Motivational Story: लक्ष्य के प्रति एकाग्र रहना है महत्वपूर्ण
नई दिल्ली। जीवन में कुछ पाना हो, तो सबसे आसान तरीका है अपने सपने के अनुरूप लक्ष्य निर्धारित करना और उस पर पूरी दृढ़ता से डटे रहना। यदि आप एक लक्ष्य निर्धारित कर लें और उस पर धीमी गति से ही काम करते रहें, तो विश्वास मानिए कि एक दिन आप उसे पा ही लेंगे। अक्सर होता यह है कि लोग लक्ष्य निर्धारित कर लेते हैं, पर कुछ समय बाद ही उसे बदल कर दूसरे रास्ते पर चल पड़ते हैं। इस तरह हर समय लक्ष्य बदलने से भटकाव के सिवाय कुछ नहीं मिलता। एक लक्ष्य निर्धारित करना और उसे प्राप्त करने के लिए जी- जान लगा देना कितना महत्व रखता है, इसे महाभारत के एक प्रसंग से जानते हैं-
यह उस समय की बात है, जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था, कौरवों का समूल नाश हो चुका था और पांडव हस्तिनापुर का साम्राज्य भोग चुके थे। जीवन के महासमर में अपने प्रियजनों को खोकर पांडव भी संसार का मोह छोड़ चुके थे। इस समय श्री कृष्ण ने उन्हें स्वर्ग में जाने की राह बताई, जिसमें पर्वत की कठिन चढ़ाई पार कर स्वर्ग का रास्ता खुलना था। कहते हैं कि उस स्वर्ग पर्वत पर सभी अपने कर्मफल के अनुरूप चढ़ने में सफल हो पाते थे। यही कारण था कि जीवन में किए कर्मों के अनुरूप सबसे पहले द्रौपदी, फिर क्रमशः नकुल, सहदेव, भीम और अर्जुन पर्वत पर चढ़ाई के दौरान गिरते गए और मृत्यु उपरांत स्वर्ग पहुंचे। सबसे अंत में युधिष्ठिर और एक कुत्ता ही पर्वत की चोटी पर पहुंचने में सफल हुए। इनमें भी कुत्ते के वेश में स्वयं देवराज इंद्र युधिष्ठिर की परीक्षा लेने आए थे, जिसमें सफल होकर युधिष्ठिर ही जीवित अवस्था में स्वर्ग पहुंचे।
पांडव सहन ना कर सके और असंतुष्ट हो गए
स्वर्ग में एक बार पुनः सभी भाइयों का मिलन हुआ। इस दौरान पांडवों ने पाया कि सबके साथ वहां दुर्योधन भी उपस्थित था। इस बात को पांडव सहन ना कर सके और असंतुष्ट हो गए। अर्जुन ने युधिष्ठिर से कहा- भ्राता! यह तो अन्याय है। जिस दुर्योधन ने जीवन में कभी कोई सत्कर्म ना किया, जिस दुर्योधन के कारण भारतवर्ष का सबसे विनाशकारी महायुद्ध हुआ, जिस दुर्योधन के कारण हमने अपने ज्येष्ठ, अपने आत्मजों को खो दिया, वह स्वर्ग का अधिकारी कैसे हो सकता है? तब युधिष्ठिर ने समझाया कि हे अर्जुन! तुम्हारे सभी वचन सत्य हैं। दुर्योधन ने जीवित रहते कोई सत्कर्म ना किया, पर उसने एक काम ऐसा किया, जिससे वह कुछ समय के लिए स्वर्ग में रहने का अधिकारी हो गया। दुर्योधन ने अपने बाल्यकाल में ही तय कर लिया था कि वह पांडवों का नाश करेगा और वह जीवन पर्यंत अपने लक्ष्य पर अडिग रहा। उसने अपना साम्राज्य, मान- सम्मान, धन- प्रतिष्ठा, यहां तक कि अपने आत्मजों और घनिष्ठ मित्रों तक को खो दिया, पर मृत्यु तक भी उसके मन में अपने लक्ष्य को पाने की कामना नहीं गई। उसने अपनी अंतिम सांस तक अपने लक्ष्य को पाने का प्रयास किया। जीवन में कितने लोग इस तरह अपने लक्ष्य को पाने के लिए दृढ़ समर्पित हो पाते हैं? यही कारण है कि उसे तुम स्वर्ग में देख पा रहे हो। हालांकि वह केवल कुछ समय के लिए स्वर्ग में निवास करेगा, पर जितना भी करेगा, अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ रहने के कारण ही करेगा।
शिक्षा
इस तरह लक्ष्य के अपवित्र होने के बाद भी अपनी दृढ़ता के कारण, अपने पथ पर डटे रहने के कारण कुछ ही दिनों के लिए सही, पर दुर्योधन ने स्वर्ग का सुख प्राप्त किया।
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