Motivational Story: संकट में रक्षा कवच है साहस और मधुर वाणी
नई दिल्ली। जीवन की लीला इतनी रंग-बिरंगी है, जो नित नया रूप लेकर हमारे सामने आती है और हमें कभी हैरान, कभी दुखी, कभी सुखी, तो कभी निहाल कर जाती है। इंसान खुद नहीं जानता कि अभी वह प्रसन्न है और कब अगले ही पल उसे दुख घेर लेता है, अभी वह निश्चिंत है और दूसरे ही क्षण में भारी-सी चिंता उसके द्वार आकर खड़ी हो जाती है।
बहरहाल, जीवन के रंग तो हर पल बदलते हैं, पर उसकी लीला से कदम मिलाकर चलना हो, तो व्यक्ति में दो गुण होना बहुत आवश्यक हैं- साहस और वाणी की मधुरता। साहसी व्यक्ति कभी टूटता नहीं, बल्कि हर परिस्थिति से पार पाने का रास्ता ढूंढता है। इसके साथ ही अगर उसके पास मन मोहने वाली बोली हो, तो विपरीत परिस्थितियां भी उसके पक्ष में हो जाती हैं।
कैसे, आइए, इस कथा के माध्यम से जानते हैं
पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह के पराक्रम, शासन सिद्धता, उदारता और न्याय से कौन परिचित नहीं है। अपनी प्रजा के सच्चे हितैषी महाराज रणजीत सिंह अपने राज्य में भगवान की तरह पूजे जाते थे। उनकी प्रजा हर तरह से सुखी थी क्योंकि महाराज खुद ही अपने राज्य का दौरा कर लोगों के हाल-चाल अपनी आंखों से देखते और कोई तकलीफ पता चलते ही उसे दूर करने में देरी ना करते थे। अपनी प्रजा के बीच दौरा करना उनका रोज का काम था।
अपना काम छोड़कर महाराज का स्वागत करने ना आए
ऐसे ही एक बार महाराज अपने लश्कर के साथ एक गांव से गुजर रहे थे। उनके काफिले की अगवानी करने की मनाही थी और प्रजा को यह आदेश दिया गया था कि कोई भी अपना काम छोड़कर महाराज का स्वागत करने ना आए। यही वजह थी कि गांव वालों को उनके आने की खबर ना थी। दोपहर का समय था और महाराज काफिले में सबसे आगे अपने घोड़े पर चले जा रहे थे। अचानक ही एक बड़ा-सा पत्थर आकर महाराज के माथे पर लगा और खून बह निकला। पल भर में हाहाकार मच गया और कुछ सैनिक महाराज की देखभाल के लिए दौड़े, तो कुछ अन्य यह पता करने गए कि आखिर पत्थर मारा किसने?
सैनिक 10-15 साल के कुछ लड़कों को पकड़ के ले आए
थोड़ी ही देर में सैनिक 10-15 साल के कुछ लड़कों को पकड़ के ले आए। पूछने पर पता चला कि वे सब बगीचे से आम चुराने के लिए निशाना लगा रहे थे और गलती से पत्थर इधर आ गया। पत्थर के आने का कारण जानकर महाराज को समझ आ गया कि यह जानबूझकर किया गया अपराध नहीं है। इसके बावजूद वे मजा लेने के लिए बच्चों से बोले कि तुम्हारे पत्थर से हमें कितनी चोट लगी है। इसका दंड तुम लोगों को अवश्य मिलेगा। उनकी बात सुनकर सभी बच्चे घबरा गए। तभी एक किशोर बालक सामने आया और महाराज को प्रणाम कर बोला- अन्नदाता! हम पेड़ को पत्थर मारते हैं, तो वह हमें मीठे फल देता है। आप तो हमारे स्वामी हैं।
महाराज रणजीत सिंह ठहाका मार कर हंस पड़े
क्या आप हमें अनजाने में हुई गलती के लिए दंड देंगे? उसकी बात सुनकर महाराज रणजीत सिंह ठहाका मार कर हंस पड़े और बोले- तुम साहसी भी हो और बातोें से मन जीतना भी जानते हो। बात भी तुमने बड़े पते की कही। जब एक पेड़ पत्थर के बदले फल देता है, तो हम बिना कुछ दिए कैसे आगे जा सकते हैं। आज से तुम्हारी शिक्षा-दीक्षा का प्रबंध राजकोष से होगा।
मीठी बोली से महाराज का दिल जीत लिया
इस तरह अपने साहस और मीठी बोली से उस बच्चे ने ना सिर्फ महाराज का दिल जीत लिया, बल्कि दंड को भी पुरस्कार में बदल लिया। यही जादू है साहस और मिठास भरी बोली का, जो हर संकट से बचा लेता है।
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