सफल वैवाहिक जीवन यानी जमीं पर जन्नत के लिए जरूर करें ये उपाय
अधिकांश समाज जैसे ब्राह्मण, वैश्य आदि में नाड़ी दोष भी प्रमुखता से देखा जाता है। नाड़ी तीन प्रकार की होती है।
नई दिल्ली। विवाह मात्र लड़के-लड़कियों का बंधन नहीं होता है, लेकिन यह दो परिवारों, दो परंपराओं का भी गठबंधन होता है। जब दो समान या मिलती-जुलती विचारधाराओं वाले लड़के-लड़की या परिवार विवाह के माध्यम से आपस में जुड़ते हैं तो दोनों ओर खुशियां, समृद्धि आती है, लेकिन जब ऐसा नहीं हो पाता तो दोनों ही परिवार परेशानियों और कलहपूर्ण स्थितियों से जीवनभर जूझते रहते हैं। इसीलिए विवाह पूर्व लड़के-लड़की की कुंडली का मिलान किया जाता है, ताकि भविष्य में आने वाली परेशानियों से बचा जा सके।
कुंडली मिलान केवल परंपरा नहीं
विवाह के पूर्व कुंडली मिलान केवल परंपरा नहीं है। यह भावी दंपती के स्वभाव, गुण, प्रेम और आचार-व्यवहार के संबंध में जानकारी हासिल करने का एक जरिया है। भारतीय परंपरा में प्रेम विवाह को अभी भी सर्वमान्य नहीं किया गया है। अधिकांश विवाह दो अनजान युवक-युवतियों में कर दिया जाता है। इस लिहाज से कुंडली मिलान और भी आवश्यक हो जाता है। अब तो पाश्चात्य देशों के वैज्ञानिकों ने भी विवाह से पूर्व युवक-युवती के विभिन्न बिंदुओं पर मेडिकल जांच को आवश्यक माना है। मेडिकल जांच भी कहीं न कहीं कुंडली मिलान का ही दूसरा रूप है। ज्योतिष शास्त्र में ग्रह, नक्षत्र, योग, नाड़ी, गण आदि के माध्यम से युवक और युवती के स्वभाव, रोग आदि के बारे में बताया जा सकता है। कुंडली मिलान का यही उद्देश्य है कि दोनों के स्वभाव का मिलान किया जा सके। ज्योतिष शास्त्र में ऐसे अनेक योगों का वर्णन मिलता है जो स्त्रीनाशक या पुरुषनाशक होते हैं।
पति या पत्नीनाशक योग
विवाह के लिए जब युवक और युवती की कुंडली का मिलान किया जाता है तो सबसे पहले जो मंगल दोष का विचार किया जाता है। जन्म कुंडली में 1, 4, 7, 8 और 12वें भाव में पाप ग्रह होने से पति या पत्नीनाशक योग बनता है। इन स्थानों मंगल होने से वह कुंडली मांगलिक होती है।
पांच स्थानों में मंगल होना चाहिए
विवाह के लिए जिन युवक-युवतियों की कुंडली मिलाई जाती है, उन दोनों की कुंडलियों के इन्हीं पांच स्थानों में मंगल होना चाहिए, तभी उनमें विवाह संभव हो सकता है, अन्यथा नहीं। इन स्थानों में स्थित मंगल सबसे अधिक दोषकारक, उससे कम शनि और शनि से कम अन्य पापग्रस्त होते हैं। इसके साथ ही मंगल के नीच, बली, अल्प प्रभावी, पूर्ण प्रभावी आदि का भी विचार कर लेना चाहिए।
शनि और मंगल इन दोनों ग्रह का होना अनिष्टकारी माना गया
स्त्री की कुंडली में सप्तम और अष्टम स्थान में शनि और मंगल इन दोनों ग्रह का होना अनिष्टकारी माना गया है। यदि यह ग्रह स्थिति दोनों की कुंडली में हो तो अच्छा माना जाता है। दोनों की कुंडली में 1, 4, 7, 8, 12वें स्थान में पाप ग्रहों की संख्या समान होना चाहिए या लड़की से लड़के के ग्रहों की संख्या अधिक होना चाहिए।
कुछ अन्य योग भी होते हैं
इनके अलावा कुछ अन्य योग भी होते हैं जिनसे युवक-युवती की कुंडली का मिलान किया जाता है-
1.
