Vastu Tips: इन उपायों से दूर करें दिशाओं का वास्तु दोष
नई दिल्ली। संपूर्ण वास्तु शास्त्र दिशाओं के आधार पर काम करता है। किसी भूमि, भवन या प्रतिष्ठान के स्थित होने की दिशाओं के आधार पर उससे मिलने वाले सुख और दुख निर्भर करते हैं। यदि आपका घर वास्तु के सिद्धांतों के आधार पर बना हुआ है तो उसमें निवास करने वाले प्रत्येक व्यक्ति का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा होगा, उनकी आर्थिक प्रगति होगी और उस घर में कभी कोई बड़ा संकट नहीं आएगा, लेकिन यदि घर में किसी प्रकार का वास्तु दोष है तो वहां रहने वालों का जीवन नर्क के समान हो जाएगा। वास्तु शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक दिशा का एक-एक स्वामी और ग्रह निर्धारित किया गया है। यदि हमें वास्तु के अनुरूप दिशाओं और उनके स्वामी का ज्ञान हो तो वास्तु दोष को दूर किया जा सकता है। दोष दूर होने से धन, संपदा, सुख, शांति और ऐश्वर्यशाली जीवन बिताया जा सकता है।
आठ दिशाओं को मान्यता प्राप्त है
ज्योतिष और वास्तु दोनों ही शास्त्रों में चार मुख्य दिशाओं और चार उपदिशाओं अर्थात कुल आठ दिशाओं को मान्यता प्राप्त है। वेदों में 10 दिशाएं बताई गई हैं, इनमें उर्ध्व और अधो यानी आकाश और पाताल को भी दिशाएं माना गया है, लेकिन व्यावहारिक तौर पर आठ दिशाओं को गिना जाता है।
ये आठ दिशाएं तथा उनसे संबंधित ग्रह-देवता इस प्रकार हैं-
- दिशा- अधिपति ग्रह- देवता
- पूर्व- सूर्य- इंद्र
- पश्चिम- शनि- वरुण
- उत्तर- बुध- कुबेर
- दक्षिण- मंगल- यम
- उत्तर-पूर्व (ईशान)- गुरु- शिव
- दक्षिण-पूर्व (आग्नेय)- शुक्र- अग्नि देवता
- दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य)- राहु-केतु- नैऋति
- उत्तर-पश्चिम (वायव्य)- चंद्र- वायु देवता
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दिशा में दोष होने से बढ़ता है दुख
पूर्व दिशा : इस दिशा का अधिपति ग्रह सूर्य और देवता इंद्र है। यह देवताओं का स्थान है। यहां से संबंधित दोष दूर करने के लिए प्रतिदिन गायत्री मंत्र और आदित्यहृदय स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। यह दिशा मुख्यत: मान-सम्मान, उच्च नौकरी, शारीरिक सुख, नेत्र रोग, मस्तिष्क संबंधी रोग और पिता का स्थान होती है। इस दिशा में दोष होने से इनसे संबंधित परेशानियां आती हैं।
पश्चिम दिशा : इस दिशा का अधिपति ग्रह शनि और देवता वरुण है। यह दिशा सफलता, संपन्ता प्रदान करने वाली दिशा है। पश्चिम दिशा में दोष होने पर वायु विकार कुष्ठ रोग, शारीरिक पीड़ाएं और प्रसिद्धि और सफलता में कमी आती है। इस दिशा से संबंधित दोष दूर करने के लिए शनि देव की उपासना करना चाहिए। ऐसे घर या प्रतिष्ठान में शनि यंत्र की स्थापना करें।
उत्तर दिशा : उत्तर दिशा का अधिपति ग्रह बुध और देवता कुबेर है। इस दिशा में किसी प्रकार का दोष होने से संपूर्ण जीवन नारकीय हो जाता है। व्यक्ति और उसका परिवार जीवनभर आर्थिक तंगी से जूझता रहता है। सफलता नहीं मिलती और संकट बना रहता है। वाणी दोष, त्वचा रोग भी आते हैं। इस दिशा का दोष दूर करने के लिए बुध यंत्र की स्थापना करें। गणेश और कुबेर की पूजा करें।
दक्षिण दिशा : दक्षिण दिशा का अधिपति ग्रह मंगल और देवता यम है। इस दिशा में दोष होने पर परिवारजनों में कभी आपस में बनती नहीं है। सभी एक-दूसरे के विरोधी बने रहते हैं। सभी के बीच में लड़ाई झगड़े बने रहते हैं। संपत्ति को लेकर भाई-बंधुओं में विवाद चलता रहता है। इस दिशा के दोष दूर करने के लिए नियमित रूप से हनुमान जी की पूजा करें। मंगल यंत्र की स्थापना करें।
दिशा ज्ञान, धर्म-कर्म की सूचक
उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण) : ईशान कोण का स्वामी ग्रह गुरु और देवता शिव हैं। यह दिशा ज्ञान, धर्म-कर्म की सूचक है। इस दिशा में दोष होने पर व्यक्ति की प्रवृत्ति सात्विक नहीं रहती। परिवार में सामंजस्य और प्रेम का सर्वथा अभाव रहता है। धन की कमी बनी रहती है। संतान के विवाह कार्य में देर होती है। दोष दूर करने के लिए ईशान कोण को हमेशा साफ सुथरा रखें। धार्मिक पुस्तकों का दान करते रहें।
दक्षिण-पूर्व
दिशा
(आग्नेय
कोण)
:
इस
दिशा
का
अधिपति
ग्रह
शुक्र
और
देवता
अग्नि
है।
यदि
इस
दिशा
में
कोई
वास्तु
दोष
है
तो
पत्नी
सुख
में
बाधा,
वैवाहिक
जीवन
में
कड़वाहट,
असफल
प्रेम
संबंध,
कामेच्छा
का
समाप्त
होना,
मधुमेह-
आंखों
के
बने
रहते
हैं।
इस
दिशा
के
दोष
दूर
करने
के
लिए
घर
में
शुक्र
यंत्र
की
स्थापना
करें।
चांदी
या
स्फटिक
के
श्रीयंत्र
की
नियमित
स्थापना
करें।
दक्षिण-पश्चिम
दिशा
(नैऋत्य
कोण)
:
इस
दिशा
के
अधिपति
ग्रह
राहु-केतु
और
देवता
नैऋति
हैं।
इस
दिशा
में
दोष
होने
पर
व्यक्ति
हमेशा
परेशान
रहता
है।
कोई
न
कोई
परेशानी
लगी
रहती
है।
ससुराल
पक्ष
से
परेशानी,
पत्नी
की
हानि,
नौकरी,
झूठ
बोलने
की
लत
आदि
रहती
है।
इस
दिशा
के
दोष
दूर
करने
के
लिए
राहु-केतु
के
निमित्त
सात
प्रकार
के
अनाज
का
दान
करना
चाहिए।
गणेश-सरस्वती
की
पूजा
करें।
उत्तर-पश्चिम
दिशा
(वायव्य
कोण)
:
इस
दिशा
का
स्वामी
ग्रह
चंद्र
और
देवता
वायु
है।
इस
दिशा
में
दोष
होने
पर
व्यक्ति
के
संबंध
रिश्तेदारों
से
ठीक
नहीं
रहते
हैं।
मानसिक
परेशानी,
अनिद्रा,
तनाव
रहना
बना
रहता
है।
अस्थमा
और
प्रजनन
संबंधी
रोगों
की
अधिकता
रहती
है।
घर
की
स्त्री
हमेशा
बीमार
रहती
है।
दोष
दूर
करने
के
लिए
नियमित
शिवजी
की
उपासना
करें।
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