क्या भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध होगा, जानिए क्या कहते हैं सितारे?
नई दिल्ली। पुलवामा अटैक के बाद भारत ने पाकिस्तान के घर में घुसकर आतंकवादियों के कैंपो पर आसमान से गोले बरसाये। दोनों देशों के बीच तनाव इस कदर हो गया है कि युद्ध जैसे हालात नजर आने लगे हैं। आइये ज्योतिषीय विशलेषण के आधार पर जानते है कि क्या भारत-पाकिस्तान का आपसी टकराव युद्ध का रूप लेगा या फिर कुछ दिनों के बाद ये तना-तनी सामान्य हो जायेगी। वर्ष 2018 में दो चन्द्र ग्रहण और तीन सूर्य होंगे। कुल पाॅच ग्रहण पड़े थे। साल 2019 में भूमण्डल पर सूर्य और चन्द्रमा होंगे। इनमें दो सूर्य ग्रहण तथा एक खण्डग्रास चन्द्र ग्रहण होगा। उक्त ग्रहणों में से केवल दो ग्रहण ही भारत में दृश्य होंगे। 2 जुलाई सन् 2019 को खग्रास सूर्य ग्रहण पड़ेगा, जो भारत में दिखाई नहीं देगा। 16 जुलाई सन् 2019 को पड़ने वाला खग्रास चन्द्र ग्रहण भारत में दिखाई देगा एवं 26 दिसम्बर को पड़ने वाला कंकण सूर्य ग्रहण भारत में सर्वत्र दिखाई देगा।
एक वर्ष में 2 से अधिक सूर्य ग्रहण अशुभ
भूमण्डलीय फलादेश में सूर्य व चन्द्र ग्रहण की अहम भूमिका होती है। एक वर्ष में होने वाले ग्रहणों की संख्या जब-जब बढती है तब-तब अनिष्ट प्रभाव प्रकट होते है। एक वर्ष में धरती पर सूर्य ग्रहण अधिकतम पॉच और न्यूनतम 2 होते है। एक वर्ष में 2 से अधिक सूर्य ग्रहण होना अशुभ संकेत होता है। पूर्ण सूर्य ग्रहण जल्दी नहीं होता है। किसी स्थान पर यह घटना शताब्दियों में एक बार होती है। एक चक्र में भूमण्डल पर सब प्रकारों को मिलाकर 41-42 सूर्य ग्रहण होते है। हेली एडमंड की गणना के अनुसार 20 मार्च 1140 ई0 से 22 अप्रैल 1715 ई0 तक लन्दन में कोई भी पूर्ण सूर्य ग्रहण नहीं हुआ था। सामन्यतः ग्रहणों में 177 दिनों का अन्तर होता है यानि एक ग्रहण से दूसरे ग्रहण के बीच कम से कम 177 दिनों का फासला होता है। इस सामान्य सीमा का उलघंन जब-जब होता है तब-तब संसार में भयावह घटनायें परिलक्षित होती है। एक वर्ष में 3-4 सूर्य ग्रहण हो तो यह स्थिति अनिष्टकारी प्रतीत होती है। ऐसे वर्षोs में विशेषतया जिन देशों में ये ग्रहण दिखाई देते है, वहॉ विशेष उथल-पुथल होती है। इन परिवर्तनों का अनुषंगिक प्रभाव 10 वर्षो तक भी अनुभव में आता है।
क्या हुआ जब पड़े थे 6 सूर्य ग्रहण-
सनद रहे कि सन् 1953-54 में कुल मिलाकर 6 सूर्य ग्रहण पड़े थे। इन 10 वर्षो में भारतीय उपमहाद्वीप में तिब्बत का हाथ से निकलना, चीन का आक्रमण, पंचशील के सिद्धान्तों का खुला मखौल, जवाहर लाल नेहरू का निधन, अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी की हत्या, सन् 1965 में पाकिस्तानी आक्रमण, देशव्यापी खाद्यान्न संकट, ताशकंद समझौता, समझौते के दौरान लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु आदि घटनाओं ने पूरे उपमहाद्वीप का उद्वेलित कर दिया था।
तीन सूर्य ग्रहण सन् 1971 व 1973 में पुनः तीन सूर्य ग्रहण पड़े थे। इस दौरान पुनः पाकिस्तान से युद्ध व बांग्लादेश का उदय हुआ था। सन् 1982, 1992, 2000 ई0 में क्रमशः चार, तीन व चार सूर्य ग्रहण पड़े थे। यह समय खण्ड अपने भीतर पंजाब का आतंकवादी खालिस्तानी आन्दोलन, दो-दो प्रधान मन्त्रियों की हत्या, आपरेशन ब्लू स्टार, सत्ता परिवर्तन, मण्डल आन्दोलन व कारगिल युद्ध समेटे हुये है।
अभी नहीं है युद्ध के आसार
