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शुरू से ही नस्लवादी रहा है आस्ट्रेलिया

By बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण
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Racism in Australia
आस्ट्रेलिया में भारतीय मूल के लोगों पर हमलों का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा। एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले बारह महीनों में, इस तरह के 1,447 हमले हुए हैं, यानी हर रोज 3-4 हमले। इनमें से अधिकांश हमलों की रिपोर्टों को स्वयं हमले के शिकार भारतीय दबा देते हैं, क्योंकि वे नहीं चाहते कि इसका बहाना बनाकर उन्हें आस्ट्रेलियाई सरकार भारत वापस भेज दे।

बढते हमले चिंताजनक

पर पिछले कुछ दिनों में ये हमले एकदम से बढ़ गए हैं और उग्र रूप धारण कर गए हैं। राह चलते भारतीयों पर चाकू चला देना, उन्हें सुनसान जगहों में पाकर गोरों की टोलियों द्वारा पीटा जाना, उनके हाथ से लैपटोप, मोबाइल फोन आदि कीमती चीजें छीन लेना, उनके घरों में घुसकर लूटपाट करना, उनके वाहनों को जला डालना, यह सब चिंताजनक स्तर तक पहुंच गया है।

आस्ट्रेलियाई सरकार इन हमलों पर पर्दा डालने की भरसक कोशिश कर रही है और यह साबित करने पर तुली है कि ये नस्लवादी हमले नहीं हैं। पर सचाई उनके सामने और सारे विश्व के सामने मुंह बाए खड़ी है।

नस्लवाद की लंबी परंपरा

आस्ट्रेलिया में नस्लवाद की लंबी परंपरा है। आस्ट्रेलिया के श्वेत मूल के समुदाय के आदि पुरुष सब ब्रिटेन के बलात्कारी, हत्यारे, चोर-उचक्के, राजद्रोही आदि अपराधी थे। इन्हें सजा के रूप में आस्ट्रेलिया में उतार दिया जाता था। इनके आने से पहले आस्ट्रेलिया में स्थानीय निवासियों के लगभग 260 छोटे-बड़े राज्य थे। इन सबको इन अपराधी मानसिकता के लोगों ने नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। इस तरह आस्ट्रेलिया के निर्माता लोग मानव समुदाय के श्रेष्ठ जनों में से नहीं निकले थे, बल्कि मानव जाति की तलछट में से निकले गिरे हुए लोग थे। इसलिए यह देश उच्च आदर्शों का पोषक कभी नहीं रहा है, न ही कभी भी इस देश ने इसका दंभ भरा है। उसकी मंशा यही रही है कि वह ब्रिटेन, और अब अमरीका का कृपापात्र बना रहे, और इसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार रहता है।

आस्ट्रेलिया का कुल क्षेत्रफल 7,618,000 वर्ग किलोमीटर है, पर उसकी आबादी मात्र 2 करोड़ है। यानी वह बहुत ही कम बसा देशा है। इस देश में जितनी प्राकृतिक संपदा है उसके उचित उपयोग के लिए वहां लोगों की कमी है। इसलिए शुरू से ही आस्ट्रेलिया को बाहरी लोगों को अपने यहां आने को प्रोत्साहन देने की नीति अपनानी पड़ी है। पर नस्लवाद के चलते, शुरुआत में उसने केवल गोरों को वहां आने की अनुमति दी।

नस्लवादी नीति

यह नीति 1901 में आस्ट्रेलिया के प्रधान मंत्री एल्फ्रेड डीकिन (1856 – 1919) ने विकसित की थी। वे मानते थे कि चीनी और जापानी मूल के लोगों से श्वेत आस्ट्रेलिया को खतरा है। इसलिए नहीं कि उनमें कोई बुरी आदत थी, बल्कि इसलिए कि “वे महनती थे, सादा जीवन बिताते थे, बुद्धिमान थे, नई परिस्थितियों में बहुत जल्दी अपने आपको ढाल लेते थे, अत्यंत ऊर्जाशील थे, और उनमें काम करने का अदम्य उत्साह था।“

इसे पढ़कर आपको आश्चर्य हो रहा होगा, क्योंकि कोई भी देश इन गुणोंवाले लोगों को अपने यहां स्वागत करना चाहेगा। पर नस्लवाद की सोच और गणित और ही प्रकार के होते हैं। एल्फ्रेड डीकन नहीं चाहते थे कि गोरों के सिवा और कोई आस्ट्रेलिया में आए। इसकी व्यवस्था भी उन्होंने बड़े ही पक्के ढंग से की। उनकी प्रेरणा से आस्ट्रेलियाई संसद ने एक कानून पारित किया जिसके तहत यूरोपियों के सिवा अन्य लोगों के लिए आस्ट्रेलिया में आना अत्यंत कठिन हो गया।

गैर यूरोपियों के लिए दरवाजे बंद

गैर-यूरोपिय लोग आस्ट्रेलिया में न आ सकें इस हेतु आस्ट्रेलिया में आने के इच्छुक लोगों के लिए आवश्यक बना दिया गया कि वे किसी यूरोपीय भाषा में एक कठिन परीक्षा पास करें। उन दिनों जब विदेशी भाषाओं के पठन-पाठन के लिए अच्छी व्यवस्थाएं नहीं थीं, इस कानून का मतलब था, योरोपियों के सिवा और सभी के लिए आस्ट्रेलिया के द्वार बंद हो जाना।

यह आजकल कनाडा, अमरीका, ब्रिटन, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया आदि देशों की आप्रवास नीति की याद दिलाता है, जो भी अंग्रेजी की अच्छी जानकारी रखनेवालों को ही अपने देश में बसने की अनुमति देते हैं। यह भी एक प्रकार का नस्लवाद ही है, जिसका विरोध नहीं किया जा रहा है, हालांकि किया जाना चाहिए।

खैर, 1901 में आस्ट्रिलिया में इमिग्रेशन रेस्ट्रिक्शन एक्ट (आप्रवास परिसीमन अधिनियम) पारित किया गया। इस अधिनियम को आस्ट्रेलिया संसद में भारी बहुमत प्राप्त हुआ। लेकिन इससे पहले ही नस्लवादी नीतियां प्रचलन में आ गई थीं। उदाहरण के लिए चीनी मजदूरों से आवास कर के रूप में एक अतिरिक्त भारी कर लिया जाने लगा था, जिसे आजकल पाकिस्तान में तालिबान द्वारा सिक्खों से लिए जानेवाले जजिया के समान माना जा सकता है।

आगे पढ़िएः आस्ट्रेलियाः नस्लवाद आज भी कायम

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