Diwali 2018: दीपावली में क्यों की जाती है मां लक्ष्मी की पूजा?
लखनऊ। भौतिक समाज में रहने वाले हर व्यक्ति को धन की आवश्यकता पड़ती है। संसाधनों के बगैर जीवन को सही ढंग से जीया नहीं जा सकता चॅूकि संसाधनों को बिना धन के खरीदा नहीं जा सकता। इसलिए दीपो के पर्व दीपावली पर देवी लक्ष्मी का विशेष पूजन व अर्चन करने का विधान है। शायद आपके मन में भी कुछ ऐसे सवाल कौधंते हो। क्या श्रीराम के आयोध्या आने से पहले भी मनाई जाती थी दीपावली ? क्यों की जाती है दीपावली में मां लक्ष्मी की आराधना ? दीपवाली में मिट्टी के दीपक ही क्यों जलाने चाहिए ?
चलिए जानते है इन सब सवालों के जवाब...
दीपावली का पर्व रामावतार से पहले भी मनाया जाता है
ऐसी मान्यता है कि दीवाली का पर्व उस समय से प्रारम्भ हुआ है जब लंका फतह करने के बाद श्रीराम आयोध्या लौटे तब अयोध्या वासियों ने दीप जलाकर श्रीराम का भव्य स्वागत किया, पर यह सच नहीं है। क्योंकि दीपावली का पर्व रामावतार से पहले भी मनाया जाता है। दीपावली में मां लक्ष्मी को निद्रा से जगाने के लिए उनका पूजन व अर्चन किया जाता है।
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कार्तिक शुक्ल एकादशी
चॅूकि क्षीर सागर में पालनकर्ता भगवान विष्णु प्रत्येक वर्ष अषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन चार महीने के लिए निद्रालीन हो जाते है और फिर कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते है। भगवान विष्णु के सो जाने पर मां लक्ष्मी भी ब्रह्यणों से अभय प्राप्त करके कमल पुष्प में रहने लगती है। जैसे भौतिक जगत में घर की लक्ष्मी तुल्य ग्रहणियां ब्रम्हकाल में अपने पति से पहले सोकर उठती है वैसे ही माॅ लक्ष्मी भी भगवान विष्णु से 12 दिन पहले कार्तिक कृष्ण अमावस्या यानि दीपावली को जागकर लोक कल्याण हित में लग जाती है।
मिट्टी के दीए ही क्यों?
दीपावली के पर्व में दीपक की महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं। मिट्टी के दीपकों का महत्व इसलिए अधिक होता है क्योंकि इसमें पांचों तत्व पाये जाते है। मिट्टी में- आकाश, जल, अग्नि, वायु व पृथ्वी तत्व निहित होते है। हिन्दू त्यौहारों में 5 तत्वों की उपस्थित अपरिहार्य मानी गई है। पारम्परिक दीपकों की रोशनी पर चाइनीज झालरें, मोमबत्तियों आदि ने कब्जा कर रखा है, जिसके कारण कुम्भकार का पारम्परिक व्यवसाय धरातल में चला गया है। अतः आप सभी आर्टीफीशियल रोशनी का प्रयोग न करके मिट्टी के दीयों प्रयोग करें।
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