पन्द्रह दिन के अन्दर दो ग्रहणों का होना भी अशुभ होता है। सन् 2016 में 9 मार्च को पूर्ण सूर्य ग्रहण दृश्य हुआ और पन्द्रह दिन के अन्दर 23 मार्च को आशिंक चन्द्र ग्रहण पड़ा। सन् 2016 को ही 1 सितम्बर को पुनः सूर्य ग्रहण पड़ा और तत्पश्चात 16 सितम्बर को चन्द्र ग्रहण हुआ। इस खगोलीय घटना के कारण ही उरी पर आतंकवादी अटैक से 17-18 जवानों की मौत हुयी और उसके बदले भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक करके लगभग 50 आतंकवादियों को मौत के घाट उतार दिया।
एक नजर अतीत के युद्ध में ग्रह गोचर स्थिति-
26 मार्च सन् 1971 को भारत-पाकिस्तान के बीच भीषण युद्ध प्रारम्भ हुआ था। उस समय की ग्रह गोचर स्थिति पर एक नजर डालते है। शनि नीच होकर मेष राशि में था, मंगल धनु राशि में था, राहु मकर में व केतु कर्क राशि में था, गुरू वक्री होकर वृश्चिक में था। दरअसल किसी भी बड़े युद्ध में शनि, मंगल व राहु की विशेष भूमिका होती है। स्वतन्त्र भारत की वृष लग्न है। उस समय गोचर में शनि भारत की कुण्डली में 12वें भाव में नीच का होकर भ्रमण कर रहा था, मंगल अष्टम भाव में धनु राशि में भ्रमण कर रहा था। अष्टम भाव व मंगल दोनों ही युद्ध के कारक होते है। राहु भी उस वक्त शनि की राशि मकर में होकर नवें भाव में था। राहु की सप्तम दृष्टि तृतीय भाव पर पड़ रही थी। तृतीय भाव भी पराक्रम-साहस व युद्ध का कारक माना जाता है। इन सभी ग्रहों की स्थिति के कारण सन् 1971 में युद्ध हुआ था। राहु धर्म भाव में शनि की राशि में था और तृतीय भाव को पूर्ण दृष्टि से देख रहा था। शनि न्याय का कारक होता है, इसीलिए इस युद्ध में धर्म की अधर्म पर विजय हुई।
कारगिल युद्ध-
कारगिल युद्ध मई सन् 1999 से 26 जुलाई सन् 1999 तक चला। उस समय आकाशीय ग्रहों की स्थिति कुछ इस प्रकार थी। शनि नीच राशि का होकर युद्ध प्रिय मंगल की राशि मेष में था, मंगल तुला राशि में वक्री होकर बैठा था, राहु कर्क में व केतु मकर राशि में था।
तुलनात्मक विशलेषण-
सन् 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध व कारगिल युद्ध। दोनों युद्धों में शनि गोचर में नीच का था, मंगल एक युद्ध में भारत की कुण्डली में अष्टम भाव में था और दूसरे युद्ध में छठें भाव में था। ये दोनों भाव युद्ध होने में अहम भूमिका निभाते है। सन् 1971 के युद्ध में राहु मकर में था, केतु कर्क में और कारगिल युद्ध में राहु कर्क में था, केतु मकर में यानि विपरीत स्थिति थी। अब सवाल यह उठता है कि क्या सन् 2019 में भारत-पाकस्तिान युद्ध होगा या नहीं ? सबसे पहले आपको इस समय की ग्रह गोचर स्थिति से अवगत कराता हूं। शनि धनु राशि में, मंगल मेष राशि, राहु कर्क में केतु मकर राशि में स्थिति है।
इसलिए नहीं होगा भारत-पाक का युद्ध
किसी बड़े व भीषण युद्ध में शनि ग्रह की अहम भूमिका होती है, क्योंकि शनि अपना कार्यकाल पूरा करने में 30 वर्ष लगाता है। इस वक्त शनि गुरू की राशि में है। गुरू एक अध्यात्मिक ग्रह है, जो शनि को बड़े युद्ध करने से रोकेगा। मंगल अक्रामक ग्रह है व इस समय अपनी मूलत्रिकोण राशि में बलवान होकर गोचर कर रहा है। राहु व केतु की गोचर स्थ्तिि कारगिल युद्ध के समय जैसी ही है। किन्तु शनि व मंगल ग्रह की स्थिति उस प्रकार से नहीं है, इसलिए युद्ध नहीं होगा।
निष्कर्ष- अतः निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि दिसम्बर 2019 तक भारत-पाकिस्तान के मध्य तनाव जैसी स्थिति बनी रहेगी किन्तु युद्ध नहीं होगा। 20 मार्च तक मंगल मेष राशि में रहेगा तब-तक दोनों देश एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए अपने तरीके से प्रयास करते रहेंगे। किन्तु 8 मार्च सन् 2019 को राहु भी कर्क राशि से निकलकर मिथुन में आ जायेगा, उसके बाद भारत-पाकिस्तान के बीच शान्ति बहाल के लिए बातचीत होगी।