Thumb Palmistry: अपने अंगूठे से जानिए, कैसा रहेगा आपका भाग्य
नई दिल्ली। ज्योतिष की अनेको विधायें है, जिनके माध्यम से समय के गर्भ में पड़े भविष्य के बारें में काफी हदतक अनुमान लगाया जा सकता है। आपने अक्सर सुना होगा या देखा होगा अंगूठे का निशान लेकर कुछ ज्योतिषी आपके माता-पिता का नाम व आपकी कुण्डली का निर्धारण करके भविष्य बताते है।
क्या है ये भ्रम या सच , आइए इसकी पड़ताल करते हैं...
एक भार्गव नाड़ी नाम का ग्रंथ है...
एक भार्गव नाड़ी नाम का ग्रंथ है, जो दक्षिण भारत में ताड़पत्रों पर प्राचीन तमिल की ब्रहम लिपि में लिखा हुआ प्राप्त होता हैं। दक्षिण भारत के अधिकतर नाड़ी ज्योतिषी अपने पास भार्वव नाडीका रखने का दावा करते हैं। भार्गव शब्द का अर्थ- शुक्र होता है, इसलिये इसे शुक्र नाड़ी के नाम से जाना जाता है। शुक्र नाड़ी ग्रन्थ की दो पाण्डुलिपियाॅ गर्वमेन्ट ओरियन्टल मनुस्कापर्त मद्रास में प्राप्त होती है। गर्वनमेंन्ट ओरयिन्टल मनुस्क्रपितट मद्रास में लगभग 40 वर्ष पूर्व एक भार्गव नाड़ी नामक एक छोटी सी पुस्तक प्रकाशित हुई थी।
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अंगूठे का निशान
इस पुस्तक में केवल विशोंत्तरी दशाओं के फलों का वर्णन किया गया है। जिन ज्योतिष्यों के पास शुक्र नाड़ी अथवा भार्गव नाड़ी ग्रन्थ है। वह जातक के अंगूठे अथवा हथेली के प्रिन्ट से उसके जीवन का भविष्य फल बताते है। जातक इनके पास अपने भविष्य जानने हेतु हथेलियों का प्रिन्ट ले जाते हैं फिर उन्हें 10-15 दिनों का समय दिया जाता है। प्रिन्ट के द्वारा ज्योतिषी जातक के लग्न भावों और ग्रहों का निर्धारण करते है। पुनः नाड़ी ग्रन्थ में उस लग्न की व भावों के ग्रहों वाली 8-10 जन्म पत्रियों को निकालते हैं।
15-20 श्लोकों के बीच वर्णित हैं ये ग्रंथ
तत्पश्चात जातक को बुलाकर एक दों पत्री का फल सुनाते है। जिसमें माता-पिता, पत्नी का नाम कुछ घटनायें प्राप्त हो जाती हैं व कुण्डली उस जातक की मानी जाती है। तत्पश्चात ज्योतिषी उस कुण्डली के फल को नाड़ी ग्रन्थ के उतार कालिख दंता है। अथवा सुना देता है। इस ग्रन्थ में कुण्डलियां बनी हुयी और उनका फल 15-20 श्लोकों के बीच वर्णित हैं इसमें की किसी विशोत्तरी इत्यदि दशा की आवश्यकता नहीं पड़ती है। केवल वर्षो के माध्यम से घटनाओं का उल्लेख किया गया है। इसमें पूर्व जन्म का भी वर्णन है। अनीष्ट ग्रहों के निवारण के लिए विशिष्ट प्रकार के जप पुूजन तथा दान इत्यदि का उल्ेख मिलता है। इस प्रकार से यह ग्रन्थ चमत्कारिक होते हुए भी सर्वजन सुलभ नहीं है। यदि इसका प्रकाशन किसी प्रकार से हो सके तो सर्वजन के लिए हर्ष का विषय होगा।
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