फिल्मों के पुरुष, माफी और हम
इसके बाद कई सारी फिल्मों में पुरुषों की गलतियां और उनके माफी मांगने के किस्से सामने आते रहे. समय के साथ स्त्रियों के उन्हें माफ करने या न करने के या कितना माफ करना है आदि के बारे में राय बदलती रही. वैसे कई फिल्मों में बल्कि ज्यादातर में पुरुष अपनी गलतियों के लिए माफी नहीं भी मांगते हैं बल्कि अपनी गलतियों को कुछ इस तरह जस्टीफाई करते हैं कि उसकी गल्ती के लिए औरत ही जिम्मेदार है, लेकिन आज बात माफी मांगने वाले पुरुषों की ही.
इसी माफी मांगने वाले फिल्मी पुरुषों की कड़ी में पिछले दिनों फिल्म 'पा' का एक पुरुष भी शामिल हो गया. पुरुष यानी फिल्म का नायक अमोल अत्रे. अमोल और विद्या का प्रेम संबंध बिना किसी फॉमर्ल कमिटमेंट के एक बच्चे की परिणिति का कारण बनता है. अमोल बच्चा नहीं चाहता, इन फैक्ट शादी भी नहीं करना चाहता. देश की सेवा करना चाहता है. करता भी है. उसे पता भी नहीं है कि उसका कोई बच्चा है, वह इस इंप्रेशन में है कि उसका बच्चा विद्या ने अबॉर्ट कर दिया है. लेकिन तेरह साल बाद जब ऑरो के रूप में उसे अपनी संतान का पता चलता है तो अमोल (अभिषेक) तुरंत अपनी पिछली से पिछली गलती को समझ जाता है. उसे एक्सेप्ट कर लेता है और पूरे देश के सामने एक रियलिटी शो में विद्या से माफी मांगता है और बच्चे को अपनाता भी है. अमोल एमपी है, उसका शानदार पॉलिटिकल करियर है. फिर भी वह माफी मांगता है इन चीजों की परवाह किये बगैर. विद्या का गुस्सा इस सबसे शांत नहीं होता. वह उसे माफ भी नहीं करती. वह अमोल के गले की हिचकी नहीं बनना चाहती.
कहां
गए
माफी
मांगने
वाले
पुरुष
मेरे
दिमाग
में
इस
दौरान
एक
बात
घूमती
रही
कि
असल
जिंदगी
में
इस
तरह
से
माफी
मांगने
वाले
पुरुष
कहां
गायब
हैं.
हां,
गलतियां
करने
वाले
पुरुषों
की
संख्या
लगातार
बढ़
रही
है.
लेकिन
जैसे-जैसे
वे
समझदार
हो
रहे
हैं,
उनकी
तार्किक
शक्ति
बढ़
रही
है.
अपनी
चीजों
को
जस्टीफाई
करने
के
तर्क
भी.
यथार्थ
में
माफी
मांगने
वाले
पुरुष
नदारद
हैं.
रिश्तों
में
माफी
का
बड़ा
महत्व
होता
है.
कोई
भी
माफी
मांगने
से
छोटा
नहीं
होता.
यह
गुरुमंत्र
जब
मांएं
अपनी
बेटियों
को
दे
रही
होती
हैं,
तब
उन्हें
नहीं
पता
होता
कि
इसकी
ध्वनि
कुछ
इस
तरह
जा
रही
है
कि
गलती
कोई
भी
करे
तुम
माफी
मांग
लेना
और
सब
ठीक
हो
जायेगा.
ऐसा
होता
भी
रहा
है.
इसी
मंत्र
ने
परिवारों
की
बुनियाद
को
मजबूत
बनाये
रखा.
दूसरों
की
गलतियों
का
इल्जाम
अपने
सर
लेकर,
खुद
ही
माफी
मांगने
के
बावजूद,
पिटने
के
बावजूद
रिश्ता
बचाने
की
जद्दोजेहद
में
औरतों
ने
अपने
वजूद
से
ही
लगभग
किनारा
कर
लिया
है.
आत्म
सम्मान
वाली
औरतें
पुरुषों
को
लुभाती
हैं,
लेकिन
वे
घर
की
औरतें
नहीं
होतीं.
आखिर क्यों है ऐसा? दुनिया बदल रही है. समझदारियां भी बढ़ रही हैं. रिश्तों में स्पेस, डेमोक्रेसी जैसे शब्दों ने भी अपनी जगह बनानी शुरू कर दी है. लेकिन यहीं कुछ गड़बड़ा रहा है. वो माफियां जो पुरुषों की जानिब से आनी थीं, उनका स्पेस खाली पड़ा है. स्त्रियों को उनका स्पेस मिले न मिले लेकिन माफियों का वो स्पेस रिश्तों के दरमियान लगातार बढ़ रहा है. जीवन फिल्म नहीं होता. जीवन में पुरुषों के पास माफी से बड़ा अहंकार होता है. जिसे पालने-पोसने में ही वे पुरुषत्व मानते हैं. जहां समझदारियां थोड़ी ज्यादा व्यापक हैं वहां माफियां आ तो जाती हैं लेकिन कुछ इस रूप में कि वे भी किसी सजा से कम नहीं होतीं. क्या इतना मुश्किल होता है पुरुषों का माफी मांगना. रिश्तों को संभाल लेने की सारी जिम्मेदारी स्त्रियों के मत्थे मढ़कर कब तक परिवारों के सुरक्षित रहने की खैर मनायी जा सकती है.