अपने ही बुने जाल में फंस गए लालू
चेहरा झूठ नहीं बोलता...
हालांकि लालू इसे बखूबी छिपाने की कोशिश में जुटे हैं। इसके बावजूद उनका चेहरा साथ नहीं दे रहा है। इससे पता चलता है कि दाल में कुछ तो काला है। लालू यूपीए सरकार में पिछले पांच साल तक रेल मंत्री रह चुके हैं। हर बजट में उन्होंने रेलवे को फायदे में दिखाया। ममता बनर्जी ने जब तीन जुलाई को रेल बजट पेश किया तो लालू पर जमकर निशाना साधा।
बाद में ममता ने संसद में बताया कि रेलवे के पास मात्र 8,361 करोड़ रुपये अतिरिक्त हैं। जबकि लालू कहते रहे हैं कि यह रकम 90 हजार करोड़ से अधिक हैं। श्वेत पत्र लाने के नाम पर पहले तो लालू ने संसद में ही ममता पर जमकर तीर छोड़े। यहां तक कि जिस यूपीए सरकार को वे बाहर से समर्थन दे रहे हैं। उस पर भी निशाने साधे। इसके बावजूद श्वेत पत्र लाने के फैसले पर सरकार अडिग रही।
नियुक्तियों
में
धांधली
11
जुलाई
को
जदयू
के
विधान
पार्षद
संजय
सिंह
ने
संवाददाता
सम्मेलन
में
यह
जानकारी
दी
कि
लालू
ने
बिना
एडवरटीजमेंट
व
किसी
अन्य
औपचारिकता
के
216
लोगों
की
बहाली
ट्रैकमैन
व
पोर्टर
के
पद
पर
की
थी।
इसमें
डेढ़
सौ
लोग
लालू
के
ही
जाति
के
हैं।
वहीं,
22
लोग
लालू
के
ससुराल
के
हैं।
इससे
बिहार
की
राजनीति
में
भूचाल
आ
गया
है।
लालू
इस
मामले
में
भी
फंसते
नजर
आ
रहे
हैं।
इधर, लालू अपने पांच वर्ष के कार्यकाल में नब्बे हजार करोड़ राशि के 'सरप्लस' की बात पर कायम हैं। वे रेल मंत्री ममता पर निशाना साधने से कोई गुरेज नहीं कर रहे हैं। हालांकि वे खुलकर ममता का नाम लेने से परहेज कर रहे हैं। दरअसल लालू प्रसाद ने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि कभी वे मंत्री पद से बेदखल कर दिये जाएंगे। बिहार में करोड़ों रुपये के चारा घोटाले में वे कई बार पहले ही जेल जा चुके हैं। यह केस अभी तक खत्म नहीं हुआ है। अब कहीं रेलवे में भी तो कुछ हेरफेर नहीं किया गया है?
फिर
हेराफेरी?
इस
बात
को
बिहार
के
जदयू
नेता
खूब
उछाल
रहे
हैं।
नेताओं
का
कहना
है
कि
यदि
सबकुछ
ठीक
है
तो
लालू
इतना
घबरा
क्यों
हो
रहे
हैं?
मुख्यमंत्री
नीतीश
कुमार
ने
यहां
तक
कह
दिया
कि
पूर्व
रेलमंत्री
व
राजद
सुप्रीमो
लालू
प्रसाद
श्वेत
पत्र
से
डरकर
पहले
ही
गुनाह
कबूल
ले
रहे
हैं।
श्वेत
पत्र
लाने
की
प्रधानमंत्री
की
मंजूरी
के
बाद
लालू
का
जख्म
और
हरा
हो
गया
है।
लोकसभा चुनाव में बिहार में लालू-पासवान ने सिर्फ तीन सीटें कांग्रेस को दी थीं। इससे नाराज होकर कांग्रेस ने सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े कर दिये थे। इसका फायदा जदयू-भाजपा ने उठाया। लोजपा का सूपड़ा साफ हो गया। वहीं लालू के पाले में सिर्फ चार सीटें आयीं।