अम्बेडकर पर फिल्म, पीछे की राजनीति
फिल्म के बनाते समय यह घोषणा की गयी थी कि फिल्म को भारत की तमाम प्रमुख भाषाओं में डब किया जायेगा और पूरे भारत में प्रदर्शित किया जायेगा लेकिन फिल्म को केवल महाराष्ट्र और गुजरात में प्रदर्शित किया गया और उसके बाद इस पर अघोषित प्रतिबन्ध लगा दिया गया क्योंकि फिल्म बनाने वालों ने फिल्म से जो उम्मीद की थी वह पूरी होती नहीं दिखी और इसलिए इस पर अघोषित पाबन्दी लगी।
फिल्म का कोई भी वीडियो कैसेट या सीडी या डीवीडी एनएफडीसी ने बाजार में जारी नहीं किया और यह सब कांग्रेस सरकार के इशारे पर किया गया। महाराष्ट्र की तत्कालीन सरकार ने बाबा साहेब अम्बेडकर के राइटिग्स और स्पीचेज का जो वाल्यूम प्रकाशित हो रहा था उसका भी प्रकाशन बन्द कर दिया ताकि बाबा साहेब के विचारों के प्रसार पर रोक लगायी जा सके।
कांग्रेस की राजनीति
बाबा साहेब अम्बेडकर के चरित्र हनन करने के कार्य में कांग्रेस बहुत ज्यादा सक्रिय थी। कांग्रेस ने बाबा साहेब अम्बेडकर को आजादी के पहले और बाद में भी अपना शत्रु माना क्योंकि कांग्रेस द्वारा लड़ी गयी लड़ाई आर्य-ब्राह्मणों की आजादी के लिए थी जबकि बाबा साहेब अम्बेडकर मूल निवासी बहुजनों की आजादी के आन्दोलन के नेता थे।
बाबा साहेब अम्बेडकर पर बनी फिल्म द्वारा कांग्रेस अपने दो उद्देश्य पूरा करना चाहती थी, पहला-बाबा साहेब अम्बेडकर आजादी के आन्दोलन में शामिल नहीं थे, और वे अंग्रेजों के हाथ की कठपुतली थे। कांग्रेस का दूसरा उद्देश्य यह था कि गॉधी जी ने आजादी के आन्दोलन के समय भी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग तथा धर्मान्तरित अल्पसंख्यकों के साथ जो षडयंत्र किये उसे छिपाकर गॉधी के प्रति इस देश में सहानुभूति निर्मित करना।
इन दोनों उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कांग्रेस ने योजनाबद्ध ढंग से पटकथा लिखने का काम पूना के ब्राह्मणों को दिया जिन्होंने रिसर्च के नाम पर जान-बूझकर झूठी और मनगढ़ंत कहानियॉ फिल्म में डाली। इस काम में फड़के और अरूण साधू ने काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
इससे पहले भी कांग्रेस ने अरूण शौरी के माध्यम से बाबा साहेब अम्बेडकर के चरित्र हनन का प्रयास किया था और इसके लिए मीरा कुमार का इस्तेमाल किया गया। बाबू जगजीवन राम की पत्नी मीरा कुमार उस वक्त कांग्रेस वर्किंग कमेटी की सदस्य थीं और उन्होंने अपनी मॉ इन्द्राणी देवी की वह डायरी जो अप्रकाशित थी को अरूण शौरी को दे दिया और इसी आधार पर अरूण शौरी ने अम्बेडकर के विरोध में ढेरों आरोप लगाये थे।
ब्रिटिश फिल्मकार को अनुमति नहीं
वास्तव में अम्बेडकर पर फिल्म बनाने का प्रस्ताव सबसे पहले कैनेथ ग्रीफित नाम के ब्रिटिश फिल्मकार ने भारत सरकार को दिया था इन्हीं कैनेथ ग्रीफित को पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गॉधी ने अपने पिता जवाहर लाल नेहरू पर डाक्यूमेंट्री बनाने का कार्य सौंपा था। ग्रीफित जब इस फिल्म को बनाने भारत आये और अपने काम के सिलसिले में पूरे देश में घूमते रहे तो उन्होंने जगह-जगह बाबा साहेब अम्बेडकर की मूर्तियां देखीं।
उन्होंने इस विषय में जानना चाहा तो उन्हें बताया गया कि ये बाबा साहेब अम्बेडकर की मूर्तियॉ हैं। ग्रीफित को दिलचस्पी हुई और जानकारी इकट्ठा करना शुरू किया और काफी मैटर इकट्ठा किया। तब उन्होंने भारत सरकार को बाबा साहेब अम्बेडकर पर फिल्म बनाने के लिए पत्र लिखा लेकिन भारत सरकार ने उन्हें इस कार्य के लिए वीजा और परिमीशन नहीं दिया।
तत्कालीन विदेश मंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने ग्रीफित से फिल्म के स्क्रीप्ट की पॉच कापियॉ मंगाई और उसे पढ़ने के बाद ग्रीफित को फिल्म बनाने की अनुमति देने से इंकार कर दिया। इसको लेकर जब विवाद खड़ा हुआ और सरकार के ऊपर दबाव बढ़ना शुरू हुआ तो 1991 में जो बाबा साहेब की जन्म शताब्दी थी। सरकार ने फिल्म बनाने की घोषणा की लेकिन यह कहा कि वह किसी भारतीय से ही यह फिल्म बनवायेंगे न कि ग्रीफित से। ऐसा करने के पीछे उद्देश्य यह था कि अपने तरीके से फिल्म में अम्बेडकर को दिखाया जायेगा।
इसी संदर्भ में एक और बात की जानकारी आपको देना चाहता हूं कि डा.एससी धावरे नाम के एक व्यक्ति मुम्बई में रहते हैं जो अम्बेडकर के अनुयायी हैं। उन्होंने डा.अम्बेडकर पर फिल्म बनाने की प्रक्रिया काफी पहले शुरू की थी लेकिन उन्हें भी इस काम से रोका गया। डा.धावरे ने अपनी फिल्म के निर्देशन का कार्य श्याम बेनेगल को दिया था।
बाद में श्याम बेनेगल ने फिल्म का निर्देशन करने से इंकार कर दिया और इसके जवाब में यह कहा कि मुझे कई राज्यों में जाकर फिल्म बनानी होगी और इसके लिए सरकार से अनुमति लेनी पड़ती हैं अगर मैं आपकी फिल्म का निर्देशन करूंगा तो उन राज्यों में जहॉ कांग्रेस की सरकारें है वहां मुझे फिल्म बनाने में दिक्कत होगी। यह बात डा.धावरे ने उल्लिखित की है।
जब्बार पटेल, जिन्हें फिल्म बनाने की जिम्मेदारी दी गयी। उनका सम्बन्ध पहले 'राष्ट्र सेवादल" से रहा है जो समाजवादी ब्राह्मणों का संगठन था। इस तरह से स्पष्ट है कि कांग्रेस ने जान-बूझकर ऐसे लोगों को फिल्म बनाने के लिए संसाधन उपलब्ध कराये जो अम्बेडकर के सचेत या अचेत तौर पर विरोधी थे।