युवक
के
सप्तम
स्थान
का
स्वामी
जिस
राशि
में
हो,
वही
राशि
युवती
की
हो
तो
दांपत्य
जीवन
सुखमय
होता
है।
2.
युवती
की
राशि
युवक
के
सप्तमेश
का
उच्च
स्थान
हो
तो
दांपत्य
जीवन
में
प्रेम
बढ़ता
जाता
है।
उत्तम
संतान
सुख
मिलता
है।
3.
युवक
का
शुक्र
जिस
राशि
में
हो,
वही
राशि
युवती
की
हो
तो
कल्याणकारी
विवाह
का
योग
बनता
है।
4.
युवक
का
लग्नेश
जिस
राशि
में
हो
वही
राशि
युवती
की
हो
तो
विवाह
के
बाद
दोनों
खूब
तरक्की
करते
हैं।
5.
जिन
युवतियों
की
जन्म
राशि
वृषभ,
सिंह,
कन्या
या
वृश्चिक
होती
है,
उन्हें
कम
संतान
होती
है।
6.
युवक
की
कुंडली
के
छठे
और
आठवें
स्थान
की
राशि
युवती
की
जन्मराशि
हो
तो
दंपती
में
हमेशा
कलह
बना
रहता
है।
गुण मिलान
जिन युवक-युवतियों की जन्म कुंडली उपलब्ध न हो उनके विवाह का विचार गुण मिलाकर किया जाता है। युवक-युवती के नाम के प्रथम अक्षर से जो राशि और नक्षत्र बनता है उसके अनुसार गुण मिलाए जाते हैं। गुण मिलान सारण सभी पंचांगों में होती है। इनमें मुख्य रूप से वर्ण, वश्य, तारा, योनि, ग्रह मैत्री, गणमैत्री, भकूट और नाड़ी का मिलान यिका जाता है। इनमें से प्रत्येक के लिए अंक निर्धारित है, जो प्रत्येक का उसके अगले वाले से एक अंक अधिक होता है। जैसे वर्ण का 1, वश्य का 2, तारा का 3, योनि का 4, ग्रहमैत्री का 5, गणमैत्री का 6, भकूट का 7 और नाड़ी का 8 अंक होता हे। इन सभी का जोड़ 36 होता है। 36 गुणों में से विवाह के लिए कम से कम आधे यानी 18 गुण मिलना आवश्यक होता है। 18 से कम गुण मिलान होने पर विवाह न करने की सलाह दी जाती है।
नाड़ी दोष
अधिकांश समाज जैसे ब्राह्मण, वैश्य आदि में नाड़ी दोष भी प्रमुखता से देखा जाता है। नाड़ी तीन प्रकार की होती है। आद्य, मध्य और अन्त्य। यदि युवक और युवती की नाड़ी एक समान आए तो विवाह नहीं किया जाता है। दोनों की नाड़ी अलग-अलग होना चाहिए। मेडिकल साइंस में भी अब तो यह माना जाता है कि भावी दंपती का ब्लड गु्रप समान नहीं होना चाहिए। शास्त्रों में कहा गया है यदि दोनों की नाड़ी समान आए तो संतान उत्पन्न करने में परेशानी आती है और दोनों में से कोई एक रक्त संबंधी परेशानियों से जूझता रहता है। यही मत मेडिकल साइंस का भी है।
सौभाग्य विचार
कुंडली मिलान के समय भावी दंपती का सौभाग्य भी देखा जाता है। यदि सप्तम में शुभग्रह हों तथा सप्तमेश शुभग्रहों से युत या दृष्ट हो तो सौभाग्य अच्छा होता है। अष्टम स्थान में शनि या मंगल का होना सौभाग्य को बिगाड़ता है। अष्टम� स्वयं पानी हो या पानी ग्रहों की दृष्टि हो तो सौभाग्य ठीक नहीं रहता। सौभाग्य विचार दोनों की कुंडली में करना चाहिए।