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लोक गीत सहेजने का अनूठे प्रयास

By मोनिका गुप्‍ता
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Folf music programme
आज समय तेज रफ्तार का है सब कुछ जल्दी बहुत जल्दी होता जा रहा है. आज हम टिकट की लाईन मे लग कर टिकट लेना भूल गए हैं. जब टेलिफोन नम्बर एक्सचेंज मे बुक करवा कर तीन मिनट ही बात करवाई जाती थी, वो भूल गए हैं. या यू कहे कि वो बाते याद ही नही करना चाहते.

इसमे कोई शक नही कि पिछ्ले 10-20 सालो मे देश की बेहिसाब तरक्की हुई है, पर कई बार कही ना कही ऐसा महसूस होता है कि हम कुछ भूलते भी जा रहे है जैस-परिवार के प्रति हमारा प्यार, हमारी सस्कृंति, हमारे रीति रिवाज, हमारे लोक गीत, आदि. जब बात लोकगीतो की आती है तो आज की युवा पीढ़ी को उनके बारे मे विशेष जानकारी ही नही है. गानो के नाम पर फिल्मी धुने हैं. बस उसी पर ही थिरक लेते हैं. चाहे शादी हो या त्यौहार, या कोई खास मौका. सभी को जल्‍दी रहती है.

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तो क्या एक दिन ऐसा आएगा कि हम अपने पुराने सांस्‍कृतिक व क्षेत्रीय संगीत को पूरी तरह से भूल जाएगे. ऐसा शायद हरियाणा में तो नहीं होगा. हरियाणा के लोक गीतों को सहेज कर रखने का प्रयास शुरु हो चुका है और इसका जिम्मा उठाया सिरसा की डाक्टर किरन ख्यालिया व उनकी बहन ने. डा.किरन राजकीय नेशनल कॉलेज, सिरसा मे संगीत विभाग की अध्यक्षा हैं.उनकी बहन सुनीता चौधरी हिसार में रेडियो कलाकार हैँ.

इन दोनो बहनों ने मिल कर हमारी हरियाणवी लोक संस्क्रृति के शादी ब्याह के गीतो का सकंलन तैयार कर के उसे गाया है जिसमे मगंल गीत, टीका, बान, आरता बनवारा, बनडा, बनडी, महेंदी, बाकली, भात लेते, भात देते, झोल, घुडचढी, बारात चढावन, बंघावा, बहू उतारन, ढुकाव, फेरे, सिढ्णे आदि 99 गीतो का सकंलन है.

विस्तार से बात करने के बाद किरन जी और सुनीता जी ने बताया कि आजकल शादी जैसे शुभ मौके पर लोक गीत सुनने को ही नही मिलते. उसकी जगह पाश्वचात्य संगीत ने ले ली है यह देख सुन कर बहुत दुख होता कि वर्तमान मे यह हाल है तो भविष्य मे तो सोच भी नही सकते.

बस इन सब बातो का ध्यान रखते हुए हरियाणवी लोक गीतों को जड़ से खोजना शुरु किया. काफी गीत तो पहले से ही आते थे. पर फिर भी नए सिरे से इस पर काम करना शुरु किया. लोक गीत इक्कठे करने शुरु किए. अपनी माता जी. मौसी जी की मदद से उन गीतों को सहेजना शुरु किया, क्योकि वो लोक गीतों का भंडार थीं. असंख्य लोक गीत उनकी जुबान पर रहते. लगभग एक साल की कड़ी महेनत के बाद आज संगीतबध लोकगीतों का कुछ अंश हमारी धारोहर के रुप मे हमारे पास हैं. हांलाकि यह बहुत लम्बी प्रक्रिया है. संगीत का क्षेत्र बहुत विशाल है. पर हमे खुशी है कि हम अपनी परम्परा को जीवित रखने की जो कोशिश कर रहे हैं वो सार्थक सिदृ हो रही है.

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म्हारी रीत म्हारे गीत नामक आडियो सीडी धरोहर के नाम से बनाई है. जिसमें शादी के गीतो का सकंलन है. उस समय की सारी रस्मो के गीत हैं जो इन शुभ अवसरों पर गाए जाते हैं. बातो-बातों मे उन्होंने बताया कि अभी भी विवाह के काफी गीत जो रह गए हैं. उनका संकलन तैयार करने के बाद ऋतुओं के गीत जिसमें सावन, फागुन में मस्ती के तथा कार्तिक मे भजन गाए जाते हैं. उनका समावेश होगा. उसकी भी सीडी बनेगी. इसके इलावा हरियाणवी लोक गीतो मे नाचने के भी ढेर सारे गीतो पर काम चल रहा है. असल मे हरियाणवी गीतो पर कदम खुद ब खुद ही थिरकने लगते हैं.

27 मार्च को हरियाणा के मुख्यमंत्री की पत्नी श्रीमती आशा हुड्डा ने हिसार के इन्दिरा गाधी आडीटोरियम मे इस सीडी का विमोचन करके कुछ गीतो का आन्नद लिया और उन्होने इसे बहुत सराहा. आज यह सीडी घर घर मे लोकप्रिय हो रही है खासकर शादी–ब्याह मे तो यह बहुत ही ज्यादा पसंद किया जा रहा है.

अब बात यह आती है कि इस विषय मे विशेष क्या है. इसकी पहली खास बात तो यह है कि पुरुष प्रधान समाज मे महिलाओ ने पहल की और ऐसी पहल जो काबिले तारीफ है. दूसरी अहम बात यह है कि उम्र बाधा नही नी. सुनीता जी दादी है और उनके दो पोता पोती है उनका सयुंक्त परिवार है जिसमे ना सिर्फ बेटा बहु बलिक उनके सास ससुर भी साथ रहते हैं पर दोनो बहने गाने की इतनी शौकीन है कि जब भी समय मिलता है रियाज करने बैठ जाती है किसी भी महिला के आगे बढ्ने मे. परिवार के सहयोग की अहम भूमिका रहती है. इस मामले मे भी दोनो भाग्यशाली रहीं. दोनो के परिवारो ने उन्हे बहुत उत्साहित किया. किरन जी भी मानती है कि वो अपने पति श्री युधबीर सिह ख्यालिया के सहयोग के बिना वो इतना बडा काम नही कर पाती. उनका सहयोग मिला और काम लगातार होता चला गया.

इस बात मे कोई दो राय नही कि अगर मन मे लग्न हो और कुछ करने का जोश हो और परिवार का साथ हो तो कोई काम नामुमकिन नही. अगर देश के लोक गीतो की सस्कृंति को जिंदा रखना है तो किसी ना किसी को बीडा उठाना ही पडेगा जिससे ना सिर्फ हमारी संस्क़ृति धरोहर रुप मे बची रहेगी बलिक सदियो तक जानी जाती रहेगी. जिस पर ना सिर्फ हमें बलिक हमारी आने वाली पीढी को गर्व रहेगा.

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