आस्ट्रेलियाः नस्लवाद आज भी कायम
आस्ट्रेलिया में भारतीय मूल के लोगों पर हमलों का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा। एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले बारह महीनों में, इस तरह के 1,447 हमले हुए हैं, यानी हर रोज 3-4 हमले.... पिछला लेख देखें
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1901 में आस्ट्रिलिया में इमिग्रेशन रेस्ट्रिक्शन एक्ट (आप्रवास परिसीमन अधिनियम) पारित किया गया। इस अधिनियम को आस्ट्रेलिया संसद में भारी बहुमत प्राप्त हुआ। लेकिन इससे पहले ही नस्लवादी नीतियां प्रचलन में आ गई थीं। उदाहरण के लिए चीनी मजदूरों से आवास कर के रूप में एक अतिरिक्त भारी कर लिया जाने लगा था, जिसे आजकल पाकिस्तान में तालिबान द्वारा सिक्खों से लिए जानेवाले जजिया के समान माना जा सकता है।
यह नस्लवादी कानून 50 वर्षों तक कायम रहा, यानी दूसरे महायुद्ध के अंत तक। इस युद्ध में यूरोप लगभग तबाह हो गया। ब्रिटन, जर्मनी, फ्रांस, इटली, रूस, पोलैंड, बेल्जियम आदि देशों के करोड़ों नागरिक युद्ध में मारे गए। इन देशों की फैक्टरियां, पुल, इमारतें, आदि संपत्तियां भी लगभग पूरी-पूरी नष्ट हो गईं। इन देशों को इन सबको दुबारा नए सिरे से निर्मित करने की आवश्यकता हुई। इसलिए यूरोप की समस्त मानव-शक्ति इस भगीरथ कार्य में जुट गई। इसलिए उधर आस्ट्रेलिया जाकर बसने के लिए तैयार यूरोपीय मूल के लोग मिलने बंद हो गए।
अर्थव्यवस्था
को
नुकसान
इससे
आस्ट्रेलिया
की
अर्थव्यवस्था,
खास
करके
ग्रामीण
अर्थव्यस्था
बुरी
तरह
प्रभावित
होने
लगी।
खेत
में
काम
करनेवाले
लोगों
की
किल्लत
हो
गई।
तब
झक
मारकर
आस्ट्रेलिया
को
अपने
नस्लवादी
कानून
को
ताक
पर
रखना
पड़ा।
यह
काम
अत्यंत
धीरे-धीरे
ही
किया
गया।
1975
तक
आस्ट्रेलिया
में
नस्ल
के
आधार
पर
भेदभाव
करना
कानून
की
दृष्टि
में
मान्य
रहा।
तब
तक
जापान,
कोरिया,
चीन
आदि
देश
इतने
शक्तिशाली
हो
गए
थे,
कि
उन्हें
नजरंदाज
करना
मुश्किल
हो
गया।
दूसरे,
चीन,
वियतनाम,
इंदोनीशिया
आदि
देशों
में
ही
अतिरिक्त
आबादी
मौजूद
थी
जिन्हें
आस्ट्रेलिया
आने
के
लिए
फुसलाया
जा
सकता
था।
यह
तभी
संभव
हो
सकता
था
जब
आस्ट्रेलिया
की
नस्लवादी
छवि
को
पोंछ-पांछकर
आकर्षक
बनाया
जाए।
आधी शती तक आस्ट्रेलिया पर हावी रही नस्लवादी व्यवस्था ने वहां के गोरों की मानसिकता में गहरी पैठ कर ली है, और आज भी कई आस्ट्रिलाई प्रच्छन्न रूप से नस्लवादी रुझान रखते हैं। यह अनेक छोटी-मोटी घटनाओं से जाहिर होती रहती है। मसलन, अभी हाल में भारतीय मूल के डाक्टर मुहम्मद हनीफ को आस्ट्रेलियाई पुलिस ने आंतकी होने के मनगढ़ंत आरोप पर पकड़ लिया था और उन्हें देश से निकाल तक दिया था। पर अंत में डा. हनीफ निर्दोष साबित हुए। यह नस्लवाद आस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम के रवैए से भी खूब उजागर होता है।
आज
भी
मौजूद
है
नस्लवाद
आज
भी
आस्ट्रेलिया
के
नेता
चुनाव
के
समय
नस्लवाद
का
बिगुल
बजाते
हैं।
वर्ष
2007
में
हुए
चुनाव
में
एक
प्रमुख
आस्ट्रेलियाई
नेता
पोलिन
हैन्सन
ने
आस्ट्रेलिया
में
गैर-यूरोपियों
के
आने
पर
रोक
लगाने
को
मुख्य
चुनावी
मुद्दा
बनाया
था।
उसने
इस
मुद्दे
को
लेकर
एक
अलग
पार्टी
ही
बना
डाली
थी,
जिसका
नाम
है
पोलिन्स
युनाइटेड
आस्ट्रिलिया
पार्टी।
यह
भारतीय
जनता
पार्टी,
शिव
सेना,
महाराष्ट्र
नवनिर्माण
सेना
और
राष्ट्रीय
स्वयं
सेवक
संघ
की
याद
दिलाता
है,
जो
भी
'भारत
केवल
हिंदुओं
के
लिए"
वाली
नीति
को
लेकर
चलते
हैं।
आस्ट्रेलिया की नस्लवादी नीतियों का विषैला प्रभाव दुनिया के अन्य भागों में भी देखा गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि दक्षिण आफ्रीका की रंगभेदी नीति भी आस्ट्रेलिया की नस्लवादी नीतियों के तर्ज पर बनी थी। इसी नीति के विरोध में गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में लगभग 20 साल सत्याग्रह किया था। गोखले, तिलक आदि भारतीय नेताओं ने उन्हें खूब समर्थन दिया था। गोखले तो रंगभेद के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए और दक्षिण अफ्रीका में बसे भारतीय मूल के हिंदू, मुसलमान और ईसाई समुदायों के अधिकारों के हनन के विरोध में अपनी आवाज मिलाने दक्षिण अफ्रीका के दौरे पर भी गए।
आस्ट्रेलिया
और
विश्व
समुदाय
इसलिए
आज
आस्ट्रेलिया
में
जो
नस्लवाद
देखने
में
आ
रहा
है,
वह
कोई
छिटपुट
घटना
नहीं
है,
बल्कि
दशकों
से
चली
आ
रही
वहां
की
नस्लवादी
नीतियों
का
परिणाम
है।
विश्व
समुदाय
को
इन
घटनाओं
की
और
आस्ट्रेलिया
में
परोक्ष
रूप
से
प्रवर्तमान
नस्लवाद
की
तीक्ष्ण
से
तीक्ष्ण
शब्दों
में
निंदा
करनी
चाहिए,
और
उस
पर
आर्थिक
प्रतिबंध
आदि
लगाकर
जल्द-से-जल्द
उसे
रास्ते
पर
लाना
चाहिए।
यह आशा जगानेवाली बात है कि इस मामले में चीन और भारत एक सुर में बोल रहे हैं। आज इन्हीं दो देशों से सर्वाधिक लोग आस्ट्रेलिया में बसने और वहां पढ़ने जाते हैं। इसलिए नस्लवाद के शिकार भी वे ही अधिक होते हैं। हमें आशा करनी चाहिए कि अन्य सभ्य देश भी चीन और भारत की पहल का अनुसरण करके आस्ट्रेलिया को नस्लवाद से मुक्त करने का बीड़ा उठाएंगे।
[बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण एक स्वतंत्र लेखक, ब्लागर और अनुवादक हैं।]