वास्तु के अनुसार पांच प्रकार के होते हैं घर, जानिए उनका अर्थ
नई दिल्ली।आपने अक्सर देखा होगा कि किसी घर में रहने वाले लोग अत्यंत सुखी रहते हैं और किसी घर में रहने वाले लोग हमेशा परेशान रहते हैं। जानते हैं ऐसा क्यों होता है? इसका जवाब वास्तु शास्त्र में मिल जाएगा। दरअसल वास्तु शास्त्र के अनुसार घरों की पांच प्रकृतियां होती हैं। जिस तरह प्रकृति का संतुलन पांच तत्व पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश तत्व मिलकर करते हैं। ठीक उसी प्रकार वास्तु के सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक घर का वातावरण भी पांच तत्वों की प्रकृति के अनुसार तय होता है। जब किसी घर में पांचों तत्वों का संतुलन रहता है तो उसमें निवास करने वाले लोग अत्यंत सुखी होते हैं। लेकिन यदि इनमें से किसी एक तत्व की अधिकता होती है तो घर की प्रकृति उसी तत्व के अनुसार हो जाती है। उदाहरण के तौर पर यदि किसी घर में अग्नि तत्व की प्रधानता है तो उस घर में रहने वाले लोग अत्यंत क्रोधी किस्म के होंगे। ऐसे लोग हमेशा आपस में और बाहरी लोगों से लड़ाई झगड़े करते रहते हैं।
आइए जानते हैं पांच प्रकार के घरों का क्या अर्थ होता है...
पंच तत्वों में पृथ्वी तत्व को मूल तत्व कहा गया है
- पृथ्वी तत्व : पंच तत्वों में पृथ्वी तत्व को मूल तत्व कहा गया है। इसे सभी तत्वों का आधार माना गया है क्योंकि सब कुछ पृथ्वी पर ही टिका हुआ है। वास्तु शास्त्र के सिद्धांत के अनुसार जिस घर में पृथ्वी तत्व की प्रधानता होती है उस घर में रहने वाले लोग अत्यंत डाउन टू अर्थ होते हैं। यानी वे जमीन से जुड़े लोग होते हैं। उनके स्वभाव में एक तरह का स्थायित्व होता है और वे सभी को साथ लेकर चलने वाले होते हैं। पृथ्वी तत्व की प्रधानता वाले घर में निवास करने वाले लोग सदैव दूसरों की सहायता करने को तत्पर रहते हैं। इन्हें किसी प्रकार का दंभ नहीं होता। आर्थिक रूप से भी ये संतुष्ट प्रकृति के होते हैं भले ही इनके पास पैसा कम मात्रा में हो, लेकिन ये उसी में संतुष्ट रहते हैं।
- अग्नि तत्व : जिस घर में अग्नि तत्व की प्रधानता होती है वहां रहने वाले लोग क्रोधी स्वभाव के होते हैं। जरा-जरा सी बातों में ये अपनों से ही झगड़ते रहते हैं। ऐसे घर में रहने वाले पुरुषों में अलगाव की प्रकृति होती है। घर का पुत्र शीघ्र ही परिवार से अलग हो जाता है। ऐसे लोग अपने आसपास रहने वाले लोगों से भी छोटी-छोटी बातों पर झगड़ते रहते हैं। इनके बीच में पारिवारिक और संपत्ति संबंधी विवाद भी अधिक मात्रा में होते हैं। अग्नि तत्व की प्रधानता वाले घर में रहने वाले लोग रक्त संबंधी परेशानियों से जूझते रहते हैं। स्त्रियों को रक्त की कमी की समस्या होती है। मानसिक रूप से ये लोग कभी स्थिर नहीं रह पाते।
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घर में जल तत्व की प्रधानता होती है...
- वायु तत्व : जिस घर में वायु तत्व की प्रधानता होती है, उसमें रहने वाले लोग अहंकारी और निरंकुश होते हैं। ये लोग सिर्फ अपने परिवार का हित चाहते हैं। परिवार की खुशी और सुख के लिए ये बाहरी लोगों से हमेशा पंगा लेने को तैयार बैठे रहते हैं। ऐसे घरों में आर्थिक स्थिति मजबूत होती है और ये लोग विदेशी व्यापार से खूब धन कमाते हैं। इस घर में रहने वाले युवाओं की नौकरी और विवाह विदेशों में होता है। लेकिन घर की स्त्रियों को पेट संबंधी रोग परेशान करते हैं। पुरुष और बुजुर्गों को कोई मानसिक रोग हो सकता है।
- जल तत्व : जिस घर में जल तत्व की प्रधानता होती है वे लोग सदाचारी और सत्य के मार्ग पर चलने वाले होते हैं। इनका स्वभाव स्वच्छ जल की तरह निर्मल और शुद्ध होता है। ये बाहर कुछ और अंदर कुछ नहीं होते हैं। सभी के साथ एक समान व्यवहार रखते हैं। लोग ऐसे घरों में रहने वाले लोगों को पूजनीय मानते हुए सम्मान देते हैं। आर्थिक रूप से इस घर में कभी कोई कमी नहीं रहती है। इस घर में जो भी याचक या अतिथि आता है वह कभी खाली हाथ नहीं लौटता।
आकाश तत्व
आकाश तत्व की अधिकता जिस घर में होती है। उस घर के लोग कभी अपनी वर्तमान स्थिति से संतुष्ट नहीं होते हैं। इनके पास सब कुछ होते हुए भी अधिक की चाह में कई बार ये गलत राह पकड़ लेते हैं। इस घर के युवक-युवतियां अपने परिवार की मर्जी के खिलाफ जाकर विवाह करते हैं। इस घर के बुजुर्ग पर्याप्त सम्मान पाते हैं। आर्थिक स्थिति मजबूत रहती है, लेकिन परिजनों को कोई न कोई रोग लगा रहता है, जिस पर खर्च अधिक करना होता है। कभी कभी ऐसे घरों में रहने वाले दंपतियों में विवाह विच्छेद जैसी स्थिति भी देखी जाती है।
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