मोबाईल: मस्ती या मुसीबत?
या ऐसी चीज हमारे भी हाथ मे आएगी क्योकि उस समय लैंड लाईन का ही जमाना था. हाँ कई जगहो पर फोन की तार जरुर लंबी हुआ करती थी कि ज्यादा से ज्यादा हम उसे एक कमरे से दूसरे कमरे तक ले जा सकते थे. वैसे आमतौर पर यह फोन द्फ्तर या बैठक की ही शोभा हुआ करता था.
उस समय घर मे फोन होना बहुत इज्जत वाली बात थी. पूरी कालोनी मे एक या दो फोन होना बहुत बडी बात हुआ करती थी. उस आदमी का समाज मे एक अलग ही रुतबा होता था. उनके फोन की महत्ता घर के किसी प्रौढ़ आदमी से कम नही थी. ना सिर्फ फोन का खास ख्याल रखा जाता था बल्कि उसकी झाड़
पोछ के लिए एक अलग ही साफ सुथरा कपडा इस्तेमाल मे लाया जाता था समय बीता. आज हाल देख ही रहे है सभी आम और खास लोगो की जरुरत बन चुका है ये मोबाईल. समय इतना बदल गया है कि जिसके पास मोबाईल नही है उसे बहुत अजीब नजरो से. देखा जाता है. घर मे लैंड लाईन तो है पर ज्यादातर
नेट के लिए ही रखा हुआ है. बाते तो उस पर बहुत कम ही होती हैं क्योकि लोग मोबाईल पर ही बात करना ज्यादा पसंद करते हैं और हो भी क्यो ना. फायदे तो बहुत ही है. हम कही भी, कभीं भी, किसी से भी बात कर सकते हैं. चिंता कम हो गई है सफर मे तो इसका खास सहारा होता है कौन घर कब पहुँच
रहा है या दफ्तर कब तक आ जाएगा हर मिनट का हिसाब होता है तो आराम हुआ ना. मस्ती ही मस्ती हुई मुसीबत कहाँ हुई. पर जनाब. बताती हूँ. बताती हूँ. अक्सर क्या होता है फोन नम्बर तो लोग हमे दे देते हैं लेकिन काम पडने पर वो फोन ही नही उठाते और मिलने पर बोल देते हैं कि मै व्यस्त था या झूठ बोल देते है कि मीटिंग या आउट आफ स्टेशन था. लो कर लो बात. पर आप कुछ नही कर सकते. फिर तंग करने वालो की भी कोई कमी नही है खास कर लड्को को किसी लड्की का नम्बर मिला नही कि आधी आधी रात को भी बेवजह तंग करना शुरु कर देते हैं उल्टे-सीधे एस एम एस भेजते है. उनके घर मे कितनी टेंशन हो जाती होगी सोचा जा सकता है.
अगर इसकी शिकायत करे या एफ आई आर करे तो मुसीबत क्योकि यही लगता है कि लड्की का चरित्र ही ठीक नही होगा. इस पर माँ-बाप भी लड्की को मोबाईल देते हुए कतराते है. कोई महाशय ऐसे होते है कि फोन मिलाते ही काट देते है ताकि उसकी काल के पैसे ही ना लगे. कुछ लोग ऐसे होते है कि घंटी पर घंटी दिए जाते है अगला चाहे वाकई मे व्यस्त हो. कुछ लोग तो और भी कमाल हैं जिस को फोन वो कर रहे होते है और अगर वो फोन उठा ले तो उसे गुस्सा हो जाते है कि फोन क्यो उठा लिया वो तो कालर टोन सुन रहे थे अब मत उठाना. कुछ तो मोबाईल पर सिवाय फोन करने के गेम खेलते है, गाने सुनते है, तस्वीरे खिचते है, वीडियो बनाते है या नेट करते है बस फोन ही नही करते. अब भला बताइए ये आराम के लिए है या दुख देने के लिए. आप ही करे फैसला कि आप बताना जरुर कि मोबाईल मस्ती है या मुसीबत.
लेखक
परिचय:
मोनिका
गुप्ता
'जय
स्वच्छता
समिति'
की
अध्यक्ष
एवं
प्रतिभाओं
को
खोजने
वाली
संस्था
'दोस्त'
की
ऑनरेरी
सचिव
हैं।
एक
समाजसेविका
होने
के
साथ-साथ
पत्रकार
भी
हैं।
मोनिका
गुप्ता
सामाजिक,
शैक्षिक
मुद्दों
और
महिलाओं
व
बच्चों
से
जुड़े
मुद्दों
पर
लिखती
हैं।
आप
एक
अंतर्राष्ट्रीय
न्यूज़
चैनल
के
लिए
काम
भी
करती
हैं।
आप
चार
किताबें
लिख
चुकी
हैं,
जिनमें
से
एक
को
बाल
साहित्य
पुरस्कार
भी
मिल
चुका
है।
मोनिका
गुप्ता
हरियाणा
के
सिरसा
जिले
की
रहने
वाली
हैं।