।
जिस
वक्त
यह
घटना
घटी
राजद
सुप्रीमो
लालू
प्रसाद,
लोजपा
के
रामविलास
पासवान
व
मुख्यमंत्री
चुनावी
सभा
में
मशगूल
थे।
तीनों
बड़े
नेताऒ
में
से
किसी
ने
घटनास्थल
पर
पहुंचना
मुनासिब
नहीं
समझा
था।
वियना की घटना पर चुप्पी क्यों
इसी तरह आस्ट्रिया के वियाना में दो सिख गुटों के बीच झड़प में घायल संत रामानंद की मौत 25 मई को हो गयी। केन्द्र को जब इस बात की जानकारी हुई, उसी वक्त आस्ट्रिया सरकार से इस संबंध में संपर्क साधना चाहिए था कि वहां की सरकार क्या कार्रवाई कर रही है। देश के नाम सरकार का बयान जारी होना चाहिए था। परंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ। नतीजन, सिखों को लगा कि सरकार इस संबंध में चिंतित नहीं है।
सरकार का ध्यान इस मुद्दे पर जाए, सिखों ने 25 मई को जम्मूतवि एक्सप्रेस के 11 डिब्बे फूंक दिये। इसके अलावा कई बसों को आग के हवाले कर दिया। देखते ही देखते वियाना की आग पंजाब के जालंधर, लुधियाना, होशियारपुर पहुंच गयी। पंजाब में करोड़ों की संपत्ति को सिखों ने आग के हवाले कर दिया। बिगड़ते हालात पर काबू पाने के लिए सरकार ने कई जगहों पर कर्फ्यू लगा दिया।
सरकार
जागी
मगर
देर
से
इतना
होने
पर
केन्द्र
की
सरकार
जागी
और
प्रधानमंत्री
ने
सिखों
से
धैर्य
रखने
की
अपील
की।
यह
भी
बयान
जारी
किया
गया
कि
आस्ट्रिया
के
अधिकारियों
से
संपर्क
रखा
जा
रहा
है।
यहां
ध्यान
देनेवाली
बात
है
कि
सिख
जानते
हैं
कि
यह
घटना
दूसरे
देश
में
हुई
है।
ऐसे
में
उनका
इरादा
सिर्फ
अपनी
बात
को
सरकार
तक
पहुंचाना
था।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट अपने एक मह्त्वपूर्ण फैसले में कह चुका है कि देश की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले से ही यह राशि वसूली जाएगी। इसके बावजूद उसका कोई असर नहीं दिख रहा है। जनता सरकार तक अपनी मांग कैसे पहुंचाए? इस पर सरकार को विचार करना चाहिए। तोड़फोड़ के बाद और करोड़ों की संपत्ति के नुकसान के बाद ही क्यों चेतती है सरकार? इसपर भी गंभीरता से मंथन होना चाहिए।
इसी मुद्दे पर पढ़ें अंशुमाली रस्तोगी का एक अलग नजरिए से लेख