Saturn Retrograde: शनि की वक्र दृष्टि से बचाएंगे ये विशेष उपाय
नई दिल्ली। 11 मई से 142 दिनों के लिए मकर राशि में शनि वक्री हुए हैं। अपनी ही राशि में वक्री होने से शनिदेव का विपरीत प्रभाव सभी राशि के जातकों के साथ प्रकृति, पर्यावरण और वायुमंडल पर पड़ने वाला है और पड़ रहा है। जिन लोगों को शनि की साढ़ेसाती चल रही है, शनि का लघुकल्याणी ढैया चल रहा है या जिनकी जन्म कुंडली में शनि बुरे प्रभाव दे रहा है, उन्हें इन 142 दिनों के समय में अत्यंत संभलकर चलने की जरूरत है। शनि की पीड़ा का सामना सभी लोगों को करना पड़ेगा लेकिन यदि शनि की विशेष पूजा, जाप आदि करेंगे तो संकटों से काफी हद तक राहत रहेगी। आइए जानते हैं शनि की शांति के लिए क्या-क्या उपाय प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिए।
शनि स्तवराज का नियमित पाठ
शनिदेव की शांति का सबसे अचूक उपाय है शनि स्तवराज का पाठ। भविष्य पुराण में शनैश्चर स्तवराज स्तोत्र का उल्लेख मिलता है। इसके प्रभाव के बारे में कहा गया है कि जो व्यक्ति इस स्तोत्र का नियमित पाठ करता है शनिदेव उससे सदा प्रसन्न् रहते हैं। वह व्यक्ति हर प्रकार की समस्या और दुर्लभ से दुर्लभ रोगों से भी मुक्त हो जाता है। यदि कोई व्यक्ति असाध्य रोग से पीड़ित है उसके लिए यह स्तोत्र रामबाण सिद्ध होता है। इसके लिए पीड़ित व्यक्ति को प्रतिदिन पाठ करना चाहिए। यदि पीड़ित व्यक्ति पाठ करने में असमर्थ है तो वह किसी परिजन जिन्हें संस्कृत का स्पष्ट और शुद्ध उच्चारण आता हो या किसी विद्वान से इसका पाठ करवाकर सुन भी सकता है। इस स्तोत्र के 1100 पाठ 21 दिन में पूर्ण करना होते हैं। उसके बाद नियमित कम से कम एक पाठ करने से आजीवन व्याधियों से मुक्त रहता है। कहा जाता है शनैश्चर स्तवराज का पाठ दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से मुक्ति देता है। शनि स्तवराज स्तोत्र का पाठ उन सभी लोगों को करना चाहिए जिन पर शनि का प्रकोप चल रहा हो। इसके अलावा जिन लोगों की जन्मकुंडली में शनि की महादशा अथवा अंतर्दशा चल रही है, उन्हें भी इसका पाठ करना चाहिए।
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हनुमान साधना
शनि की पीड़ा से मुक्ति हनुमत आराधना भी देती है। प्रतिदिन हनुमान चालीसा के 11 पाठ या हनुमान बाहुअष्टक के 8 पाठ करें। हनुमानजी को हलवे का भोग लगाएं। हलवा उपलब्ध ना हो सके तो गुड़ और चने का भोग अवश्य लगाएं। पाठ करते समय निरंतर दीपक और सुगंधित धूप प्रज्जवलित होती रहे। शनि के इस वक्रत्व काल में यानी 142 दिन नियमित यह क्रम अपनाएं।
शिव साधना
शनि की पीड़ा से शिव की साधना भी रक्षा करती है। भगवान शिव को अमरत्व का देवता कहा गया है। शिव की आराधना करने से समस्त रोगों से मुक्ति मिलती है। शनि सहित सभी ग्रहों की शांति होती है। शनि की पीड़ा शांत करने के लिए भगवान शिव को नियमित रूप से कच्चे दूध में काले तिल डालकर अभिषेक करें। अभिषेक करते समय 108 बार महामृत्युंजय मंत्र का उच्चारण करें।
- इन बातों का विशेष ध्यान रखें
- शनि को ग्रहों में न्यायाधीश का दर्जा प्राप्त है। यानी वे व्यक्ति को उसके कर्मों के हिसाब से अच्छा-बुरा फल देते हैं। शनि के वक्रत्व काल में प्रत्येक व्यक्ति को व्यसनों, बुरी आदतों, परनिंदा, दूसरों की बुराई, चोरी, परस्त्री या परपुरुष गमन, मांस-मदिरा के सेवन से बचना है।
- शनि के वक्रत्व काल में बुजुर्गों का विशेष सम्मान करें। उनकी सेवा करें, उनका ध्यान रखें। उनकी जरूरत पूरी करें। क्योंकि शनि वृद्धों की सेवा से प्रसन्न् होते हैं।
- अपंग, दिव्यांग, दृष्टिहीन, रोगी को जरूरत की वस्तुएं उपलब्ध करवाएं।
- शनि को प्रसन्न् करने के लिए गरीबों का मुफ्त उपचार करवाएं। उनकी दवाई की व्यवस्था करें।
- काले कौवे, काले कुत्ते, काले घोड़े की सेवा करें। इनके भोजन-पानी का प्रबंध करें।
- पीपल के पेड़ में नियमित रूप से सुबह के समय कच्चे दूध में शुद्ध जल और मिश्री डालकर अर्पित करें।
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