
जब कोई कार्य करना आवश्यक हो किंतु अशुभ योग हों तो क्या करें
नई दिल्ली , 13 जून। जीवन में कई बार ऐसे परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है जब कोई शुभ कार्य करना अत्यंत आवश्यक हो जाता है किंतु उस समय काल में कोई न कोई अशुभ योग, अशुभ ग्रह, अशुभ वार, अशुभ नक्षत्र, अशुभ तिथि पड़ जाती है। अब कार्य तो करना ही है तो ऐसे में इन अशुभ योगों का निवारण कैसे किया जाए ताकिहमारे शुभ कार्य में कोई बाधा न आए या शुभ कार्य में असफलता न मिले।

ऐसे संकट के समय ज्योतिष विज्ञान काम आता है। ज्योतिष शास्त्र में अशुभ काल को शुभ बनाने के लिए अनेक सिद्ध उपाय बताए गए हैं। जिन्हें अपनाकर अशुभ योगों को भी शुभ बनाया जा सकता है।
मुहूर्त चिंतामणि में कहा गया है-
- दुष्टे योगे हेम चंद्रे च शंखं धान्यं तिथ्यद्र्धे तिथौ तण्डुलांश्च ।
- वारे रत्नं भे च गां हेम नाड्यां दद्यात्सिन्धूत्थं च तारासु राजा ।।
इस सूत्र के अनुसार- किसी आवश्यक कार्य को करने के समय कोई दुष्ट योग हो तो सुवर्ण का दान करना चाहिए। दुष्ट चंद्रमा हो तो शंख, दुष्ट करण जैसे भद्रा हो तो धान्य अर्थात् अन्न का दान करने से अशुभ प्रभाव दूर होता है। इसी प्रकार दुष्ट तिथि चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी, अमावस्या हो तो चावल का दान, दुष्ट वार मंगल, शनिवार, रविवार हो तो रत्नों का दान करना उचित रहता है। इसी प्रकार दुष्ट नक्षत्र हो तो गाय, विवाह में दुष्ट नाड़ी अर्थात् वर-वधू की एक ही नाड़ी हो तो सुवर्ण का दान करने से दुष्प्रभाव दूर होता है। दुष्ट तारा विपत, प्रत्यरि, बध हो तो नमक का दान आवश्यक रूप से करना चाहिए।
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इस प्रकार संबंधित अशुभ तत्व से जुड़ी वस्तु का दान करने के बाद ही कार्य में प्रवृत्त होना चाहिए।