शीर्ष पद तक पहुंचा सकता है जन्मकुंडली में बना शश योग
नई दिल्ली। वैदिक ज्योतिष में किसी जातक की जन्मकुंडली में बनने वाले योग बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। इनमें कुछ शुभ तो कुछ अशुभ योग होते हैं। शुभ योगों में से एक योग है शश योग। यह योग पंच महापुरुष योगों में से एक हैं। हंस योग, मालव्य योग, रूचक योग, भद्र योग और शश योग। ये पांच सबसे शुभ योग होते हैं जिन्हें पंच महापुरुष योग कहा जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार शश योग मुख्यत: कुंडली में शनि की विशेष स्थिति के कारण बनता है। यदि किसी कुंडली में लग्न से अथवा चंद्रमा से केंद्र के स्थानों में शनि स्थित हो। अर्थात शनि यदि किसी कुंडली में लग्न अथवा चंद्रमा से 1, 4, 7 या 10वें स्थान में में तुला, मकर या कुंभ राशि में स्थित हो तो ऐसी कुंडली में शश योग का निर्माण होता है।
शश योग के लाभ
- जिस जातक की जन्मकुंडली में श्ाश योग होता है उसे उत्तम स्वास्थ्य, लंबी आयु, परिश्रमी स्वभाव, किसी भी बात का पूर्ण और सटीक विश्लेषण करने की क्षमता, सहनशीलता, छिपे हुए रहस्यों को जान लेने की क्षमता आदि प्रदान करता है।
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जिस
कुंडली
में
यह
योग
हो
वह
जातक
जीवन
के
प्रत्येक
क्षेत्र
में
सफल
होता
है।
ऐसा
जातक
राजनीतिक
क्षेत्र
में
भी
शीर्ष
पदों
तक
पहुंचता
है।
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शश
योग
के
प्रभाव
से
जातक
सामाजिक
जीवन
में
बड़ा
प्रतिष्ठित
पद
हासिल
करता
है।
राजा
के
समान
उसका
सम्मान
किया
जाता
है।
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कार्यक्षेत्र
की
बात
की
जाए
तो
शश
योग
वाले
जातक
बड़े
सरकारी
अफसर,
अभियंता,
जज,
वकील
बनते
हैं।
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इस
योग
वाले
जातक
भूमि,
भवन
संबंधी
कार्यों
में
सफलता
अर्जित
करते
हैं।
शराब
के
व्यापारी
होते
हैं।
इनके
एक
से
अधिक
व्यापार
होते
हैं।
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शश
योग
व्यक्ति
को
उच्च
कोटि
का
आध्यात्मिक
व्यक्तित्व
प्रदान
करता
है।
ऐसा
जातक
बड़ा
आध्यात्मिक
गुरु,
योगाचार्य,
प्रवचनकार,
कथाकार,
प्रेरक
वक्ता
बनता
है।
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ऐसे
जातक
को
धन,
संपत्ति,
समृद्धि,
प्रसिद्धि
सहज
ही
प्राप्त
हो
जाती
है।
शनि शुभ होना आवश्यक
शश योग का निर्माण कुंडली के केंद्र स्थानों में शनि की स्थिति के कारण होता है। लेकिन इसमें यह ध्यान रखना आवश्यक है कि शनि शुभ स्थिति में होना चाहिए। यदि शनि पर अन्य नीच ग्रहों की दृष्टि है तो इस योग का शुभ फल मिलने की बजाय अशुभ फल मिलने लगता है। शनि के प्रथम भाव में अशुभ होने से जातक गंभीर रोगों से पीड़ित हो सकता है। चतुर्थ स्थान का अशुभ शनि सुख को प्रभावित करता है। सप्तम भाव में यदि अशुभ शनि बैठा है तो जातक का दांपत्य और पारिवारिक जीवन तहस नहस कर सकता है और दशम स्थान का अशुभ शनि जातक गलत कार्यों, अनैतिक संबंधों में पड़कर अपना जीवन बर्बाद कर बैठता है।
ये योग भी शश योग को कर सकते हैं प्रभावित
जन्मकुंडली में शश योग बना हुआ है, लेकिन साथ में यदि कालसर्प दोष, पितृ दोष, मंगलीक दोष, सूर्य या चंद्र ग्रहण दोष, गुरु चांडाल योग जैसे कुछ अशुभ योग भी बने हुए हैं तो जातक को शश योग का फल नहीं मिलेगा। इसलिए शश योग का विश्लेषण करते समय अन्य शुभाशुभ दोषों का भी विचार कर लेना चाहिए।