Feng Shui: दुर्भाग्य दूर भगाती है कछुए की अंगूठी
नई दिल्ली। हिंदू धर्म में कछुए को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। समुद्र मंथन के समय जब पर्वतरूपी मथनी को रखने के लिए समुद्र में कोई तल नहीं मिल रहा था तो भगवान विष्णु ने विशाल कछुए का रूप धारण करके मथनी को टिकने की जगह उपलब्ध कराई थी। इसलिए कछुए को विष्णु का प्रिय और लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है। इसी तरह चीनी वास्तुशास्त्र कहलाने वाले फेंगशुई में भी कछुए को सुख-समृद्धि, धन संपदा और गुड लक का प्रतीक माना गया है।
ज्योतिष
ज्योतिष की तरह वास्तु में दुर्भाग्य दूर करने के कई उपाय बताए गए हैं, उन्हीं में से एक है कछुए की आकृति वाली अंगूठी धारण करना। रत्नों और अलग-अलग धातुओं के छल्ले की तरह ही कछुए की अंगूठी भी दुर्भाग्य दूर करने का काम करती है।
आइए जानते हैं कछुए की अंगूठी धारण करने के नियम
कछुए की अंगूठी कई तरह के वास्तुदोष दूर करती है
- कछुए की अंगूठी कई तरह के वास्तुदोष दूर करती है। इसे धारण करने से व्यक्ति के भीतर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और उसके आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
- कछुए को लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है। इसकी आकृति वाली अंगूठी धारण करने से धन संबंधी समस्याएं दूर होती हैं।
- कछुआ शांतिप्रिय और अत्यंत धैर्य रखने वाला जीव है। इसके प्रतीक वाली अंगूठी धारण करने से व्यक्ति में भी धैर्य, निरंतर गतिशील रहने और शांति के गुण विकसित होते हैं।
- वास्तुशास्त्र के अनुसार कछुए की अंगूठी केवल चांदी की धातु में ही बनवाना चाहिए। अन्य धातु की अंगूठी शुभ प्रभाव नहीं देती।
- इस अंगूठी को केवल सीधे हाथ में ही पहनना चाहिए। उल्टे हाथ में कछुए की अंगूठी नहीं पहनी जाती है।
- कछुए की अंगूठी को पहनने के लिए तर्जनी और मध्यमा अंगुली निर्धारित है। इन्हीं में इसे पहनना चाहिए।
- इस अंगूठी को पहनते समय यह ध्यान रखा जाना आवश्यक है कि कछुए के सिर वाला भाग पहनने वाले की ओर हो। बाहर की ओर निकले हुए मुंह का असर नहीं होता।
- इस अंगूठी को मां लक्ष्मी के दिन शुक्रवार को सुबह स्नानआदि करके गंगाजल और कच्चे दूध से धोकर धूप-दीप दिखाकर पहनें।
शांति के गुण
अंगूठी को केवल सीधे हाथ में ही पहनना चाहिए
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