गंगासागर मेला 14 जनवरी से, जानिए इससे जुड़ी खास बातें
नई दिल्ली। हिंदू संस्कृति में सामाजिक एकता और मेलजोल को बढ़ावा देने के लिए सांस्कृतिक और धार्मिक मेलों का बड़ा महत्व है। ये मेले न केवल सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं, बल्कि इनका धार्मिक जुड़ाव भी होता है, जिस कारण इन मेलों में लाखों श्रद्धालु जुटते हैं। ऐसा ही एक अत्यंत पवित्र और आस्था का मेला है गंगासागर मेला। प्रत्येक वर्ष माघ मास में सूर्य के उत्तरायण होने के दिन गंगासागर मेला आयोजित किया जाता है। पृथ्वी पर लगने वाले सबसे बड़े मेलों कुंभ के बाद यह दूसरा सबसे बड़ा मेला होता है। गंगासागर मेला मकर संक्रांति से शुरू होकर पांच दिन चलता है, जिसमें स्नान-दान प्रथम तीन दिन किए जाते हैं। इस बार मेला 14 जनवरी 2020 से शुरू होगा, लेकिन मकर संक्रांति का पुण्य काल 15 जनवरी को होने के कारण स्नान-दान आदि का महत्व 15 को अधिक रहेगा।
पश्चिम बंगाल
गंगा नदी हिंदू आस्था का प्रमुख केंद्र है। गंगोत्री से निकलकर गंगा जिस स्थान पर समुद्र में मिलती है, उस स्थान को गंगासागर कहा जाता है। यह स्थान पश्चिम बंगाल के चौबीस परगना जिले में स्थित है। इसी स्थान पर भगवान राम के पूर्व और इक्षवाकु वंश के राजा सगर के 60 हजार पुत्रों का उद्धार हुआ था। शास्त्रों में कहा गया है कि मकर संक्रांति के दिन गंगासागर में स्नान और दान का जो महत्व है वह कहीं अन्यत्र नहीं है। इसलिए कहा जाता है सारे तीरथ बार-बार गंगा सागर एक बार। कहने का तात्पर्य यह है कि सभी तीर्थों में कई बार यात्रा का जो पुण्य होता है वह मात्र एक बार गंगासागर में स्नान और दान करने से प्राप्त हो जाता है। गंगासागर में एक डुबकी लगाने से 10 अश्वमेघ यज्ञ एवं एक हजार गाय दान करने का पुण्य मिलता है।
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मकर संक्रांति पर मेला क्यों?
प्रतिवर्ष मकर संक्रांति पर गंगासागर में भव्य मेला आयोजित किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति ही वह दिन है, जब भगवान शिव की जटा से निकलकर गंगा की धारा ने पहली बार धरती का स्पर्श किया था और कपिल मुनि के आश्रम में पहुंची थी। यहां गंगा कपिल मुनि के श्राप के कारण मृत्यु को प्राप्त राजा सगर के 60 हजार पुत्रों को सद्गति प्रदान करके सागर मिल गई। इसलिए इस स्थान को गंगा और सागर का संगम स्थल कहा जाता है। जहां प्राचीन काल में कपिल मुनि का आश्रम था उस स्थान पर कपिल मुनि का एक मंदिर भी है। यहां की जमीन का एक बड़ा हिस्सा ऐसा भी है जो चार साल में केवल एक बार ही नजर आता है, अन्य दिनों में यह सागर के पानी में डूबा रहता है।
सागर को भेंट करते हैं नारियल
गंगासागर मेले में आए श्रद्धालु परंपरा का निर्वाह करते हुए समुद्र देवता को नारियल और यज्ञोपवित भेंट करते हैं। इस समुद्र में पूजन एवं पिंडदान कर पितरों के निर्मित जल तर्पण करने का भी बड़ा महत्व है। इससे पितरों का उद्धार होता है और जो अतृप्त पितर भटकते रहते हैं वे बैकुंठधाम को चले जाते हैं। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार इस दिन गंगासागर में जो युवतियां-युवक स्नान करते हैं उन्हें अपनी इच्छानुसार वर तथा वधु प्राप्त होती है। गंगासागर पूजन के बाद कपिल मुनि के आश्रम में दर्शन किए जाते हैं। मोक्ष की प्राप्ति के लिए गंगासागर में स्नान जरूर किया जाना चाहिए।
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