कुंडली में है ऐसा योग, तो जातक छोड़ देगा घर-परिवार
हिंदू धर्म शास्त्रों में मनुष्य के पूरे जीवन को चार भागों में विभाजित किया गया है। इन चार भागों को चार आश्रम कहते हैं। इनमें पहला है ब्रह्मचर्य आश्रम। यह 24 वर्ष की आयु तक माना जाता है। दूसरा आश्रम है गृहस्थ आश्रम। यह 24 से 48 वर्ष की आयु तक होता है। तीसरा वानप्रस्थ आश्रम है, 48 से 72 वर्ष की आयु तक होता है और चौथा आश्रम है संन्यास आश्रम। यह 72 वर्ष की आयु से जीवन के अंतिम क्षणों तक होता है।
जन्मकुंडली बताती है जातक संन्यासी बनेगा या नहीं
हिंदू धर्म में आश्रम व्यवस्था के अनुसार ही प्रत्येक मनुष्य को अपना कर्म करना होता है। लेकिन कई लोगों के मन में बचपन से ही संन्यास की तीव्र लालसा होती है। ऐसा क्यों होता है कि कई लोग बचपन से संन्यासी, वैरागी बनना चाहते हैं। वैदिक ज्योतिष की मानें तो कोई जातक संन्यासी बनेगा या नहीं, इसका पता उसकी जन्मकुंडली के ग्रहों को देखकर लगाया जा सकता है।
प्रावज्य योग बनने पर होता है कुछ ऐसा
वैदिक ज्योतिष के अनुसार जिस जातक की जन्म कुंडली में चार या चार से अधिक ग्रह एक साथ एक ही स्थान में बैठे हों तो प्रावज्य योग बनता है। सामान्य भाषा में इसे संन्यासी योग भी कहते हैं। लेकिन इसमें ध्यान रखने वाली बात यह है कि साथ बैठे उन सभी ग्रहों में से किसी एक ग्रह का बलशाली होना आवश्यक है। यदि ग्रह बलवान भी हो लेकिन अस्त हो तो संन्यास योग नहीं बनता है, वह केवल किसी संन्यासी का अनुयायी बनता है।
किस ग्रह से किस प्रकार का संन्यास योग
नौ
ग्रहों
में
से
राहु-केतु
छाया
ग्रह
है
इसलिए
इन्हें
हटाकर
कुल
सात
ग्रह
शेष
बचते
हैं।
यदि
व्यक्ति
की
कुंडली
में
प्रबल
संन्यास
योग
हो
और
योग
बनाने
वाले
ग्रहों
में
से
जो
ग्रह
बलवान
होता
है
उसके
अनुसार
व्यक्ति
संन्यासी
होता
है।
आइए
जानते
हैं
कैसे
:
1.
संन्यास
योग
बनाने
वाले
ग्रहों
में
यदि
सूर्य
सबसे
ज्यादा
बलवान
हो
तो
जातक
पर्वत
या
नदी
के
किनारे
रहने
वाला,
सूर्य
और
शक्ति
का
उपासक
संन्यासी
होता
है।
2.
यदि
चंद्रमा
बलशाली
ग्रह
हो
तो
जातक
शैव
सम्प्रदाय
का
संन्यासी
बनता
है
और
वह
अपने
गुरु
के
पदचिन्हों
पर
चलकर
उच्च
कोटि
का
साधक
बनता
है।
3.
यदि
बलशाली
ग्रह
मंगल
हो
तो
जातक
लाल
वस्त्रधारी
संन्यासी
होता
है।
ऐसा
व्यक्ति
एकांतप्रिय
और
भिक्षावृति
कर
गुजारा
करने
वाला
होता
है।
4.
बुद्ध
बलशाली
हो
तो
जातक
विष्णु
भक्त
होता
है,
लेकिन
वह
तांत्रिक
क्रियाओं
का
ज्ञाता
होता
है।
ऐसे
जातक
को
वाक
सिद्धि
भी
प्राप्त
हो
जाती
है।
5.
बृहस्पति
बलवान
हो
तो
जातक
भिक्षु,
तपस्वी,
धर्मशास्त्रों
का
ज्ञाता,
यज्ञ
यादि
कर्मकांडों
को
करने
वाला
होता
है।
6.
शुक्र
के
बलवान
होने
पर
जातक
भ्रमण
करने
वाला,
वैष्णव,
व्रती
होता
है।
7.
संन्यास
योग
बनाने
वाले
ग्रहों
में
यदि
शनि
प्रबल
होता
है
तो
जातक
कठोर
तपस्या
करने
वाला
नागा
साधु
होता
है।
नोट
:
कुंडली
में
कौन-सा
ग्रह
बलवान
है
इसकी
जानकारी
के
लिए
कुंडली
किसी
ज्योतिषी
को
दिखाकर
कंफर्म
किया
जा
सकता
है।